Thursday, November 21, 2024
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श्रीदेवी की MOM – मिरर ऑफ मॉडर्निटी

फिल्‍मकार रवि उदयावर निर्देशित और श्रीदेवी अभिनीत फिल्‍म MOM कहीं न कहीं आधुनिकता का आइना (मिरर ऑफ मॉडर्निटी) लगती है।

आधुनिकता के फायदे नुकसान दिखाती क्राइम थ्रिलर शैली की फिल्‍म मॉम अपने पहले ही सीन में सोशल मीडिया चैट एप के नुकसान से रूबरू करवाती है। जहां क्‍लासरूम में बैठा एक छात्र बड़ी आसानी से बगल में बैठी एक छात्रा को अश्‍लील मैसेज भेज देता है।

फिल्‍म मॉम का दूसरा सीन बच्‍चों की अकड़ और इंटरनेट लव को प्रदर्शित करता है। बच्‍चे खाने के टेबल पर हों, या अपने बैडरूम में इंटरनेट से चिपके रहना चाहते हैं। मां बाप बच्‍चों के साथ डर डर पेश आते हैं, पुराने जमाने की तरह बच्‍चों की बदतमीजी पर हिंसक नहीं होते।

आर्य के बलात्‍कारी मोहित का किरदार शहर में बने ऐसे घरों से रूबरू करवाता है, जहां सुख सुविधाएं तो हैं, लेकिन, मकान को घर बनाने वाले परिजन नहीं हैं। मां बाप होने के बावजूद भी मोहित लावारिसों की तरह जीता है। इस पूरी फिल्‍म में आपको मोहित के मां बाप नहीं मिलेंगे।

आप इंटरनेट पर बैठकर केवल खाना बनाने की रैसिपी ही नहीं, बल्‍कि ज़हर बनाने की कला भी सीख सकते हैं। इस पर भी फिल्‍म मॉम प्रकाश डालती है। क्‍लासरूम में बच्‍चों को पढ़ाने के लिए फिल्‍मी सितारों का सहारा लेने भी कितना जरूरी हो चुका है, यह बात भी आपको मॉम से समझ आ जाएगी।

बलात्‍कार केवल लड़की के साथ ही नहीं, बल्‍कि लड़के के साथ भी हो सकता है। यह बात रवि उदयावर ने जेल वाले के सीन के दौरान अप्रत्‍यक्ष रूप से दिखाने की शानदार कोशिश की है। मॉर्डन जमाने में लड़कियों को भी नाचने, झूमने और जश्‍न मनाने के लिए नशे की जरूरत होती है, ऐसा मॉम के पार्टी वाले सीन में देखने को मिलता है।

फिल्‍म मॉम की कहानी को सीआईडी के किसी एपिसोड का सकारात्‍मक संस्‍करण कह सकते हैं। जब देश का कानून इंसाफ देने से चूक जाता है, तो एक मां बेटी के बलात्‍कारियों को सजा देने के लिए आपराधिक रास्‍ते का चयन करती है। अंत में जीत एक मां की ही होती है। लेकिन, देश की कानून व्‍यवस्‍था हार जाती है।

फिल्‍म में, मुझे पीड़िता को नजदीकी अस्‍पताल में पहुंचाना पुलिस को सूचित करने और पुलिस का इंतजार करने से ज्‍यादा जरूरी लगा, जैसी बात से जहां एक जागरूक नागरिक से परिचय करवाती है। वहीं, कला प्रदर्शनी में द्रोपदी वाले चित्र, जिसकी कीमत 50 लाख है, से एक ऐसे समाज से रूबरू करवाती है, जो किसी भी चीज को कला मान लेता है।

श्रीदेवी का अभिनय अद्भुत है, जो आपको स्‍क्रीन के साथ चिपके रहने पर मजबूर करता है। नवाजुद्दीन सिद्दिकी का गेटअप और अभिनय दोनों ही प्रभावित करते हैं। अक्षय खन्‍ना एक जांच अधिकारी के किरदार में हैं, ऐसे किरदार करना अक्षय खन्‍ना के लिए कोई नयी बात नहीं है। दूसरे सहयोगी कलाकारों का अभिनय भी शानदार है, विशेषकर पाकिस्‍तानी कलाकार अदनान सिद्दिकी।

फिल्‍म निर्देशक रवि उदयावर शुरूआत से अंत तक फिल्‍म पर पकड़ बनाए रखते हैं। हालांकि, फिल्‍म के कुछ हिस्‍सों में रवि उदयावर जल्‍दबाजी से काम लेते हुए नजर आए।

यदि फिल्‍म की कहानी को दूसरे तरीके से कहते तो शायद फिल्‍म और प्रभावशाली बन सकती थी। फिलहाल, मॉम बदले की कहानी पर आधारित एक क्राइम थ्रिलर फिल्‍म है और गलत या सही का फैसला केवल सिने प्रेमियों को करना है।

मेरे हिसाब से अच्‍छा लगता यदि श्रीदेवी उसी अदालत में खड़े होकर अपने गुनाह को स्‍वीकार करती और अपनी कहानी कहते हुए सिस्‍टम के मुंह पर जोरदार चांटा जड़ती क्‍योंकि देश के लचीले कानून ने ही श्रीदेवी को कातिल बनने पर मजबूर किया था। हालांकि, एक संवाद में श्रीदेवी अपने रास्‍ते को गलत बताती हैं। लेकिन, वहां पर बलात्‍कारियों को छोड़ने देने को बहुत गलत की संज्ञा दी गई है।

यदि आपको अमिताभ बच्‍चन की पिंक पसंद आई थी, तो श्रीदेवी की मॉम भी आपका दिल जीत लेगी। इसके संवाद भी अमिताभ बच्‍चन की पिंक की तरह दिल को छूते हैं।

एक और बात, जहां ऋतिक रोशन की काबिल में एक प्रेमी बदला लेता है, तो श्रीदेवी की मॉम में एक मां बदला लेती है।

– कुलवंत हैप्‍पी

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कुलवंत हैप्‍पी, संपादक और संस्‍थापक फिल्‍मी कैफे | 14 साल से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय हैं। साल 2004 में दैनिक जागरण से बतौर पत्रकार कैरियर की शुरूआत करने के बाद याहू के पंजाबी समाचार पोर्टल और कई समाचार पत्रों में बतौर उप संपादक, कॉपी संपादक और कंटेंट राइटर के रूप में कार्य किया। अंत 29.01.2016 को मनोरंजक जगत संबंधित ख़बरों को प्रसारित करने के लिए फिल्‍मी कैफे की स्‍थापना की।
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