सहसा यकीन नहीं होता। विनोद खन्ना जी आज (27 April 2017) हमें छोड़ कर चले गए। एक ऐसी यात्रा पर जिससे वो लौटेंगे नहीं। उनकी वो गर्मजोशी जो अपनेपन का एहसास देती थी – वो मुस्कुराहट जो उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व को और प्रखर बनाती थी – ये सब अब अतीत का हिस्सा बन चुके हैं।
ये एक अजीब इत्तेफाक था कि जब मुंबई में करियर की शुरुआत की तो पहले मुहूर्त शॉट में मैंने अपने पास जिस बड़े सेलेब्रेटी को पाया वो विनोदजी थे। दशकों बाद दिल्ली में उनका आखिरी आशियाना बना वो मकान जिसे मैं 2014 के चुनाव के बाद छोड़ रहा था। विनोदजी खासतौर से उसमें ही शिफ्ट करना चाहते थे। विनोदजी और कविताजी दिल्ली के महादेव रोड के 20 नंबर मकान पर पर आए थे। और मैंने सहसा कह दिया था कि अब मुझे इस मकान से कोई भी चीज ले जेने की जरूरत नहीं – मेरा भाई ही इस मकान में आ रहा है।
वो ओशो के पास जाते इसके पहले 1982 में उनके साथ फिल्म दौलत करने का मौका मिला था। एक बड़े स्टार के स्टेटस ने उन्हें कभी नहीं लुभाया, कभी कमजोर नहीं कर पाया और एक झटके में आध्यात्म की डोर से खिंचकर वे सन्यासी हो गए थे। सालों योगी की तरह जीवन बिताकर जब वे लौटे तो मैंने उनके साथ 1989 में सूर्या और महादेव जैसी फिल्में की और वापस उन्हें उतना ही सहज और सरल पाया।
उन्हें न तो कभी बंबई की चकाचौंध अपनी ओर खींच पाई और ना ही दिल्ली की सत्ता की ताकत। 4 बार सांसद रहे भारत सरकार में मंत्री रहे लेकिन शायद ही किसी ने उन्हें किसी के बारे में कुछ बुरा कहते सुना हो। वो घुमक्कड़ और अलमस्त थे। बनावटीपन ने उन्हें न कभी छुआ और नहीं बनावटी लोग उनके संपर्क में कभी आ पाए ।
पिछले दिनो उनकी अस्पताल वाली तस्वीर देखी तो कलेजा मुंह को आ गया। चेहरे के सामने वो मेरा गांव मेरा देश और मेरे अपने वाले बांके विनोद खन्ना की तस्वीर घूम गई … वो कुर्बानी, बंटवारा और दयावान वाले खूबसूरत एक्टर विनोद खन्ना की तस्वीर। वो सौम्य जिंदादिल इंसान की तस्वीर। फिल्मों में ही नहीं वो निजी जीवन में भी सुपरस्टार थे। उनके साथ बिताए पल हमेशा याद आएंगे । विनोद खन्ना जी को भावभीनी श्रद्धांजलि।
नेता और अभिनेता राज बब्बर की कलम से – चित्र और पत्र स्रोत फेसबुक