अंग्रेजी फिल्म वारा और ढेरों अवार्ड जीतने वाली भोर में अपने अभिनय का जलवा बिखेरने वाले अभिनेता देवेश रंजन और प्रयोगधर्मी लेखक-निर्देशक पुष्पेंद्र आल्बे की बॉलीवुड फिल्म जूठन की शनिवार (9 मार्च) को नई दिल्ली में राष्ट्रीय दलित साहित्यिक कांफ्रेंस में स्पेशल स्क्रीनिंग आयोजित की गई. जूठन शिक्षा में जातिगत भेदभाव पर बात करती है.
Read in English : Pushpendra Albe’s film ‘Joothan’ receives standing ovation in its special screening
स्पेशल स्क्रीनिंग में मूलनिवासी सभ्यता संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. प्रभाकर निसरगंध, विख्यात दलित चिंतक रमेश भंगी, डा. रामप्रताप नीरज, शिवनाथ शिलबोधी, प्रख्यात मलयालम फिल्म गीत लेखिका मृदुला देवी आदि ने शिरकत की. साथ ही दलित लेखक संघ, नव दलित लेखक संघ, जन-विकल्प, बोधिसत्व मिशन मासिक पत्रिका, डिपरेस्ड एक्सप्रेस मासिक पत्रिका, डा. भीमराव अंबेडकर साहित्यिक विचार मंच, बिहार-झारखंड बहुजन लेखक संघ, भारतीय दलित साहित्यिक समिति के सदस्य भी स्क्रीनिंग में मौजूद रहे.
संजीदा अभिनय के लिए विख्यात देवेश रंजन की मुख्य भूमिका वाली जूठन का निर्माण पुष्पेंद्र आल्बे और निकिल प्रणव आर की कंपनी एडाप्ट ए स्कूल फिल्म्स ने किया है. फिल्म के क्रिएटिव प्रोड्यूसर मिलन गुप्ता हैं, वहीं पब्लिशिटी डिजाइन रोहित पंवार ने की है. फिल्म में नरेश कुमार (बाहुबली फ्रेंचाइजी फेम), विक्रम सिंह (भाग मिल्खा भाग, मिर्जियाॅ फेम), कुलदीप कुमार, संदीप गुप्ता, रिमझिम राजपूत और दिनेश शर्मा (इश्कियां, तनु वेड्स मनु और कागज फेम) भी अहम् भूमिकाओं में है.
“हकीकत यह है कि सरकार की तमाम ईमानदार कोशिशों के बावजूद जातिगत भेदभाव अभी भी समाज को खोखला कर रहा है, खासकर ग्रामीण भारत में. इससे भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात यह कि दलित समाज के बच्चों की शिक्षा इस जातिगत भेदभाव की वजह से हाशिए पर है” पुष्पेंद्र आल्बे ने बताया.
आॅक्सफाम की रिपोर्ट के मुताबिक देश में स्कूल छोड़ने वाले एससी-एसटी और ओबीसी तबके के बच्चों की संख्या अन्य तबकों से कहीं ज्यादा है. स्कूल बीच में ही छोड़ देने वाले 60 लाख बच्चों में से 75 फीसदी बच्चे दलित या आदिवासी हैं.
“जूठन इसी मुद्दे पर बात करती है कि शिक्षा पर सबका बराबर अधिकार है. दलित समाज के बच्चों को सिर्फ इसलिये शिक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे निचले तबके के हैं. शिक्षा में ये छूआछूत हमारे देश के एक वैश्विक महाशक्ति बनने में सबसे बडी रूकावट है” पुष्पेंद्र आल्बे ने अपनी बात रखते हुए कहा.
एक हैरान करने वाला तथ्य यह भी है कि देश की प्राथमिक स्कूलों में पांच में से चार महिला शिक्षक ऊपरी तबके के हैं. इसी तरह हर पांच में से एक पुरूष शिक्षक भी ऊपरी तबके से है.
“जातिगत भेदभाव की शुरुआत यहीं से होती है. इंटरनेट पर सर्च करें तो पता चलता है कि दलित बच्चों के साथ जातिगत भेदभाव में सबसे बडी भूमिका शिक्षक ही निभाते हैं, जो अधिकतर मौकों पर ऊपरी तबके से संबंध रखते हैं” पुष्पेंद्र आल्बे ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा.