शायर अकबर इलाहाबादी का एक शेयर, जो बड़ा मकबूल है, अचानक याद आया।
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
और इसको उल्टा करने का मन हुआ। जब ख़बर आई कि बैंगलुरू में कुछ कायरों ने घर में घुसकर एक बेबाक महिला पत्रकार गौरी लंकेश को गोलियों से भून डाला। जो कुछ ऐसा है कि
तर्क दे जाएं जवाब अगर, तो जमीन पर खून डालो
धमकियों से जो न डरे, उससे गोलियों से भून डालो!!
किसी राष्ट्र में लोकशाही हो या तानाशाही जुनूनी और कर्मनिष्ठ पत्रकार हमेशा एक जांबाज सैनिक की भूमिका अदा करते हैं। इसलिए पत्रकारिता को चौथा स्तम्भ कहा जाता है।
मुझे लगता है कि जब अकबर इलाहाबादी ने उक्त शेयर लिखा होगा, उस समय उनको आभास ही नहीं हुआ होगा कि लोकशाही राष्ट्र भारत में अख़बार निकालना, खुद की जान को जोखिम में डालना होगा।
उधर, विरोधी तर्क क्षमता हारने पर हथियार उठा लेंगे और जैसे गोडसे ने महात्मा गांधी को मार गिराया, ऐसे ही कुछ सनकी लोग आइना दिखाने वाले पत्रकारों को मार गिराएंगे।
मगर, हैरानी तो इस बात की है कि भारत अब उस समय से गुजर रहा है, जब सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकार को देशद्रोही, राष्ट्रविरोधी की संज्ञा दी जाती है और राष्ट्र के हुक्मरान चुप रहते हैं। कितनी दिलचस्प बात है ना, इस भारत के लोगों ने पर्दे के पत्रकारों को सर आंखों पर बिठाया था, तभी तो फिल्में बॉक्स आॅफिस पर अच्छा कारोबार करने में सफल हुई।
जी हां, पर्दे पर बहुत सारी फिल्में रिलीज हुई हैं, जिसके नायक नायिका पत्रकार की भूमिका में दिखे, और दर्शकों का दिल जीता।
फिल्म गुरू में आर माधवन ने खोजी पत्रकार की भूमिका निभायी, जो आम आदमी से कारोबारी बने गुरूकांत देसाई की हेराफेरी से पर्दा उठाता है।
फिल्म नायक द रियल हीरो में अनिल कपूर ने ईमानदार पत्रकार की भूमिका निभायी, जो लाइव इंटरव्यू में राज्य के मुख्यमंत्री को जनता के सामने नंगा करता है और एक दिन के लिए राज्य का मुख्यमंत्री बनने जैसी चुनौती स्वीकारता है।
घायल वन्स अगेन में सनी देओल ने एक अख़बार के संपादक की भूमिका अदा की, जो ख़बरों को प्रकाशित करने के साथ दूसरे अख़बारों के संपादकों को उठवाकर पीटने से भी पीछे नहीं हटता, जो पत्रकारिता के नाम पर दलाली करते हैं।
नो वन किल्ड जैसिका में रानी मुखर्जी ने महिला पत्रकार की भूमिका अदा की, जो अन्याय होता देखकर जैसिका लाल के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए अभियान चलाती है।
पेज 3 में कोंकणा सेन शर्मा ने ग्लैमरस और क्राइम बीट के पत्रकार की भूमिका निभायी, जो नौकरी की तलाश में मुम्बई पहुंचती है, और उसको ग्लैमर जगत की स्टोरियां करने को कहा जाता है। लेकिन, एक दिन कोंकणा सेन एक स्कैंडल का खुलासा करती है, जिसके बाद उसको नौकरी से हाथ धोना पड़ता है।
अंत में इतना ही कहूंगा कि पाकिस्तान के नागरिक जिस दलदल से निकलने के लिए हाथ पैर मार रहे हैं, भारत उसकी कट्टरवाद की दलदल में धंसने के लिए कदम बढ़ा रहा है।
चैन से सोना है तो जाग जाइए, नींद से नहीं, जमीर से।
संपादकीय
कुलवंत हैप्पी