आईएएस बनने की तैयारी करते करते संगीत की दुनिया में उतरे जगजीत सिंह

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मुम्बई। भले ही गजल सम्राट जगजीत सिंह आज हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन, उनकी चिरहरित गजलें आज भी उनकी गैर—मौजूदगी को महसूस नहीं होने देती।

8 फरवरी 1941 को राजस्थान के श्रीगंगानगर में जन्में जगजीत सिंह ने संगीत की दुनिया से आजीविका कमाने के बारे में एमए की पढ़ाई करने तक विचार तक नहीं किया था क्योंकि उनका ध्येय आईएएस की परीक्षा में बैठना था, जो उनके पिता भी चाहते थे।

इसी कारण जगजीत सिंह जालंधर के एक कॉलेज से बीए करने के बाद कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से एमए करने के साथ साथ आईएएस प्रतियोगी परीक्षा में बैठने की तैयारी भी कर रहे थे।

इस दौरान संगीत भी सीखना जारी रखा। असल में, जगजीत सिंह ने संगीत की तालीम केवल शौकपूर्ति के लिए ली थी। लेकिन, अचानक एमए में दो साल ख़राब करने के बाद जगजीत सिंह ने घरवालों को बिना बताए मुम्बई का रुख किया और संगीत को पेशे के रूप में अपनाने के लिए प्रयत्न शुरू किए।

1965 में जगजीत सिंह ने मुम्बई में कदम रखा। अच्छी बात यह थी कि जगजीत सिंह को छह महीनों बाद ही काम मिलना शुरू हो गया। इसके बाद 1967 में जगजीत सिंह की मुलाकात चित्रा से हुई, जो आगे चलकर दोस्ती और इश्क के रास्ते होते हुए ब्याह तक पहुंची।

जगजीत सिंह ने चित्रा को भी गजल करने की तालीम दी। दोनों ने साथ में गाना शुरू किया। लेकिन, जगजीत सिंह और चित्रा सिंह को सबसे बड़ा झटका जीवन ने उस समय दिया, जब 1990 में उनका बीस वर्षीय पुत्र विवेक एक सड़क हादसे में चल बसा।

इसके बाद गजल गायक जगजीत सिंह और चित्रा ने गाना बंद कर दिया। हालांकि, एक साल के बाद जगजीत सिंह ने धीरे धीरे संगीत की दुनिया में वापसी की। लेकिन, चित्रा ने खुद को संगीत से सदैव के लिए अलग कर लिया।

जगजीत सिंह 23 सितंबर 2011 को ब्रेन हेमरिज का शिकार हुए, और कुछ हफ्तों के कोमा के बाद 10 अक्टूबर 2011 को लीलावती अस्पताल में उनको मृत घोषित कर दिया गया।

जगजीत सिंह का असली नाम जगमोहन सिंह धीमान था और बचपन में परिचित उनको जीत के नाम से पुकारते थे।