युवा और प्रतिभाशाली लेखक-निर्देशक पुष्पेंद्र आल्बे की अगली सोशल ड्रामा जूठन शिक्षा में जातीय भेदभाव के संबंध में बात करती है। फिल्म जूठन को मध्य प्रदेश में 29 दिनों में बड़े पैमाने पर शूट किया गया था और इस समय फिल्म का पोस्ट प्रोडक्शन में है।
पुष्पेंद्र आल्बे निर्देशित फिल्म जूठन में अहम भूमिका में देवेश रंजन नजर आएंगे, जो अंग्रेजी फिल्म वारा और ढेरों अवार्ड जीतने वाली भोर में अपने अभिनय का जलवा बिखेर चुके हैं।
इस बारे में बात करते हुए पुष्पेंद्र आल्बे कहते हैं, ‘मैंने फिल्म जूठन को पूरी ईमानदारी के साथ बिना किसी भेदभाव और दबाव के बनाया है। इस फिल्म में हकीकत को करीब से दिखाने की कोशिश की है। उम्मीद करता हूं कि मेरी ईमानदार कोशिश सिने प्रेमियों को पसंद आएगी।’
संजीदा अभिनय के लिए मशहूर देवेश रंजन की मुख्य भूमिका वाली जूठन का निर्माण पुष्पेंद्र आल्बे और निकिल प्रणव आर की कंपनी एडाप्ट ए स्कूल फिल्म्स ने किया है। फिल्म में नरेश कुमार (बाहुबली फ्रेंचाइजी फेम), विक्रम सिंह (भाग मिल्खा भाग, मिर्जिया फेम), कुलदीप कुमार, संदीप गुप्ता, रिमझिम राजपूत और दिनेश शर्मा भी अहम् भूमिकाओं में नजर आएंगे।
“हकीकत यह है कि सरकार की तमाम ईमानदार कोशिशों के बावजूद जातिगत भेदभाव अभी भी समाज को खोखला कर रहा है, खासकर ग्रामीण भारत में। इससे भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात यह कि दलित समाज के बच्चों की शिक्षा इस जातिगत भेदभाव की वजह से हाशिए पर है” देवेश रंजन बताते हैं।
ऑक्सफाम की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में स्कूल छोड़ने वाले एससी-एसटी और ओबीसी तबके के बच्चों की संख्या अन्य तबकों से कहीं ज्यादा है। स्कूल बीच में ही छोड़ देने वाले 60 लाख बच्चों में से 75 फीसदी बच्चे दलित या आदिवासी हैं।
“जूठन इसी मुद्दे पर बात करती है कि शिक्षा पर सबका बराबर अधिकार है। दलित समाज के बच्चों को सिर्फ इसलिये शिक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे निचले तबके के हैं। शिक्षा में ये छूआछूत हमारे देश के एक वैश्विक महाशक्ति बनने में सबसे बडी रूकावट है” देवेश रंजन अपनी बात रखते हुए कहते हैं।
एक हैरान करने वाला तथ्य यह भी है कि देश की प्राथमिक स्कूलों में पांच में से चार महिला शिक्षक ऊपरी तबके के हैं। इसी तरह हर पांच में से एक पुरूष शिक्षक भी ऊपरी तबके से है।
“जातिगत भेदभाव की शुरुआत यहीं से होती है। इंटरनेट पर सर्च करें तो पता चलता है कि दलित बच्चों के साथ जातिगत भेदभाव में सबसे बडी भूमिका शिक्षक ही निभाते हैं, जो अधिकतर मौकों पर ऊपरी तबके से संबंध रखते हैं” देवेश रंजन अपनी बात खत्म करते हुए कहते हैं।