Friday, November 22, 2024
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Movie Review : अनीस बज्‍मी की पागलपंती

पनौती, मनहूसियत और बैडलक तीनों, जिसके जीवन में भी प्रवेश करते हैं, उसके जीवन में बर्बादी और मुसीबतें आमंत्रण के बिना ही नंगे पांव दौड़ी चली आती हैं। कुछ ऐसा ही होता है, राजा साहब और गैंगस्‍टर्स वाईफाई भाई के जीवन में, जब पार्सल की डिलिवरी देने आए तीन लड़कों राजकिशोर, जंकी और चंदू को पार्सल के हुए नुकसान की भरपाई के लिए राजा साहब उनको अपने घर पर नौकर रखते हैं। राजा साहब का पतन और फिर से उनका आबाद होना पागलपंती भरी यात्रा है, जिसमें ठहाके भी हैं, थोड़ी सी उफ करने वाली मूमेंट्स भी हैं।

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अनीस बज्‍मी ने बैंकों का पैसा हड़प कर विदेश भाग चुके एक कर्जदार नीरज मोदी को कहानी में बेहतरीन तरीके से फिट किया है, जो सरप्राइजिंग एलिमेंट के तौर पर उभरकर सामने आता है। नीरज मोदी के किरदार को अनीस बज्मी ने खूबसूरती से लिखा है।

इस फिल्‍म में इंटरवल से पहले फुल पागलपंती है और इंटरवल के बाद पागलपंती के साथ साथ समझदारी आ जाती है। फिल्‍म के दोनों ही हिस्‍से मनोरंजन करने में सशक्‍त हैं।

किसी भी कॉमेडी फिल्‍म के सीन और संवाद दर्शकों को प्रभावित करते हैं। यहां पर अनीस बज्‍मी ने सीनों पर कड़ी मेहनत की है। यह भी कह सकते हैं कि अनीस बज्‍मी की स्‍टार कास्‍ट काफी दमदार है, जैसे कि सौरभ शुक्‍ला, अनिल कपूर, बृजेंद्र काला, इनामुलहक, अरशद वारसी। इन कलाकारों ने अपने अभिनय से कुछ कॉमिक सीनों को लाजवाब बना दिया है।

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सौरभ शुक्‍ला ने राजा साहब के किरदार में जान डाल दी है। अनिल कपूर वाईफाई भाई के किरदार में ठीक ठाक लगे। बृजेंद्र काला ने मामा का किरदार बाखूबी निभाया। इनामुहक ने नीरज मोदी के किरदार को एकदम बेहतरीन तरीके से अदा किया है।

जॉन अब्राहम गंभीर और सरल सीनों में जबरदस्‍त लगे, लेकिन, कॉमिक सीनों में चूके हुए नजर आए। पुलकित सम्राट ने अपने किरदार को बहुत हल्‍के में लिया। अरशद वारसी का काम हर बार की तरह अच्‍छा है। उर्वशी रौतेला की खूबसूरती अच्‍छी लगती है। कृति खरबंदा अपने किरदार को पकड़े रखती हैं। इलियाना डिक्रूज का आकर्षक चेहरा फिल्‍म की रौनक है।

अनीस बज्‍मी को कुछ सीनों पर कैंची चलानी चाहिए थी। संपादन के दौरान गीतों को सही जगह फिट नहीं किया गया, जो ऐसे में स्‍पीड ब्रेकर मालूम होते हैं। फिल्‍म के संवाद और सीन दोनों बेहतरीन रचे गए हैं। यह फिल्‍म मनोरंजन के साथ साथ देशप्रेम का संदेश भी देती है।

अनीस बज्‍मी की पागलपंती की सबसे अच्‍छी बात तो यह है कि यह दो अर्थे शब्‍दों से परे है और बहुते अंगप्रदर्शन और रोमांस से दूर है, जो इस फिल्‍म को परिवार में बैठकर देखने लायक बनाती है। पागलपंती कॉमेडी शैली की भले ही उत्‍कृष्ट फिल्‍म न हो, पर इस शैली की घटिया फिल्‍म भी नहीं कहा जा सकता। पागलपंती एक औसत कॉमेडी फिल्‍म से बेहतरीन है। यदि पागलपंती का मजा लेना हो तो दर्शक बनकर जाइए, यदि किंतु परंतु करने जाना है, तो समय और पैसा दोनों ख़राब होने की संभावनाएं हैं।

– कुलवंत हैप्‍पी  | filmikafe@gmail.com | Facebook.com/kulwanthappy | Twitter.com/kulwanthappy|

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कुलवंत हैप्‍पी, संपादक और संस्‍थापक फिल्‍मी कैफे | 14 साल से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय हैं। साल 2004 में दैनिक जागरण से बतौर पत्रकार कैरियर की शुरूआत करने के बाद याहू के पंजाबी समाचार पोर्टल और कई समाचार पत्रों में बतौर उप संपादक, कॉपी संपादक और कंटेंट राइटर के रूप में कार्य किया। अंत 29.01.2016 को मनोरंजक जगत संबंधित ख़बरों को प्रसारित करने के लिए फिल्‍मी कैफे की स्‍थापना की।
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