मर्दानी 2 को यदि शॉर्ट में कहें तो शिवानी शिवाजी रॉय, पुलिस अधिकारी, एक युवा और क्रूर सनकी बलात्कारी हत्यारे को पकड़ने का प्रयास करती है, जो लड़कियों के साथ बलात्कार और उनकी हत्या करता है।
स्क्रीन प्ले के अनुसार कहें तो कहानी कोटा शहर में आयोजित एक मेले से आरंभ होती है। जहां पर 21 वर्षीय सन्नी, जो किसी की हत्या करने के लिए कोटा शहर आता है, अपनी कामुक तलब का परिचय देते हुए एक लड़की को अपना पहला शिकार बनाता है। इस केस की छानबीन शिवानी रॉय करती है। शिवानी रॉय की मीडिया के सामने कही एक बात सन्नी को कांटे की तरह चुभ जाती है और सन्नी शिवानी रॉय के साथ शह और मात का खेल खेलना शुरू करता है। फिल्म के अंत में शिवानी सन्नी तक पहुंच जाती है। लेकिन, इसके बीच सनकी, बलात्कारी और हत्यारा सन्नी कोटा पुलिस की नाक तले बहुत कुछ करता है, जिसको देखने के लिए मर्दानी 2 देखनी होगी।
मर्दानी 2 की कहानी खुद निर्देशक गोपी पुतरन ने लिखी है, जो इससे पहले यशराज फिल्म्स के लिए लफंगे परिंदे जैसी फिल्म का स्क्रीन प्ले और कहानी लिख चुके हैं। गोपी पुतरन ने अपने कलाकारों से बेहतरीन काम लिया है, विशेषकर युवा अभिनेता विशाल जेठवा से, जो फिल्म में बलात्कारी और हत्यारे सन्नी का किरदार निभाता है।
सन्नी के हिस्से के सीन और संवाद दोनों पर जबरदस्त काम हुआ है। दरअसल, मर्दानी 2 एक सनकी, बलात्कारी और हत्यारे को चमकाती है। कहीं न कहीं गोपी एक साइको थ्रिलर बनाने के मूड में थे, ऐसा प्रतीत होता है। सन्नी के किरदार की चमक रानी मुखर्जी के किरदार को धुंधला कर देती है। रानी मुखर्जी सन्नी और मर्दवादी सोच वाले समाज के बीच ऐसे झूलते हुए नजर आती है, जैसे दीवार घड़ी में पैंडुलम।
फिल्म मर्दानी 2 की शुरूआत बलात्कार की घटना से होती है, लेकिन, आगे चलकर फिल्म में राजनीतिक रंजिश, सस्पेंस, नौकरीपेशा औरतों के प्रति मर्दवादी का समााज की सोच और न जाने क्या क्या शामिल कर दिया जाता है, जो कहानी को दिशा से भटकाता है।
फिल्म में एक जगह रानी मुखर्जी को लंबा और शानदार संवाद दिया गया है, जो मर्दवादी समाज को आईना दिखाने के लिए शामिल किया गया। लेकिन, अंत में रानी मुखर्जी उर्फ शिवानी रॉय एंकर की बात ‘औरतों और पुरुषों में एक बुनियादी फर्क होता है’ को सही साबित कर जाती हैं, जब सन्नी की धुलाई करने के बाद फुटफुट कर रोने लगती हैं।
शुरूआती सीनों में रानी मुखर्जी का दमखम दिखता है, उसके संवाद भी प्रभाव छोड़ते हैं। लेकिन, बाद में रानी मुखर्जी का किरदार चमक खोने लगता है। सनकी और हत्यारे सन्नी के संवादों को इतना चटाकेदार बना दिया कि उसकी करूरता भरी हकरतों पर गुस्सा आने की वजह उसकी चुटीली बातों पर हंसी छूट जाती है। फिल्म के अंत को थोड़ा सा सिरहन और कम्पन पैदा करने वाला बनाने की जरूरत थी, जो गोपी करने में असफल रहे हैं।
स्क्रीन प्ले में काफी खामियां हैं, जो फिल्म को तकनीकी रूप से कमजोर बनाती हैं। हालांकि, यदि दर्शक दिमाग न लगाएं तो सब कुछ सहज लगता है। इसके शुरू और अंत में बलात्कार से संबंधित लिखित जानकारियां आती हैं, लेकिन फिल्म किसी निष्कर्ष पर लेकर नहीं जाती, यह केवल एक साइको किलर और पुलिस अधिकारी के बीच की जद्दोजहद बनकर रह जाती है, जो मनोरंजन करते हुए अंत की ओर बढ़ती हैं।
एक फिल्म के रूप में काफी कमी पेशियों के बावजूद रानी मुखर्जी की मर्दानी 2, जो गीतों से मुक्त है, को एक बार देखा जा सकता है क्योंकि यह बलात्कार और करूर हत्या की पृष्ठभूमि पर महिला सशक्तिकरण की बात पर जोर देती है और उन लोगों के मुंह पर जोरदार थप्पड़ मारने की कोशिश करती है, जो औरत को कहते हैं, छोड़ तेरे बस की बात नहीं।