यदि आप सोचते हैं कि हिंदी सिनेमा के पास अच्छी कहानियां नहीं हैं या कम बजट में एक बेहतरीन फिल्म बनाना मुश्किल कार्य है, तो आपको मॉडल से अभिनेत्री से फिल्म निर्माता निर्देशक बनीं आरती छाबरिया द्वारा निर्देशित शॉर्ट फिल्म मुम्बई वाराणसी एक्सप्रेस देखनी चाहिये।
फिल्म मुम्बई वाराणसी एक्सप्रेस की कहानी मुम्बई के छत्रपति शिवाजी टर्निमल से शुरू होकर बनारस के घाटों से होते हुए गुजरात के शहर सूरत में एक हादसे के साथ खत्म होती है।
कहानी के केंद्र में एक धनाढ्य व्यक्ति है, जिसके पास जीने के लिए बहुत कम समय बचा है और वह इस बचे हुए वक्त को बनारस में गुजारना चाहता है। मगर, नियति तो नियति है, और इसको कोई नहीं बदल सकता।
रेल सफर में गुजराती व्यापारी से मुलाकात, बनारस में रफीक का मिलना, बच्चे की भावपूर्ण बातें, बनारस का दूसरा पहलू और मुक्ति भवन में प्रवेश जैसे सीन फिल्म की रूह हैं, जो इसको जीवंत बनाते हैं।
नवोदित फिल्म निर्देशक आरती छाबरिया के निर्देशन कौशल को सिनेमेटोग्राफर और कहानीकार का बहुत अच्छा साथ मिला है। दूसरे शब्दों में कहें तो फिल्म मुम्बई वाराणसी एक्सप्रेस में टीम वर्क दिखता है।
जीवन की वास्तविकता से रूबरू करवाती शॉर्ट फिल्म मुम्बई वाराणसी एक्सप्रेस को अभिनेता दर्शन जरीवाला समेत अन्य कलाकारों का अभिनय और कहानी कहने का सलीका जीवंत बनाता है।
इसके अलावा कैलाश खेर की आवाज में मेरे बाबाजी निहारे आसमान से भावपूर्ण गाना फिल्म की कहानी को अगले स्तर पर लेकर जाता है। यह गाना फिल्म में ऐसे बसा है, जैसे बनारस में गंगा, श्रद्धा, भक्ति और आस्था।