कहते हैं कि जब जब मानव समाज में अज्ञानता का अंधेरा पैर पसारने लगता है, तब तब भगवान धरती पर जन्म लेकर अंधेरे को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं। वैसे ही जब जब प्रशासन जनता को इंसाफ देने में असफल होता है, तब तब आनंद दिघे जैसे किरदारों का जन्म होता है। प्रवीण तरडे के निर्देशन में बनीं धर्मवीर : मुक्काम पोस्ट ठाणे का सार इसी बात में छुपा है, जो शिव सेना कार्यकर्ता से लोकनायक बन चुके आनंद दिघे के जीवन पर आधारित है।
फिल्म धर्मवीर की कहानी शुरू होती है ठाणे के रेलवे स्टेशन से। जहां एक युवती, जो पेशे से पत्रकार है, अपने गंतव्य तक जाने के लिए ऑटो खोज रही है। ऑटो उसके सामने खड़ा है, पर, वो उसको नजरअंदाज करती है, क्योंकि ऑटो ड्राइवर के सिर पर टोपी है, जो धर्म विशेष को प्रकट करती है।
युवती के हाव भाव देखकर युवा ऑटो ड्राइवर भांप लेता है कि समस्या कहां है! ऑटो ड्राइवर अपनी टोपी उतारता है, और बैठने के लिए रिक्वेस्ट करता है। युवती रास्ते में फोन पर बतियाते हुए जा रही है, और ऑटो ड्राइवर हर बात गौर से सुन रहा है। युवती समारोह को कवर नहीं करना चाहती थी बल्कि वो बॉलीवुड पार्टी में जाने के लिए उत्सुक थी। लेकिन, उसके नसीब में आनंद दिघे की पुण्य तिथि पर आयोजित होने वाले समारोह की कवरेज आई।
युवा ऑटो ड्राइवर उसको गंतव्य पर उतारने के बाद कहता है कि ‘हर चीज गूगल पर नहीं मिल सकती, गूगल भी वो ही जानकारी दे सकता है, जो उसमें डाली जाएगी।’ कुछ घंटों के बाद युवती कवरेज करते हुए फिर से चिढ़ जाती है, कहां आ गई, तो वो युवक फिर से भगवान की तरह प्रकट होता है, और आनंद दिघे के जीवन को विस्तार से बताने लगता है और कहानी आगे बढ़ती है।
फिल्मकार प्रवीण तरडे ने आनंद दिघे की कहानी को कहने के लिए एकदम सही प्लाट चुना है। आनंद दिघे की कहानी को सीधे सपाट नहीं बल्कि किस्सों के मार्फत कहा गया है। फिल्म में ऑटो चालक को सूत्रधार बना गया है, जो बहुत सही लगता है। फिल्म की शुरूआत जितनी खूबसूरत है, फिल्म का अंत भी उतना ही खूबसूरत है।
आनंद दिघे भले ही शिव सेना के कार्यकर्ता या जिला प्रमुख रहे हों, लेकिन, फिल्म बताती है कि आनंद दिघे किसी आम राजनेता से कोसों मील आगे जा खड़े होते हैं। उनकी सोच, उनकी हिम्मत दोनों ही राजनेताओं से अलग थी, जो आनंद दिघे को लोकनायक बनाती थी। जैसे कि फिल्म की शुरूआत में बताया जाता है कि न तो किसी बैंक में खाता था और नाहीं जेब में फूटी कौड़ी, फिर भी वो दुनिया के सबसे अमीर राजनेता थे। आनंद दिघे को फिल्मकार क्यों? दुनिया का सबसे अमीर राजनेता कहता है, यह तो फिल्म देखने पर पता चल जाएगा।
श्रुति मराठे पत्रकार के रूप में जंचती हैं। खूबसूरत अदाकारा पर्दे पर आते ही पर्दे की खूबसूरती को बढ़ाती है। गशमीर महाजनी भी तेज तर्रार दिमाग ऑटो ड्राइवर के किरदार में खूब जंचता है। श्रुति मराठे और गशमीर महाजनी की जोड़ी पर्दे पर अच्छी लगती है। आनंद दिघे के किरदार को प्रसाद ओक ने जीवंत किया है। यदि आप आनंद दिघे से न भी मिले हों, और कुछ समय के लिए मान भी लिया जाए कि धर्मवीर मात्र कल्पित फिल्म है, तो भी आनंद दिघे के किरदार से प्रेम हो जाएगा। इस किरदार को जितनी शिद्दत से लिखा गया है, उतनी ही शिद्दत से निभाया गया है।
इसके अलावा आनंद दिघे के शिष्य एकनाथ शिंदे के किरदार में क्षितिश दाते ने बेहतरीन अभिनय किया है। हालांकि, कुछ अन्य किरदारों पर मेहनत करने की जरूरत महसूस होती है, विशेषकर बालासाहेब ठाकरे और राज ठाकरे इत्यादि। स्नेहल तरडे, जो फिल्मकार प्रवीण तरडे की पत्नी हैं, ने अनीता बिरजे के किरदार को जी जान से निभाया है।
धर्मवीर एक राजनेता की कहानी से ज्यादा एक आम आदमी के लोकनायक बनने की कहानी है। फिल्म बताती है कि आनंद दिघे राजनेता नहीं, बल्कि एक नेता था, जिसके लिए जनता सर्वोपरि थी। एक संवाद में आनंद दिघे कहता है कि हमको टोपी वाले मुस्लिम से नहीं बल्कि कट्टरपंथी मुस्लिम से नफरत करनी चाहिए। इतना ही नहीं, दंगों के माहौल में भी आनंद दिघे बीच का रास्ता निकलाने की कोशिश करता है, जो एक नेता की पहचान को व्यक्त करता है।
आनंद दिघे के जीवन पर आधारित होने के बावजूद भी धर्मवीर बायोपिक श्रेणी से बाहर खड़ी नजर आती है। आनंद दिघे एक ऐसा किरदार है, जिससे आपको न चाहते हुए भी प्यार होना अनिवार्य है, जिसके प्रति इज्जत आंखों में अपने आप उमड़ आती है। धर्मवीर का स्क्रीन प्ले बहुत शानदार लिखा गया है और फिल्म कहानी भी बोरियत महसूस नहीं होने देती। फिल्मांकन भी उत्तम दर्जे का है। गीत संगीत भी फिल्म के माहौल के अनुकूल है।
धर्मवीर एक ऐसी बायोपिक है, जो स्वयं को बायोपिक श्रेणी से निकालकर एक शानदार मुख्य धारा की फीचर फिल्म के रूप में स्थापित करती है।