भारत में मन को झिंझोड़ और छू लेने वाली लोक कथाओं की कमी नहीं, लेकिन, उन कथाओं को बड़े पर्दे पर लाकर उनके साथ न्याय करने वाले बहुत कम निर्माता निर्देशक हैं। हाल ही में रिलीज हुई गुजराती फिल्म हेल्लारो, जो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित है, भी एक लोक कथा से प्रेरित है।
एक लोक कथा को आधार बनाकर अभिषेक शाह ने महिलाओं की वेदनाओं और संवेदनाओं के इर्दगिर्द घूमती हेल्लारो की कहानी रची है। फिल्म की कहानी शहर से रण कच्छ इलाके में ब्याही मंजरी के ईदगिर्द डोलती है, जो जीवन को उत्साह और खुलेपन के साथ जीती है और आगे भी जीना चाहती है। कहानी की नायिका मंजरी, या तो जीवन चाहती है या मृत्यु, बीच की जिंदगी उसको पसंद नहीं। लेकिन, जिस गांव में उसकी शादी हुई है। वहां महिलाएं केवल भोग विलास की वस्तू हैं।
एक दिन मंजरी और उसके गांव की अन्य महिलाएं दूर तालाब से पानी भर कर लौट रही होती हैं कि अचानक उनके रास्ते में भूख प्यास से तड़प रहा एक ढोली आ जाता है। किसी भी महिला की हिम्मत नहीं होती कि गांव की मर्यादा लांघकर उसको पानी पिलाए। लेकिन, मंजरी मर्यादा लांघकर उसको पानी पिलाती है। यहां से शुरू होती है परिवर्तन की लहर, अब मंजरी के साथ साथ गांव की अन्य महिलाएं भी चोरी छिपे गरबा खेलने लगती हैं। खुले आसमान के तले नाचते हुए अपने आप में खोने लगती हैं, आनंदित होने लगती हैं। अचानक उनकी खुशियों को नजर लग जाती है। बात गांव तक पहुंच जाती है, इसके बाद जो भी होता है, वो देखने लायक है। लेकिन, इसके लिए फिल्म हेल्लारो देखनी होगी।
निर्देशक अभिषेक शाह का काम सराहनीय है। हर कलाकार को अनिवार्य फुटेज दिया है और फिल्म को बाजारवाद के प्रभाव से दूर रखा है। गंभीर कहानी को मनोरंजक तरीके से कहने के लिए हंसी ठिठोली वाले सीन भी बेहतरीन तरीके से फिल्माए और ठीक अंतराल पर फिट किए गए हैं।
चोरी छिपे गरबा खेलती महिलाओं की चोरी पकड़े जाने पर उनके शरीर में होने वाली पहली प्रतिक्रिया ‘कांपन’ को कैद करते, गरबा करने के बाद महिलाओं के भीतर की खुशी उनके चेहरों और हाव भावों से प्रकट करने वाले, उनके साथ होने वाली मारपीट के सीनों को आवाजों के द्वारा दर्शकों तक पहुंचाने वाले और अपशुगनियों वाले सीन, म्यूजिक और नृत्य का जबरदस्त कॉम्बिनेशन दिल को छूते हैं। फिल्म के संवाद कानों से होकर दिल की गहराई तक पहुंचते हैं और गहन चोट करते हैं।
श्रद्धा डांगर, मंजरी के किरदार के लिए उत्तम पसंद है। मौलिक नायक अपने किरदार के साथ न्याय करते हैं, जैसे ही मौलिक नायक पर्दे पर आता है, दर्शकों के चेहरे पर हंसी आती है। जयेश मोरे ने ढोली मुल्जी के किरदार को बड़ी खूबसूरती के साथ निभाया है। अर्जव त्रिवेदी भी कड़क स्वभाव के पति के रूप में जंचते हैं। अन्य कलाकारों ने भी बेहतरीन काम किया है।
फिल्म का नृत्य और गीत संगीत दोनों ही अद्भुत हैं। फिल्म का संगीत पक्ष तकनीकी तौर पर भी काफी मजबूत है, जो फिल्म की खूबसूरती को बढ़ाता है। हेल्लारो जैसी उम्दा कहानी के लिए उम्दा सिनेमेटोग्राफी का होना अनिवार्य था, जो इस फिल्म में है।
हेल्लारो गुजराती सिनेमा की ही नहीं बल्कि भारतीय सिनेमा की एक बेहतरीन फिल्म है।
– कुलवंत हैप्पी | filmikafe@gmail.com | Facebook.com/kulwanthappy | Twitter.com/kulwanthappy|