नौकरी का पहला दिन, हफ्ते का पहला दिन और पहली पहली टास्क ‘कैश ऑन डिलीवरी’। हैंडसम डूड सिद्धार्थ, जो एक पार्सल डिलीवरी बॉय है, एक मैडम के घर कैश ऑन डिलीवरी पार्सल देने पहुंचता है। शहद सी बातें करके मैडम सिद्धार्थ को घर के अंदर बुला लेती है और रिसीव हस्ताक्षर किए बिना पार्सल को रूम में लेकर चली जाती है।
बैठक रूम में बैठा सिद्धार्थ मैडम के बाहर आने का इंतजार करता है और कुछ देर बाद सिद्धार्थ देखता है कि मैडम का मर्डर हो गया। सिद्धार्थ वहां से भाग निकलने की कोशिश करता है। ऐसी स्थिति में कोई भी सिद्धार्थ वाला कदम उठाएगा। लेकिन, सिद्धार्थ को एक अज्ञात नंबर से कॉल आता है। इसके बाद सिद्धार्थ फोन कॉल पर मिलने वाले आदेशों का पालन करता है, ताकि इस मर्डर केस से खुद को बचा सके।
सिद्धार्थ अपने मकसद को पूरा करने के लिए अपनी बिंदास बड़बोली गर्लफ्रेंड अदिति को भी अपने मिशन में शामिल कर लेता है। फिल्म के अंत में कई खुलासे होते हैं, और उस मैडम की हत्या करने वाला पुलिस हिरासत में पहुंच जाता, और अंत सिद्धार्थ अपने घर की छत पर खड़े होकर हंसता है।
कैश ऑन डिलीवरी एक बेहतरीन गुजराती क्राइम सस्पेंस थ्रिलर बन सकती थी। लगता है कि निर्देशक नीरज जोशी ने इसको क्राइम थ्रिलर के साथ साथ मसाला फिल्म बनाने के चक्कर में रोमांच और रहस्य बरकरार रखने पर ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया। जो काम नीरज जोशी सिद्धार्थ का किरदार गढ़कर करवा रहे हैं। वो काम तो अदिति पहले ही दिन कर सकती थी, जो लड़की फोटो खिंचवा सकती है, वो वायरल भी कर सकती है, जैसा वो सिद्धार्थ के लिए अंत में करती है।
नीरज जोशी ने सिद्धार्थ को ज्यादा तकलीफ न हो, इसलिए सबूत बड़ी आसानी से उसके सामने रख दिए हैं। अगर, मल्हार ठाकर थोड़ी सी और रिक्वेस्ट करते तो शायद पर्दाफाश करने वाले सभी दस्तावेज सिद्धार्थ के घर अपने पांव पर चलकर आ जाते। कहानी में बड़े कलाकारों की मौजूदगी दर्ज करवाने के लिए कुछ किरदार बेमतलब ठूंसे गए हैं, जिनकी जरूरत बिलकुल नहीं लगती। कलाकारों की संख्या बढ़ने से रायता कुछ ज्यादा ही फैल गया और निर्देशक समेटने में बुरी तरह असफल दिखे।
मल्हार ठाकर के पास भाग दौड़ करने के अलावा कुछ नहीं था। छह सात सीनों में मल्हार ठाकर प्रभाव छोड़ते हैं, विशेषकर एक घर में छुपने वाले किरदार में। व्योमा नाणदी, जो अदिति के किरदार में हैं, बोल्ड लड़की के रूप में प्रभाव छोड़ती हैं। इसका एक दूसरा कारण यह भी है कि उसके हिस्से चुटीले और दोअर्थी संवाद आए हैं।
कैश ऑन डिलीवरी में पकड़ बनाए रखने के लिए निर्देशक ने गाने डालने से गुरेज किया, लेकिन, बैकग्राउंड म्यूजिक बेहद घटिया दर्जे का चुना है, विशेषकर शालिनी के घर रखी गुजरात प्राइड पार्टी के समय बजने वाला।
फिल्म कैश ऑन डिलीवरी अंतिम पलों में पकड़ बनाने लगती है या कहें फिल्म के अंत में निर्देशक दर्शकों को पकड़ने की कोशिश करता है, जो सांप निकलने के बाद लीक पीटने के बराबर है। फिल्म में कसावट, थ्रिलर के अनुकूल म्यूजिक और किरदारों की कांट छांट करने की बेहद जरूरत थी।
चलते चलते… कैश ऑन डिलीवरी : क्राइम थ्रिलर बनाने की असफल कोशिश।
कुलवंत हैप्पी