सुशांतसिंह राजपूत की मौत के साथ बाहरी होने का रोना धोना फिर से शुरू हो चुका है। फिल्म अभिनेत्री से फिल्म निर्माता बन चुकी कंगना रनौट का एक वीडियो वायरल हो रहा है। इस वीडियो में कंगना रनौट फिल्म जगत के उस तबके पर हमला बोल रही हैं, जिनकी पीढ़ियां सालों से फिल्म जगत में हैं।
कंगना रनौट हर बार बाहरी लोगों की मसीहा बनकर सामने आ जााती हैं। कंगना रनौट पद्मश्री से सम्मानित हैं। कंगना रनौट को पद्मश्री के अलावा चार फिल्मफेयर अवार्ड्स मिले हैं, तीन राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड मिले हैं। इसके अलावा अन्य प्राइवेट फिल्म अवार्ड्स से भी कंगना रनौट को सम्मानित किया जा चुका है।
ऐसा क्यों बता रहा हूं? यह इसलिए बता रहा हूं कि अभिनेत्री कंगना रनौट दावा कर रही हैं कि उनके या उन जैसे बाहरी लोगों के काम को सम्मान नहीं दिया जाता। केवल पुरस्कारों पर केवल अमीर फिल्म घरानों के बच्चों का कब्जा रहता है। ऐसा कुछ नहीं, और यह केवल पब्लिसिटी स्टंट से ज्यादा कुछ नहीं।
कंगना रनौट भूल जाती हैं कि आलिया भट्ट के पिता महेश भट्ट के बैनर ने यदि गैंगस्टर ऑफर न की होती तो कंगना रनौट किसी सी ग्रेड फिल्म का हिस्सा होती, यह बात खुद कंगना रनौट बता चुकी हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं कि कंगना रनौट ने केवल महेश भट्ट के बैनर तले ही काम किया। सच तो यह है कि कंगना रनौट ने सफल फिल्म निर्माता रॉनी स्क्रूवाला, राकेश रोशन, एकता कपूर और फरहान अख्तर के प्रोडक्शन हाउस के अलावा वायकॉम मोशन पिक्चर्स जैसे बड़े घरानों के साथ काम किया। लगता है कि कंगना रनौट सफलता की काफी ऊंची चोटी पर पहुंच चुकी हैं, जहां पर उनको यह दिखाई देना बंद हो चुका है कि उनके फिल्मी करियर की ज्यादातर फिल्मों का निर्माण बड़े बैनरों ने किया है।
बाहरी बाहरी कहकर हर बार बॉलीवुड के बड़े घरानों पर हमला करना इसलिए भी जायज नहीं लगता क्योंकि इनके पूर्वज भी कभी बॉलीवुड में बाहरी थे। आज भी बॉलीवुड में बहुत सारे सितारे बाहरी हैं, कंगना रनौट खुद भी बाहरी हैं। दीपिका पादुकोण भी बाहरी हैं, अक्षय कुमार भी बाहरी हैं, शाह रुख खान बाहरी हैं, अनुष्का शर्मा भी बाहरी हैं, और इनदिनों बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाने वाला आयुष्मान खुराना भी बाहरी हैं। बाहरी सफलतम कलाकारों की फेहरिस्त बहुत लंबी है, जिक्र करने बैठे तो बोरियत होने लगेगी।
मायानगरी के नामचीन घरानों की औलादों को लांच तो किया जा सकता है, लेकिन, सफलता तो मेहनत करने से मिलती है। यदि ऐसा न होता, तो अभिषेक बच्चन अक्षय कुमार से ज्यादा पॉपुलर होता। हर फिल्म में तुषार कपूर लीड अभिनेता होता। आमिर खान का भांजा इमरान खान अभिनय को अलविदा न कह गया होता। अभी तक उदय चोपड़ा स्क्रीन पर टिके होते। फिल्म जगत कोई समाज सेवी संगठन नहीं बल्कि फिल्म इंडस्ट्री है और इंडस्ट्री में निवेश होता है और निवेश से प्रोफिट कमाया जाता है और कोई भी संघर्षरत अभिनेता सफल होने पर बैनरों के लिए समाज सेवा नहीं करता, बल्कि अपना मुंह मांगा दाम वसूलता है।
यदि प्रोडक्शन हाउस बॉक्स ऑफिस पर लॉस प्रोफिट को ध्यान में रखना बंद कर दें, तो सिद्धार्थ रॉय कपूर की तरह एक के बाद एक कट्टी बट्टी, फितूर, मोहनजोदड़ो, जग्गा जासूस बनाकर करोड़ों का नुकसान करवाते हुए प्रोडक्शन हाउसों को ताले मरवा दें। ऐसे में बाहरी और अंदरूनी कलाकार कहां जाएंगे?
चलते चलते बता दूं कि सुशांतसिंह राजपूत को पहचान दिलवाने धारावाहिक पवित्र रिश्ता एकता कपूर के प्रोडक्शन हाउस का था और सुशांतसिंह राजपूत की पहली फिल्म काई पो छे एकता कपूर के कजिन अभिषेक कपूर ने निर्देशित की थी। हाल ही फिल्मों में केदारनाथ, जिसमें सुशांतसिंह राजपूत सैफ अली खान की बेटी सारा अली खान के साथ दिखे थे, वो भी अभिषेक कपूर ने निर्मित की थी।
इसके अलावा छिछोरे साजिद नाडियादवाला के बैनर ने बनाई थी, जिसमें सुशांत सिंह राजपूत की को-स्टार श्रद्धा कपूर थी और साजिद नाडियादवाला भी कोई छोटा मोटा बैनर नहीं है। इतना ही नहीं, करण जौहर के बैनर ने सुशांतसिंह राजपूत के साथ ड्राइव बनाई थी, लेकिन, सिनेमा घरों के मालिकों ने फिल्म में दिलचस्पी नहीं दिखाई। नतीजन फिल्म को ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज किया गया। फिल्म कलाकारों का उनके पैसे का भुगतान हुआ, लेकिन, नुकसान बैनर को झेलना पड़ा और ऐसा बहुत बार होता है। फिल्म जगत एक इंडस्ट्री है, और इंडस्ट्री का नियम होता है कि जो बिकता है, वो टिकता है।
इसलिए कहता हूं कि बाहरी होने का रोना बंद कीजिए।