Friday, December 20, 2024
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फिल्म समीक्षा: सासण मालधारियों और सिंहों की अनकही कहानी

सासण गुजराती सिनेमा की एक अनोखी पेशकश है, जो गुजरात के प्रख्यात पर्यटन स्थल सासण गिर के जंगलों में रहने वाले मालधारियों और एशियाई शेरों की कथा व व्यथा पर आधारित है। फिल्म की कहानी में प्राकृतिक सौंदर्य के साथ मानवीय भावनाओं और संघर्ष को भी खूबसूरती से पिरोया गया है।

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कहानी
कहानी की शुरुआत माइकल (चेतन धनाणी) के सासण गिर आगमन से होती है। माइकल, जो नेदरलैंड्स से आया है, एक एनजीओ के लिए काम करता है जो जंगल के प्राणियों, विशेष रूप से शेरों के संरक्षण के लिए समर्पित है। सासण में अपनी केवल नाम की रिसर्च के दौरान, माइकल स्थानीय निवासी भगत बापा के नेसडो में परिवार के साथ रहने लगता है। इस परिवार में आई मां (रागिनी शाह), उसकी खूबसूरत, होशियार और जांबाज जवान बेटी हिरल (अंजलि बारोट), और जवान बेटा कुको (मौलिक नायक) है।

लेकिन, हिरल को पेड़ पत्तों पर रिसर्च करने के बहाने आए माइकल की गतिविधियों पर शक होने लगता है, और इसी दौरान कुछ अप्रत्याशित घटनाएं होती हैं, जो कहानी को मोड़ देती हैं। इन घटनाओं का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष माइकल से संबंध होता है।

माइकल आई मां के दिल में जगह बना लेता है, जो हर बार उसको बचाती है, लेकिन, हिरल का शक धीरे-धीरे यकीन में बदलने लगता है। और हिरल, माइकल को नेसडो से बाहर निकालने पर अड़ जाती है। ऐसे में माइकल का मिशन मुश्किल में आ जाता है, क्योंकि उसका मिशन अभी पूरा नहीं हुआ होता, जो वह रिसर्च की आड़ में करने आया था।

हिरल को ऐसा क्या मिलता है, जो शक को यकीन में बदल देता है? क्या हिरल माइकल को उसके मिशन में सफल होने देगी? इन सवालों का जवाब जानने के लिए आपको फिल्म सासण देखनी होगी।

अभिनय और निर्देशन
चेतन धनाणी ने माइकल के किरदार में शानदार अभिनय किया है। उनके भावनात्मक और गंभीर दृश्यों ने कहानी में जान डाल दी है। हिरल के किरदार को अंजलि बारोट ने अपने अद्भुत अभिनय से जीवंत किया है, और उनका किरदार पूरी फिल्म में नायक के लिए एक मजबूत चुनौती बनकर उभरता है।

अन्य कलाकारों में अभिनेता चिराग जानी (विक्रम), मौलिक नायक (कुको), रागिनी शाह (आई मां), और मेहुल बुच (भगत बापा) ने अपने-अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। सभी पात्रों के बीच का सामंजस्य कहानी को प्रभावी बनाता है।

अशोक घोष के निर्देशन की तारीफ करनी होगी। उन्होंने न केवल कलाकारों से बेहतरीन काम लिया, बल्कि सासण गिर के ग्रामीण परिवेश को पर्दे पर खूबसूरती से उकेरा है। किरिट पटेल की कहानी सीधी, सरल और हृदयस्पर्शी है, हालांकि, स्क्रिप्ट को थोड़ा और बेहतर तरीके से लिखा गया होता तो फिल्म अपने वर्तमान स्तर से ऊपर चली जाती। फिल्म के संवाद कहीं-कहीं तो अद्भुत हैं (जैसे मालधारी की बेटी हूं, ऐसे किसी के गले नहीं लग सकती, लोग पेड़ पत्तों पर रिसर्च कर रहे हैं। कुछ लोग महिलाओं के हाड मांस को देखने से ऊपर नहीं आ रहे। ये तुम्हारी नहीं, मेरी श्रद्धा का सवाल है।), वहीं कुछ सामान्य भी हैं। फिल्म को किरदारों के छोटे-छोटे किस्से और भावनाओं ने बेहतर बनाया है।

तकनीकी पक्ष
फिल्म का गीत-संगीत कहानी के माहौल के अनुरूप है, जो दृश्य प्रभाव को बढ़ाते हैं। फिल्म के एक्शन सीन पर अच्छा काम किया गया है क्योंकि गुजराती सिनेमा में आम तौर पर एक्शन सामान्य सीन होते हैं। हालांकि, ग्राफिक्स के मामले में फिल्म थोड़ी कमजोर है, जिससे इसकी भव्यता कहीं-कहीं फीकी पड़ जाती है। कैमरावर्क और मेकअप टीम का काम सराहनीय है, जो सासण गिर के परिवेश को यथार्थवादी रूप से प्रस्तुत करता है।

विशेष आकर्षण
फिल्म की सबसे बड़ी खासियत है इसका विषय। सासण गिर के जंगलों के मालधारियों की जीवनशैली और उनकी कठिनाइयों को केंद्र में रखकर बनाई गई यह फिल्म हमें प्रकृति और मानव के सह-अस्तित्व पर सोचने पर मजबूर करती है।

निष्कर्ष
सासण एक पारिवारिक फिल्म है, जो संस्कारों और संवेदनाओं से भरी है। हालांकि, अगर आप रोमांच और सस्पेंस के शौकीन हैं, तो यह फिल्म शायद आपको थोड़ी सी धीमी लग सकती है। लेकिन, मानवीय भावनाओं और संरक्षण के विषय पर बनी यह फिल्म एक बार जरूर देखनी चाहिए।

रेटिंग: 3.5/5

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कुलवंत हैप्‍पी, संपादक और संस्‍थापक फिल्‍मी कैफे | 14 साल से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय हैं। साल 2004 में दैनिक जागरण से बतौर पत्रकार कैरियर की शुरूआत करने के बाद याहू के पंजाबी समाचार पोर्टल और कई समाचार पत्रों में बतौर उप संपादक, कॉपी संपादक और कंटेंट राइटर के रूप में कार्य किया। अंत 29.01.2016 को मनोरंजक जगत संबंधित ख़बरों को प्रसारित करने के लिए फिल्‍मी कैफे की स्‍थापना की।
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