कहने को सड़क 2, संजय दत्त, पूजा भट्ट अभिनीत सड़क की उत्तर कथा है। पर, असल में आलिया भट्ट, आदित्य रॉय कपूर अभिनीत सड़क 2 एक स्वतंत्र कहानी है।
इस कहानी के केंद्र में आर्य नामक लड़की है। आर्य की मां इस दुनिया में नहीं है। आर्य को शक है कि उसकी मां को उसकी सगी मौसी ने उसके पिता के साथ शादी करने के लिए मरवा दियाा है और इस सबके पीछे उसकी मौसी के अध्यात्म गुरू का हाथ है।
अपना बदला लेने के लिए आर्य गुरूजी के कटआउट को आग लगा देती है और इस घटना को सोशल मीडिया पर वायरल करती है। गुरूजी के शिष्य और आर्य के पिता, सौतेली मां अर्थात मौसी आर्य को पकड़ लेते हैं और मनोरोग चिकित्सालय ले जाते हैं।
यहां पर राम किशोर पहली बार दूर से आर्य को देखता है। राम किशोर अपने दोस्त के साथ यहां अपनी दिमागी हालत का मुआयना करवाने आया होता है। आर्य अस्पताल से भाग जाती है।
इसके बाद, आर्य कैलाश जाने के लिए रवि किशोर के गैरिज में पहुंचती है। जहां पर रवि किशोर आत्महत्या करने की कोशिश कर रहा होता है। आर्य की दस्तक से रवि किशोर की कोशिश विफल हो जाती है।
आर्य रवि किशोर को कैलाश चलने के लिए राजी कर लेती है। कैलाश यात्रा पर निकली आर्य जब रवि किशोर से अपने दोस्त विशाल को सेंट्रल जेल से पिकअप करने के लिए कहती है, तो रवि किशोर को आर्य पर संदेह होता है। अपने संदेह को खत्म करने के लिए रवि किशोर आर्य से उसके अतीत के बारे में पूछता है। उधर, गुरूजी के शिष्य आर्य को रास्ते से हटाने के लिए सक्रिय हो जाते हैं। जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है, वैसे वैसे कई रहस्यों से पर्दा उठता है।
क्या आर्य कैलाश पहुंच जाएगी? गुरूजी किसी के इशारे पर आर्य को रास्ते से हटाना चाहते हैं?
आलिया भट्ट का चार्मिंग फेस स्क्रीन पर नजर चस्पाए रखने पर मजबूर करता है। आर्य के किरदार में आलिया भट्ट का अभिनय भी बेहतरीन है। आदित्य रॉय कपूर आर्य के प्रेमी के किरदार में ठीक ठाक लगता है। संजय दत्त में 1990 के दशक वाला दम खम नहीं है। सच तो यह है कि सड़क 2 में बेमतलब संजय दत्त को ठूंसा गया है।
जीशु सेनगुप्ता ने योगेश देसाई का किरदार अच्छे से निभाया है, पर, इस किरदार पर और काम करने की जरूरत थी। मकरंद देशपांडे ने गुरूजी का किरदार बेहतरीन निभाया, पर, बहुत सारे किरदारों को संभालने के चक्कर में निर्देशक इस किरदार को बनता फुटेज देने से चूक गए।
महेश भट्ट ने सड़क 2 का निर्देशन करने के साथ साथ लेखन भी किया है। लेखन में महेश भट्ट का साथ सुहृता सेनगुप्ता ने दिया है। कहानी में बिखराव साफ साफ नजर आता है, जो फिल्म सड़क 2 देखने के जायके को ख़राब करता है। फिल्म संपादन में कसावट की कमी खलती है, पर, जब स्क्रीनप्ले ही आवारा हो, तो फिल्म संपादक भी क्या कर सकता है। सिनेमेटोग्राफी बेहतरीन है। संगीत भी फिल्म के हिसाब से ठीक ठाक है।
फिल्म सड़क 2 के अंतिम कुछ मिनट सुकून देते हैं। फिल्म सड़क 2 का संदेश भी समझ आता है।
ऐसा लगता है कि सड़क 2 की कहानी एक पारिवारिक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म के लिए लिखी गई थी, जिसको बाद में तोड़ मरोड़ कर सड़क की उत्तर कथा सड़क 2 बना दिया गया। इस तोड़ मरोड़ ने मूल कहानी का गला घोंट दिया। नतीजन, कहानी न तो सड़क के राम किशोर पर फॉक्स कर पाती है और नाहीं सड़क 2 की आर्य के परिवार को पूरी तरह से फुटेज दे पाती है।
कुल मिलाकर सड़क 2 निराश करती है, हालांकि, इस फिल्म को एक बार देखा जा सकता है क्योंकि इसको OTT पर रिलीज किया गया है, यदि आपने सब्सक्रिप्शन लिया हुआ है, तो आपके पास फॉरवर्ड का विकल्प है।