मुम्बई। इसमें कोई दो राय नहीं कि अभिनेता अक्षय कुमार का समय जबरदस्त चल रहा है और सन् 2016 में अक्षय कुमार ने तीन बड़ी हिट फिल्में दी, जिसमें से फिल्म रुस्तम के लिए अभिनेता अक्षय कुमार को राष्ट्रीय सर्वोत्तम अभिनेता पुरस्कार हासिल हुआ।
लेकिन, इसके बाद आलोचनाओं का दौर शुरू हो गया। आलोचना करने वालों का कहना है कि बेस्ट एक्टर अवार्ड के लिए अलीगढ़ में मनोज बाजपेयी, पिंक में अभिताभ बच्चन, सरबजीत में रणदीप हुड्डा, उड़ता पंजाब में शाहिद कपूर, दंगल में आमिर खान, फैन में शाह रुख खान और सुलतान में सलमान खान के अभिनय को नजरअंदाज किया गया।
आलोचना करने वालों में फिल्मकार एआर मुरुगदॉस भी शामिल हैं, जो अक्षय कुमार के साथ फिल्म हॉलीडे : अ सॉल्जर इज नेवर ऑफ ड्यूटी में काम कर चुके हैं। फिल्मकार ने अपने एक ट्विट में कहा, ‘राष्ट्रीय पुरस्कारों में जूरी के अंदर लोगों के प्रभाव और पक्षपात को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, यह पक्षपाती है।’
दूसरी ओर, इस मामले आलोचनाओं का सामना कर रहे फिल्मकार प्रियदर्शन, जो ज्यूरी अध्यक्ष थे, ने समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत के दौरान कहा, ‘मैंने सब कुछ सुना है और मैं इसका साधारण तरीके से जवाब देना चाहूंगा। जब पिछले साल रमेश सिप्पी ज्यूरी अध्यक्ष थे, तो अमिताभ बच्चन ने पुरस्कार जीता। जब प्रकाश झा ज्यूरी अध्यक्ष थे, तो अजय देवगन को पुरस्कार मिला। तब तक किसी ने सवाल नहीं किया। तो अब सब सवाल को क्यों कर रहे हैं?।’
दरअसल, फिल्मकार प्रियदर्शन, जो अक्षय कुमार के साथ कई हिट फिल्में दे चुके हैं, का यह बयान आलोचकों के मुंह बंद करने की बजाय नए सवालों को जन्म दे रहा है।
- पहला सवाल तो यह है कि क्या अभिनेता को नेशनल अवार्ड तभी हासिल होगा, यदि ज्यूरी अध्यक्ष उसका करीबी फिल्मकार होगा?
- क्या रमेश सिप्पी और प्रकाश झा ज्यूरी अध्यक्ष न होते तो अमिताभ बच्चन और अजय देवगन को नेशनल अवार्ड नहीं मिलता?
- क्या अक्षय कुमार को फिल्म रुस्तम के लिए नेशनल बेस्ट एक्टर अवार्ड केवल इसलिए मिला कि इस अवार्ड ज्यूरी के अध्यक्ष फिल्मकार प्रियदर्शन थे?
फिल्मी कैफे मंडली प्रियदर्शन के जवाब से सहमत नहीं क्योंकि प्रियदर्शन का जवाब स्पष्ट रूप से कह रहा है कि यदि फिल्मकार रमेश सिप्पी और प्रकाश झा की मौजूदगी में अमिताभ बच्चन और अजय देवगन को पुरस्कार मिल सकता है तो मेरी उपस्थिति में अक्षय कुमार को क्यों नहीं?
असल में प्रियदर्शन का तर्क राजनेताओं जैसा है, जो अपने पर आई बात का जवाब देने की बजाय विरोधी पार्टी के अवगुण गिनाने लगते हैं।