66वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में बेस्ट फीचर फिल्म श्रेणी में राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल करने वाली गुजराती फिल्म हेल्लारो, जो 50वें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया में प्रदर्शित होने जा रही है, के निर्देशक अभिषेक शाह के साथ फिल्मी कैफे दीवाली के मौके हुई विशेष बातचीत के कुछ अंश, आपकी नजर:
सवाल – सिनेमाघरों की जगह फिल्म पुरस्कारों और फिल्म महोत्सवों में क्यों पहुंची हेल्लारो?
जवाब – मेरे दो पार्टनरों प्रतीक और मीत, इन्होंने एक दस्तावेजी फिल्म गूंगा पहलवान बनायी थी, 2015 के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में उनको नेशनल डेब्यु डायरेक्ट का अवार्ड मिला था, नॉन फीचर कैटेगरी में। इस समय दौरान उनको एक बात पता चली थी कि फिल्म फेस्टिवल में फिल्म भेजने के लिए केवल केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से प्रमाण पत्र हासिल करना अनिवार्य है, रिलीज करना नहीं। जब हमने फिल्म बनाना शुरू किया, तो हमने पहले ही एक योजना बना ली थी कि फिल्म को पुरस्कार के लिए भेजेंगे और उसके बाद रिलीज करेंगे। दूसरा कारण यह भी था कि कुछ फिल्म फेस्टिवल फिल्म को रिलीज होने के बाद एंट्री नहीं देते, इसलिए यह भी रणनीति थी कि फिल्म को बनाकर कुछ महीने रखेंगे और फिल्म उत्सवों में भेजेंगे। दरअसल, हेल्लारो की कहानी में कुछ ऐसा था, जो फिल्म फेस्टिवलों में चलने का दम रखता है। लोगों से जुड़ी हुई है। महिला सशक्तिकरण की बात है। इसलिए यह योजना बनायी।
सवाल – कास्टिंग डायरेक्ट से फिल्म डायरेक्टर बनने का निर्णय कैसे लिया?
जवाब – दरअसल, मैं बहुत सालों से नाटक लिखता आ रहा हूं। नाटकों का निर्देशन भी करता आ रहा हूं। मैं निर्देशन तो पहले से करता आ रहा हूं। जैसे कि मैंने पहले ही बताया है कि प्रतीक, मीत आयुष मेरे पार्टनर हैं। वह कॉर्परेट फिल्म, दस्तावेजी फिल्म और टीवी एड आदि बनाते हैं। मैं उनके लिए लिखता था। अचानक, यहां से ख्याल आया कि हम एक फीचर फिल्म बनाते हैं। मुझे निर्देशन में काफी अनुभव भी हो चुका था। ऐसे में सोचा कि अब एक फीचर फिल्म डायरेक्टर की जाए। मेरा शुरू से ही कहानी को अलग तरीके से कहने का ढंग है। मुझे यकीन था कि मैं इस कहानी को भी बेहतरीन तरीके से निर्देशित करूंगा।
सवाल – फिल्म निर्देशन डेब्यु हेल्लारो से ही करना क्यों सोचा?
जवाब – महिला सशक्तिकरण पर मुझको कुछ करना था। दरअसल, मैं नाटक लिखने वाला था। मुझे हमेशा से ऐसा लगता है कि हम किसी को नहीं बोल सकते कि तुम को ऐसे जीना है, तुमको ऐसे करना है। इस पर कुछ लिखना चाहता था। इसी दौरान मुझे एक लोककथा के बारे में पता चला। कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जो आपको विचार देती हैं। रोमियो जूलियट में दो प्रेमी हैं, उसमें से हजारों करोड़ों कहानियां बनकर सामने आ चुकी हैं। लोककथा का जो आधार था, वो मुझे काफी अच्छा लगा। यहां से मुझे एक और मूल विचार आया कि यदि इसको मैं महिला सशक्तिकरण और महिला शिक्षा के नजरिये से देखूं तो कुछ बेहतरीन निकलकर आएगा। जब मैंने लिखना शुरू किया तो ऐसी कहानी बनकर सामने आई, जो मुझको अपील कर रही थी। यह कहानी मेरे तीन पार्टनरों को भी अपील कर गई। उसके बाद कहानी बहुत सारे लोगों को सुनाई। यहां तक कि मेरी वाइफ और मेरे दोस्तों को भी सुनाई। उनकी ओर से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। मुझे अक्सर ऐसा लगता है कि फिल्मकारों को ऐसा करना चाहिए, विशेषकर जब आप किसी कहानी को बड़े स्तर पर कहने जा रहे हैं क्योंकि असल में कहानी दर्शकों के बीच ही आनी है। अच्छी प्रतिक्रियाओं के बाद इस पर फिल्म बनाने का विचार कर लिया।
सवाल – हेल्लारो को लेकर विदेशी बाजार में किस तरह की प्रतिक्रिया है?
जवाब – हम को सबसे ज्यादा इंक्वायरी विदेश से मिल रही है। यूएसए, कनाड़ा, मिडल ईस्ट, यूके, ऑस्ट्रेलिया, न्यूलैंड, अफ्रीका से भी डिस्ट्रीब्यूटर संपर्क में बने हुए हैं। हम जगहों पर फिल्म को रिलीज करने की तैयारी में हैं। अभी हम लोग इसी जद्दोजहद में पड़े हैं कि किसी को फिल्म दी जाए, और किसको नहीं। भारत और विदेश में फिल्म एक साथ रिलीज नहीं होगी। विदेश में दो हफ्तों के बाद रिलीज करने की योजना है।
गौरतलब है कि अभिषेक शाह निर्देशित फिल्म हेल्लारो भारत में 8 नवंबर में रिलीज होगी। इस फिल्म की 13 अभिनेत्रियों को 66वां नेशनल फिल्म ज्यूरी मेशन अवार्ड्स प्राप्त हुआ है।