भारत के संविधान को बचाने की दुहाई देकर सरकार के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई लड़ी जा रही है। जहां प्रदर्शनकारियों ने सरकार को तानाशाह और कथित तानाशाह सरकार ने विरोधियों को गद्दार कहकर संबोधित करना शुरू कर दिया है। दोनों पक्षों के समर्थक संसदीय भाषा भूल चुके हैं या दूसरे शब्दों में कहें भारतीय चूक गए हैं। हैरानी की बात तो यह है कि इस लड़ाई में सीधे तौर पर सरकार और जनता आमने सामने है।
विश्व को अहिंसा और धर्म का पाठ पढ़ाने वाले दुनिया के सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत के आंगन में इनदिनों एक अजीब सा तमाशा चल रहा है और दुनिया उस तमाशे को देख रही है और कुछ इतिहासकार इस तमाशे को पन्नों में समेटकर आने वाली पीढ़ी के लिए रख रहे होंगे, ताकि नयी पीढ़ी इस समय में झांक कर अपने पुरखों को देख सके।
देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर बार की तरह इस बार भी महत्वपूर्ण मुद्दों पर मौन मुद्रा में हैं। पर, उनके अधीनस्थ मंचों से लगातार देश की एक विशेष जमात को गद्दार की संज्ञा दे रहे हैं। बदले में सरकार की आलोचना करने वाले मुखर हो रहे हैं और मुखरता इस हद तक पहुंच चुकी है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को असंसदीय भाषा में संबोधन करते हुए भी विरोधियों के हाथ भी कंपकंपा नहीं रहे हैं।
लोकतंत्र यदि एक सरकार चुनने की आजादी देता है, तो दूसरी तरफ लोगों को उनकी बात और समस्या रखने की आजादी देता है। लेकिन, लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई और सरकार की अपनी हठ को मनवाने की जदोजहद में देश दो गुटों में बंट चुका है।
उधर, भाजपा के युवा नेता और केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर दिल्ली में एक रैली के दौरान सरेआम खड़े होकर कहते हैं, ‘देश के ग़द्दारों को , गोली मारो सालों को।’ एक रैली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का विरोध करने पर एक युवक को सरेआम कथित तौर उनके सामने पीट दिया जाता है। सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाकर शाहीन बाग को तौहीन बाग कह जाता है। शाहीन बाग की महिलाओं के चरित्र पर लगातार कीचड़ उछाला जा रहा है। लेकिन, सरकार एक शब्द तक नहीं बोलती।
उधर, सरकार की ऐसी बेरुखी से नाराज और तल्ख लोग बदजुबानी पर उतर आएं हैं। इसका ताजा उदाहरण अनुराग कश्यप है। अनुराग कश्यप ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ जिस तरह की अशोभनीय टिप्पणी की है, वो सच में हैरान करने वाली है।
इस टिप्पणी में अनुराग कश्यप के क्रोध का चरम, क्षुब्धता का अंत, और गुस्से का बेकाबू होना साफ साफ झलक रहा है। साफ साफ तौर पर इस तरह की टिप्पणियां अशोभनीय हैं। ऐसी टिप्पणियों से बचना चाहिए। लेकिन, क्यों कोई जान जोखिम में डालकर कोई ऐसी टिप्पणियां करने पर उतारू हो रहा है। उस पर भी विचार करने की सख्त जरूरत है। हम इस तरह के वातावरण में लंबे समय तक जी नहीं सकते।
हर तरफ नकारात्मक माहौल बनता जा रहा है। सोशल मीडिया पर झूठ और अफवाहों का दौर बल पकड़ रहा है। कभी सरकार समर्थकों की ओर से एक विशेष जमात को गाली दी जा रही है और कभी सरकार की नीतियों के खिलाफ खड़े एक समूह की ओर से। शायद देश में पहली बार हुआ कि मनोरंजन करने वाले सिनेमा हॉल एक गुट ने राष्ट्रवाद की कसौटी बना दिया।
जितनी अनुराग कश्यप की टिप्पणी अशोभनीय और निंदनीय है। देश का वातावरण उतना ही शोचनीय है। यदि ऐसे ही लोगों का गुस्सा गालियों के रूप में बाहर आने लगा, तो नतीजे गंभीर होंगे। 5 ट्रिलियन की अर्थ व्यवस्था के सपने धरे के धरे रह जाएंगे। और देश एक गृह युद्ध का शिकार हो जाएगा, जिसके जख्म भरने में सदियों का सफर तय करना पड़ेगा।