भले ही हम कितने भी मॉर्डन होने का दावा करें, पर, हकीकत यह है कि आज भी हम एक ऐसे समाज में रहते हैं, जहां अभी भी कुछ वर्जनाएं बाकी हैं, जिन्हें लांघते हुए हम स्वयं को दोषी महसूस करते हैं और समाज की नजरों में गिरा हुआ, अपमानित। ऐसी ही एक वर्जना पर आधारित है, आनंद तिवारी की फिल्म मजा मा।
मजा मा एक ऐसी औरत की कहानी है, जो 29 सालों से अपने पति और परिवार के साथ प्रसन्नतापूर्ण जीवन जी रही है। पर, अचानक एक दिन बेटी के उकसाने पर वो तैश में आकर कुछ ऐसा कह जाती है, जो उसके गरिमा और प्रसन्नतापूर्ण जीवन पर सवालिया निशान लगा देता है।
मजा मा की कहानी का मुख्य पात्र पल्लवी है, जिसकी दो संतान एक बेटा तेजस और एक बेटी तारा। पल्लवी का बेटा तेजस विदेश में पढ़ता है, और भारतीय मूल के अमीर परिवार की लड़की ईशा से प्यार कर बैठता है। ईशा के मां बाप व्यक्तियों को परखने के लिए लाइ डिटेक्टर टेस्ट करते हैं। तेजस बड़ी आसानी से लाइ डिटेक्टर टेस्ट पास कर जाता है और ईशा के मां बाप शादी के लिए तैयार हो जाते हैं, साथ ही शर्त रखते हैं कि भारत जाकर तेजस के परिवार से मिलेंगे, और अंतिम निर्णय तभी होगा। तेजस समेत ईशा का परिवार भारत आता है, और तेजस के परिवार से मिलता है।
सब कुछ बढ़िया चल रहा होता है, अचानक, पल्लवी का एक ऐसा वीडियो सबके सामने आता है, जो सबको हैरत में डालता है और इसके बाद हर चीज बिगड़ने लगती है। वीडियो के सामने आते ही समाज पल्लवी के परिवार से, और परिवार पल्लवी से दूरी बनाने लगता है। इस सबके बीच भी पल्लवी अंदर से टूटी हुई अकेले ही एक सुलझी हुई औरत की तरह अपनी लड़ाई लड़ती है।
हर कोई अपने अपने तरीके से पल्लवी का इलाज करवाने लगता है। पल्लवी अंदर ही अंदर तड़पकर रह जाती है और कुछ नहीं बोलती। मगर, अंत में पल्लवी परिवार और समाज के सामने अपना सच रखने के लिए लाइ डिटेक्टर टेस्ट के लिए राजी होती है।
पर, तेजस पल्लवी को ऐसा करने से मना करता है, क्योंकि तेजस को पल्लवी का सच पता चल जाता है, और वो नहीं चाहता कि अन्य लोगों को भी पल्लवी का सच पता चले। पर, इसके बावजूद भी पल्लवी लाइ डिटेक्टर टेस्ट के लिए आगे बढ़ती है।
क्या लाइ डिटेक्टर टेस्ट पल्लवी को उसका मान सम्मान वापिस दिला पाएगा? यदि पल्लवी लाइ डिटेक्टर टेस्ट में फेल हो गई तो क्या होगा? इस सवाल का जवाब जानने के लिए मजा मा देखिए।
पल्लवी पटेल के किरदार में माधुरी दीक्षित का अभिनय शानदार है। उम्र के हिसाब से माधुरी दीक्षित ने एक दमदार भूमिका चुनी है। माधुरी ग्लैमर भरे शॉट्स और इमोशनल सीनों दोनों में गजब प्रभाव छोड़ती हैं। रितिक भौमिक, बरखा सिंह, रजित कपूर, शीबा चढ्डा, गजराज राव, मल्हार ठाकर, कैविन दवे, शृष्टि श्रीवास्तव का अभिनय भी बेहतरीन था।
लव पर स्क्वेयर फुट जैसी फिल्म बना चुके आनंद तिवारी की मजा मा भी बेहतरीन फिल्म है। आनंद तिवारी अपनी बात रखने में सफल हुए हैं। कलाकारों से बेहतरीन काम लिया गया है। माधुरी दीक्षित के किरदार पर पूरी तरह फोक्स बनाए, जो फिल्म की जान है। हालांकि, कुछ जगहों पर संवादों को समझना मुश्किल सा हो जाता है क्योंकि फिल्म की कहानी इंग्लिश, गुजराती और पंजाबी परिवेश में अपना आकार लेती है। कुछ जगहों पर कलाकार गुजराती एक्सेंट छोड़ते हुए नजर आते हैं, हालांकि, यह इतना खलता नहीं है। मल्हार ठाकर की भूमिका को अच्छे तरीके से लिखा जाना चाहिए था क्योंकि मल्हार ठाकर गुजराती सिनेमा का चमकता सितारा है।
फिल्म मजा मा के अंतिम 50 मिनट फिल्म को शिखर की ओर लेकर जाते हैं। यहां पर कहानी सिल्वर स्क्रीन पर माधुरी दीक्षित की खूबसूरत मुस्कान की तरह खिलने लगती है। इस भाग का संपादन, लेखन काफी संजीदगी, जिम्मेदारी के साथ किया है, ताकि फिल्म अपनी बात अच्छे ढंग और खूबसूरती के साथ रख पाए। शीबा चड्ढा और सिमोनी सिंह के संवाद, और इस दौरान माधुरी दीक्षित के हावभाव देखने लायक हैं।
कुल मिलाकर कहा जाए तो मजा मा एक शानदार फिल्म है, जो गंभीर विषय को बड़ी संजीदगी और गंभीरता के साथ पर्दे पर रखती है। मजा मा एक ऐसे विषय पर आधारित फिल्म है, जिस बार समाज में खुलकर बात होनी चाहिए, क्योंकि घुटन मुक्त जीवन सबका अधिकार है।