वैवाहिक जीवन भारतीयों के लिए हमेशा से मोतीचूर का लड्डू रहा है। कहा जाता है कि जो खाए वो पछताए और जो न खाए वो ललचाए। ज्यादातर भारतीय फिल्में वैवाहिक जीवन के आरंभ पर आकर खत्म हो जाती हैं क्योंकि वैवाहिक जीवन को पर्दे पर दर्शाना और दर्शकों को बंधे रखना हर किसी के बस की बात नहीं। उसी बात को ‘बार बार देखो’ निर्देशक नित्या मेहरा ने कुछ अलग तरीके से कहने की कोशिश की है।
निर्देशक नित्या मेहरा अपने नायक जय वर्मा को भविष्य में लेकर जाती है और बुरे प्रभावों से अवगत करवाती है ताकि वे अपने वर्तमान जीवन को सही तरीके से जीने का तरीका सीख पाए। हालांकि, कुछ पहले एक्शन रिप्ले से इस तरह का प्रयास किया गया था, जो बुरी तरह असफल रहा था, उसमें नायक अतीत की तरफ लौटता है, अपनी भूलों को सुधारने के लिए।
लाइफ ऑफ पाई और द रिलक्टंट फंडामेंटलिस्ट जैसी फिल्मों में सहायक निर्देशक रह चुकीं नित्या मेहरा अपनी फिल्म ‘बार बार देखो’ से इतना कहना चाहती हैं कि कल की चिंता में अपना आज दांव पर मत लगाओ और वर्तमान में जीवन को पूरे जोशोखरोश के साथ जीओ।
कहानी जय वर्मा की है, जो गणित प्रोफेसर है। जय वर्मा का सपना है कि दुनिया उसे गणितज्ञ के नाम से पहचानें। शादी से ठीक पहले जय वर्मा अपनी बचपन की दोस्त दीया से विवाह करने से इंकार कर देता है। कहानी का नायक सोते ही जीवन में कई साल आगे पहुंच जाता है। जय वर्मा का भविष्य में सफर जारी रहता है और इस दौरान जय वर्मा बहुत सारी गलतियां कर बैठता है, जिसके लिए जय वर्मा को बाद में पछतावा होता है। इसी पछतावे के कारण कहानी का नया वर्तमान में लौटने के लिए तिलमिलाता है, जैसे युवा बचपन के लिए, बुढ्डा आदमी जवानी के लिए।
फिल्म की कहानी बेहद दिलचस्प है। हालांकि, फिल्म का स्क्रीन प्ले काफी ढीला ढाला है। सिनेमाटोग्राफ रवि के चंद्रन का कार्य दमदार उम्दा और अद्भुत है। इसके कारण काफी हद तक निर्देशक का काम आसान हुआ है। भले ही नित्या मेहरा की फिल्म बार बार देखो कल, आज और कल में चलती है। लेकिन दर्शकों को उलझने नहीं देती। ज्यादातर फिल्में इंटरवल के बाद मर जाती हैं। मगर, नित्या मेहरा की कहानी इंटरवल के बाद उठती है और क्लाईमैक्स काफी जबरदस्त है। जय वर्मा और दीया कपूर के किरदार के अलावा चरित्र किरदारों का भी नित्या मेहरा ने बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल किया है।
अभिनय की बात करें तो सिद्धार्थ मल्होत्रा को फिल्म इंडस्ट्री में आए अभी कुछ साल हुए हैं। युवा अभिनेता होने के बावजूद भी सिद्धार्थ मल्होत्रा का अभिनय काफी बेहतरीन है। कैटरीना कैफ एक बार फिर जबरदस्त वापसी करती हुई नजर आ रही हैं। राम कपूर और सरिका के साथ साथ अन्य कलाकारों का अभिनय भी शानदार है, जो फिल्म में दिलचस्पी बनाए रखने में मदद करता है।
नित्या मेहरा की फिल्म ‘बार बार देखो’ को मल्टीप्लेक्स या मैट्रो सिटी की फिल्म कहा जा सकती है। एकल स्क्रीन पर शायद नित्या मेहरा की फिल्म उतना अच्छा प्रभाव न डाल पाएं, जितने की उम्मीद है। फिल्म हॉलीवुड स्केल पर बनाई गई है। ऐसे में सिने प्रेमी भी उस तरह के चाहिए। हर किसी के दिमाग में उतरने वाली फिल्म नहीं है ‘बार बार देखो’। कुछ लोगों के लिए ऐसा कहा जा सकता है कि इस फिल्म को समझने के लिए इसी फिल्म को बार बार देखो।
यदि आप कुछ हटकर देखने का शौक रखते हैं तो आपके लिए ‘बार बार देखो’ एक अच्छी फिल्म साबित हो सकती है। हालांकि, यह हमारी निजी राय है, जो हर किसी पर लागू नहीं होती, क्योंकि हर किसी का अपना अपना एक नजरिया होता है।
- नील रंजन शर्मा
सिने दर्शक