Thursday, November 7, 2024
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गूगल के डूडल में फिल्मकार वी शांताराम, कहा था, मुझे तब तक मुक्ति नहीं मिलेगी

मुम्बई। गूगल अपने डूडल में समय समय पर भारतीय हस्तियों को जगह देता रहा है। 18 नवंबर 2017 का गूगल डूडल फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता वी शांताराम को समर्पित है।

19 साल की उम्र में फिल्म जगत से जुड़ने वाले वी शांताराम का जन्म 18 नवंबर 1901 को महाराष्ट्र में हुआ और 88 साल की उम्र में 30 अक्टूबर 1990 को वी शांताराम शांत हो गए।

फिल्मकार वी शांताराम की बेटी मथुरा पंडित जसराज द्वारा लिखी किताब ‘वी शांताराम : द मैन हू चेंजेड इंडियन सिनेमा’ में फिल्मकार के बारे में बहुत रोचक किस्से कहानियां हैं।

इस किताब के अनुसार वी शांताराम एक लंबी उम्र जीना चाहते थे। लेकिन, नियति के सामने किसी की भी एक नहीं चलती। दरअसल, 1980 के दशक में फिल्म निर्माता वी शांताराम एक लंबी फिल्म बनाने की सोच रहे थे। वी शांताराम चाहते थे कि इस फिल्म के पचास भाग बने और हर साल दो भाग रिलीज किए जाएं।

इस प्रोजेक्ट का नाम वी शांतराम ने उत्तर महाभारत रखा था। किताब के मुताबिक जब वी शांताराम अपनी बेटी मथुरा से अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के बारे में बात करते हैं, तो कहतें हैं कि उत्तर महाभारत वहां से शुरू होगी, जहां महाभारत खत्म होती है और उत्तर महाभारत में भारतीय समाज के आने वाले अगले सौ सालों को समेटा जाएगा।

लेकिन, इसके बाद वी शांताराम की तबीयत ख़राब रहने लगी। उनका यह प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में जाता रहा क्योंकि वी शांताराम अपनी आंखों से इस फिल्म सीरीज की सफलता को देखना चाहते थे। इसके लिए वी शांतराम स्वस्थ जीवन के साथ दीर्घायु की कामना करते थे।

किताब में जिक्र है कि वी शांताराम अंतिम दिनों में गीता का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि मेरी यात्रा कभी खत्म नहीं होगी, मैं नये शरीर में प्रवेश करूंगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं अपनी खोज के लिए कितने शरीर बदलता हूं, लेकिन, मैं अपने कार्य को पूरा करूंगा। जब तक मेरा कार्य अधूरा है, तब तक मैं मुक्ति हासिल नहीं करूंगा।

उल्लेखनीय है कि ​वी शांताराम को झनक झनक पायल बाजे के लिए बेहतरीन निर्देशक सम्मान मिला जबकि उनकी फिल्म दो आंखें बारह हाथ को बेहतरीन फिल्म सम्मान हासिल हुआ। 1985 में वी शांताराम को दादा साहब फालके अवार्ड से सम्माना गया। उनकी मृत्यु के दो साल बाद उनको साल 1992 में पद्म विभूषण दिया गया।

शांताराम ने अपने कैरियर की शुरूआत वर्ष 1921 में आई मूक फिल्म सुरेख हरण से की थी। इस फिल्म में उन्हें बतौर अभिनेता काम करने का मौका मिला था।

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