अंग्रेजों की औलाद से खचाखच भरे एक ऑडिटोरियम के मंच पर बिहार का फुगा खड़ा है। फुग्गा वो स्टूडेंट है, जो आनंद कुमार की क्लास को बीच रास्ते छोड़कर भाग जाता है और आनंद कुमार के मुश्किल वक्त में उसके साथ आकर चट्टान की तरह खड़ा रहता है। भारत देश की प्रशंसा के साथ अपना संबोधन शुरू करने वाला फुगा आनंद कुमार की कहानी कहता है।
आनंद कुमार की कहानी उसके कॉलेज में आयोजित एक सम्मान समारोह से शुरू होती है। जहां पर शिक्षा मंत्री अपनी टूटी फूटी इंग्लिश के साथ हास्यजनक स्पीच देते हैं। मध्यवर्गीय परिवार में पैदा हुआ आनंद बहुत ही साधारण टाइप का छोकरा है। लेकिन, उसकी गर्लफ्रेंड बहुत की खूबसूरत और अमीर घर की है।
पढ़ने में अव्वल दर्जे के आनंद कुमार को कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से दाखिले के लिए हरी झंडी मिल जाती है। लेकिन, काफी हाथ पैर मारने के बावजूद भी आर्थिक तंगी के कारण आनंद कुमार का कैंब्रिज में पढ़ने जाने का सपना टूटता है और वक्त का कहर भी। ऐसे में आनंद कुमार अपने सपनों के साथ समझौता कर खुद को वक्त के साथ ढाल देता है।
गलियों में पापड़ बेचते बेचते एक दिन उसकी मुलाकात एक शिक्षण संस्थान के सीईओ से हो जाती है और यहां से जन्म लेता है एक नया आनंद कुमार, जिसके पास नौकरी है, शौहरत है और दौलत भी। लेकिन, कुछ समय बाद एक रात कुछ ऐसा होता है, जो इस नये आनंद कुमार को एक दूसरा आनंद कुमार बनने के लिए प्रेरित करता है। आगे की कहानी के लिए तो सुपर 30 देखनी होगी।
क्वीन से कंगना रनौट को बॉलीवुड क्वीन बनाने वाले निर्देशक विकास बहल ने सुपर 30 पर सख्त मेहनत की है। इसका सबूत सुपर 30 देखते हुए मिलता है। कसावट भरी पटकथा को चुटीले संवादों के साथ रोचक बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी गई। फिल्म का संपादन भी शानदार है। नतीजन, फिल्म की कहानी बोरियत से नहीं भरती। खुशी से भरी भावुकता वाले सीनों को बहुत खूबसूरत के साथ फिल्माया गया है। आनंद कुमार के परिवार का हर किरदार दिल को छूने वाला है, विशेषकर मां बाप। फिल्म में बहुत ऐसे सीन और संवाद हैं, जो दिल को छू जाएंगे और आपको याद रहेंगे।
ऋतिक रोशन अपनी पीढ़ी के शानदार स्टार और अभिनेता हैं। इस बात का सबूत देने से ऋतिक रोशन इस बार भी नहीं चूके। मृणाल ठाकुर, जो ऋतिक रोशन की प्रेमिका बनी हैं, की खूबसूरती, मासूमियत और चुलबलाहट स्क्रीन को खूबसूरत बनाए रखती है। आदित्य श्रीवास्तव, पंकज त्रिपाठी, वीरेंद्र सेक्सना और अमित साध ने अपने अपने किरदारों को बड़ी ईमानदारी के साथ निभाया है।
सुपर 30 को कैमरा वर्क और ग्राफिक्स दोनों ही बेहतरीन दर्जे के मिले हैं, जो फिल्म की जरूरत भी लगते हैं। गीत संगीत फिल्म के माहौल अनुकूल है, जो ज्यादा अच्छा भी नहीं लगता और अखरता भी नहीं। दरअसल, गीतों की सिनेमेटोग्राफी आंखों को सुकून देती है।
हर भारतीय फिल्म की तरह आनंद कुमार की बायोपिक सुपर 30 भी खुशनुमा अंत के साथ अपना पर्दा गिराती है। हालांकि, आनंद कुमार के जीवन को रील में डालने के लिए कुछ काल्पनिक सीनों को भी फिल्म में जगह दी गई है। जैसा कि हम जानते हैं, कड़वी दवा थोड़े से शहद के साथ लेनी पड़ती है।
कुल मिलाकर कहें तो ऋतिक रोशन की सुपर 30 सुपर फिल्म है, जो असल जीवन के नायक से मिलवाने के साथ साथ मनोरंजन भी करती है।
कुलवंत हैप्पी
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