भरी अदालत में जब एक पिता के सामने उसकी बलात्कार पीड़ित बेटी, जो इंसाफ के लिए अदालत पहुंची है, से तरह तरह के सवाल पूछते हुए उसका शब्दों से बलात्कार किया जाता है, तो मजबूर पिता अदालत से अपनी बेटी को बिना इंसाफ दिलाए वापिस ले जाता है।
वो नहीं चाहता कि उसकी बेटी के साथ दूसरी बार शब्दों से रेप हो। उसकी बेटी को इंसाफ देने की बजाय बदचलन कहकर पुकारा जाए। अदालत के बीच क्रोधित पिता अपनी बेटी पर चीखते हुए कहता है, ‘रेप ही हुआ है तुम्हारा, मरी तो नहीं ना।”
इस सीन से ठीक पहले पिया घर जाने को तैयार सज संवर कर बैठी भूमि की चौखट से बारात लौट जाती है, क्योंकि भूमि शादी करने से पहले अपने प्रेमी, जो कुछ देर में पति बनने वाला था, को अपने साथ हुए बलात्कार के बारे में बता देती है।
भूमि का अपने होने वाले जीवन साथी को सच बताना खलनायकों के मुंह पर जोरदार थप्पड़ है, जो यह सोचते हैं कि बलात्कार के बाद भूमि घर की इज्जत के लिए चुपचाप डोली में बैठकर सुसराल चली जाएगी।
फिल्म भूमि की बलात्कार पीड़िता काबिल की यामी गौतम तरह आत्महत्या नहीं करती और ना ही मॉम की बलात्कार पीड़िता की तरह मन में खौफ पालकर बैठती है। भूमि बलात्कार को भूलकर जीवन को पहले की तरह पूरी उमंग और जोश के साथ जीने के लिए खुद को तैयार करती है।
अचानक भूमि के पास उस घटना का वीडियो पहुंचता है, जिसमें उसके साथ रेप हो रहा है। इस पर क्रोधित भूमि अपने पिता से कहती है, मार दो उनको। पिता कहता है, मारेंगे, लेकिन, मैं नहीं हम।
उमंग कुमार की फिल्म भूमि उस बात को भी खुलकर रखती है, जिसको मॉम में हल्के तरीके से दिखाया गया था कि लड़कों के साथ भी बलात्कार हो सकता है। फिल्म भूमि एक खौफ पैदा करती है। शायद इस खौफ की समाज को जरूरत है, क्योंकि अदालतों का खौफ खत्म होता जा रहा है। अब तक समाज ने खौफ केवल लड़कियों को दिया है और उनको डर डर सहम सहम कर जीना सिखाया है।
संजय दत्त ने पिता के किरदार को खूब डूबकर निभाया है। संजय दत्त की शानदार वापसी कह सकते हैं। अदिति राव हैदरी ने भूमि के किरदार को दिल से पर्दे पर उतारा है। शेखर सुमन, शरद केलकर और अन्य कलाकारों का अभिनय भी बेहतरीन है।
उमंग कुमार का निर्देशन सराहना पात्र है। फिल्म का संपादन अच्छा है और स्क्रीन प्ले भी बढ़िया है। हालांकि, कहीं कहीं सुधार की गुजाइंश दिखती है। फिल्म के संवाद कहानी की जान हैं। साथ ही, सिनेमेटोग्राफी वर्क भी बाकमाल है। फिल्म भूमि का गीत संगीत और बैकग्राउंड म्यूजिक भी ठीक ठाक है।
जहां फिल्म में सनी लिओनी की एंट्री पर सीटियां बजती हैं, वहीं, कहानी के ट्रैक पकड़ने पर सन्नाटा भी छा जाता है। पिता पुत्री के रिश्ते को बड़ी संजीदगी के साथ दिखाया गया है, जो दिल को छूता है। फिल्म का पहला हिस्सा हल्का फुल्का मनोरंजक है जबकि दूसरे हिस्से में कहानी सिने प्रेमियों को पूरी तरह अपने आलिंगन में जकड़ लेती है।
अब बलात्कार को शारीरिक हमला समझा जाना चाहिये और लड़की को आत्मसम्मान के साथ जीने, इंसाफ पाने या बदला लेने के लिए तैयार रहना चाहिये।
यह कहना गलत नहीं होगा कि फिल्म भूमि अमिताभ बच्चन, तापसी पन्नु अभिनीत फिल्म पिंक से एक कदम आगे जाकर खड़ी होती है। संजय दत्त की शानदार वापसी करवाने वाली फिल्म भूमि पांच में से साढ़े तीन स्टार की हकदार है और यह सामयिक फिल्म है।
– कुलवंत हैप्पी