क्या फिल्म संवाद को आधिकारिक और राजनीतिक बयान मान लेना चाहिये? तमिल फिल्म मेरसल के संवाद पर हो रहा विवाद तो कुछ ऐसा ही संकेत दे रहा है कि किसी फिल्म संवाद को भी आधिकारिक और राजनीतिक बयान मान लेना चाहिये।
मेरसल तमिल फिल्म है, जो जल्द हिंदी में डब होकर किसी न किसी टेलीविजन पर दिखने लगेगी क्योंकि छोटे पर्दे पर दक्षिण भारतीय डब फिल्मों का कब्जा हो चुका है। हैरानी है कि तमिल भाषा में बोले गए संवाद पर पूरा देश बहस कर रहा है।
हालांकि, स्वास्थ्य सेवाओं और समस्याओं के इर्दगिर्द बनी फिल्म मेरसल आम तमिल फिल्मों जैसी फिल्म है। आप सुपरस्टार रजनीकांत की शिवाजी द बॉस, लिंगा देख लें, या फिर अन्य तमिल— तेलुगू फिल्मों को देख लें, आज भी पर्दे पर क्रूर कारोबारी, सत्ताधारियों और आम जनता के बीच गरमागरमी दिखाई जाती है, इस गरमागरमी ने ही अमिताभ बच्चन को यंग एंग्रीमैन के खिताब से नवाजा, जबकि असल में जीवन में अमिताभ बच्चन हमेशा सत्ता पक्ष के साथ ही खड़े मिले हैं।
पिछले एक साल में बॉलीवुड ने गिनी चुनी हिट फिल्में दी, जबकि दक्षिण भारत में हिट फिल्मों का कारवां लंबा है। पिछले एक साल में रिलीज होने वाली अधिकतर हिंदी फिल्मों में सत्तापक्ष की महिमा गायी गई है जबकि मेरसल में ऐसा नहीं हुआ, शायद इसलिए तमिल फिल्म होने के बावजूद भी हिंदी फिल्मों से अधिक चर्चा हासिल करने में सफल हुई।
जहां, इस फिल्म के एक संवाद ने जनता का दिल जीता, वहीं, दूसरी ओर तमिलनाडू में सत्ता में हिस्सेदारी का ख्वाब बुनने वाली भारतीय जनता पार्टी तिलमिला उठी। दिलचस्प तो यह है कि इस संवाद का हिंदी और अंग्रेजी अनुवाद हो चुका है, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, और केंद्र सरकार की मुश्किल बढ़ रही है।
आम तौर पर फिल्म के संवाद सिर्फ संवाद रहते हैं, उसे कभी भी आधिकारिक और राजनीतिक बयान नहीं माना जाता, लेकिन, तमिल फिल्म मेरसल का संवाद संवाद नहीं रह गया। वो विरोधी पार्टियों के लिए ब्रह्मास्त्र बन चुका है, जो कमाल विरोधी पार्टियां अपने आधिकारिक बयानों से नहीं कर सकीं, वो मेरसल के एक संवाद ने कर दिया।
फिल्म मेरसल के संवाद पर हो रहा विवाद बता रहा है कि जब कहने का जरिया बड़ा हो तो उसका प्रभाव भी व्यापक होता है। भले ही अभिनेता जोसेफ विजय का कद सुपरस्टार रजनीकांत या अमिताभ बच्चन जितना बड़ा तो नहीं है, लेकिन, कम भी नहीं है। थलैवा अभिनेता विजय की पांच फिल्में बॉक्स आॅफिस पर 100 करोड़ के कलेक्शन को पार कर चुकी हैं, जिसमें मेरसल भी शामिल है।
विजय को थलापति भी कहा जाता है, जिसका अर्थ सेनापति या कमांडर होता है। विजय की लोकप्रियता का अंदाजा फिल्म मेरसल की निर्माता हेमा रुकमणि के बयान से लगाया जा सकता है, जिसमें कहा गया है कि फिल्म मेरसल के किसी भी सीन को म्यूट या मिटाया नहीं गया, आप थलापति के स्वैग का मजा लीजिये।
फिल्म मेरसल के समर्थन में जनता ही नहीं, तमिल फिल्म इंडस्ट्री भी आकर खड़ी हो चुकी है। जनता का कहना है कि यदि सरकार को संवाद से परेशानी है तो सरकार को उस पर बहस करनी चाहिये, सरकार को अपने तथ्य जनता के सामने रखने चाहिये। लेकिन, फिल्म मेरसल के संवाद को म्यूट और मिटाने की कोशिश अभिव्यक्ति पर हमला होगा।
– कुलवंत हैप्पी