गार्गी की कहानी शुरू होती है एक स्कूल से, जहां पर गार्गी शिक्षिका है। क्लासरूम में परीक्षा चल रही है। शांति का माहौल बना हुआ है, पर, क्लासरूम में मौजूद सुंदर सांवली युवा शिक्षिका गार्गी के मन में ऊहा-पोह की स्थिति है। अचानक स्कूल सेवादार क्लासरूम के दरवाजे पर आकर पानी पानी की आवाज देता है। गार्गी उसको टोकती है, शोर मत करो, यहां बच्चों की परीक्षा चल रही है। असल में, उसकी आवाज से ज्यादा खलल तो गार्गी के ख्यालों में पड़ा। उसके जाते ही गार्गी अपने प्रेमी, होने वाले मंगेतर से चैट और फोन पर बात करने लगती है।
स्कूल की घंटी बजने के साथ ही परीक्षा खत्म हो जाती है। खाना खाने के लिए गार्गी जब अन्य शिक्षकों के साथ बैठी होती है, तो वहां चल रहे टीवी पर एक ख़बर फ्लैश होती है, जो कुछ समय पहले एक 9 वर्षीय बच्ची के साथ हुए गैंग रेप के पांचवें आरोपी के पकड़े जाने से संबंधित है। गार्गी बड़े असहज मन से इस ख़बर को नजरअंदाज करना चाहती है। इसके बाद, घर पहुंचने पर गार्गी को पता चलता है कि उसकी छोटी बहन बाहर खेलने गई है। गार्गी अपनी मां के साथ बहस करती है कि वह उसको समझाती क्यों नहीं है। इतने में गार्गी की छोटी बहन आती है, और देरी का कारण बताती है, तो गार्गी का मन और परेशान हो जाता है, क्योंकि उसकी बहन ने जिस इमारत के बाहर पुलिस और भीड़ के होने का जिक्र किया, वहां गार्गी के पिता सुरक्षा कर्मी के तौर पर कार्यरत हैं।
गार्गी और एक अन्य लड़की, जिसके पिता भी उसी इमारत में सुरक्षा कर्मी हैं, दोनों उस अपार्टमेंट की ओर जाते हैं और उनको पता चलता है कि गार्गी के पिता को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। गार्गी पुलिस स्टेशन जाती है, लेकिन, पुलिस गार्गी को उसके पिता के साथ मिलने नहीं देती और सपरिवार शहर छोड़कर जाने के लिए कहती है।
ऐसे में गार्गी अपने परिचित नामवर वकील को फोन लगाती है, जो गार्गी की मदद के लिए सामने आते हैं। पर, बार एसोसिएशन और मीडिया के दबाव के कारण उनको पीछे हटना पड़ता है। ऐसे में गार्गी अकेली पड़ जाती है और अपने पिता को बचाने के लिए नये रास्ते खोजने की कोशिश करती है। इसी बीच गार्गी की मदद के लिए एक वकील आता है, जिसने अभी तक कोई केस नहीं लड़ा, जो उनके परिचित वकील के ऑफिस में कार्यरत है।
क्या गार्गी और नौसिखिया वकील गार्गी के पिता को बचाने में सफल होंगे? क्या कोई गार्गी के पिता को बलि का बकरा बनाकर खुद बचने की कोशिश कर रहा है? या कहानी यहां से कोई टर्न लेगी? जानने के लिए गार्गी देखिए।
गैंगरेप, कानूनी लड़ाई और मीडिया ट्रायल के इर्दगिर्द घूमती फिल्म गार्गी की शुरूआती पटकथा काफी सस्पेंस भरपूर है। हालांकि, फिल्म अंत तक सस्पेंस बनाए रखती है। फिल्म का क्लाइमैक्स चकित करने वाला है। हरिहरन राजू और गौतम रामचंद्रन ने फिल्म की पटकथा को अंत चुस्त बनाए रखने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। फिर भी, अंत में फिल्म थोड़ी सी चूकती नजर आती है, यदि मनोविज्ञान की दृष्टि से सोचा जाए। वैसे तो इसे नजरअंदाज किया जा सकता है।
कहानी गैंग रेप केस के साथ मीडिया ट्रायल के जरिये मीडिया की भूमिका को बेहतरीन तरीके से प्रकट करती है। साथ ही, गार्गी के अतीत को साथ लेकर चलती है, जहां पर एक शिक्षक अपनी मासूम छात्रा पर बुरी नजर डालता है। अदालती कार्यवाही भी देखने लायक है। कोर्ट में रसूखदार वकील महिला जज की सोच पर ऊंगली उठाता है और वो जज साहब अपने विवेक के साथ पूरे मामले की सुनवाई करती है, साथ ही लापरवाही से कार्य करने के लिए पुलिस को फटकार लगाती है।
गौतम रामचंद्रन का निर्देशन भी काबिलेतारीफ है क्योंकि कहानी को बिना किसी मिर्च मसाले के शानदार ढंग से कैप्चर किया है, जो एक अच्छे निर्देशक की निशानी है। गौतम रामचंद्रन ने गार्गी के किरदार में साईं पल्लवी के अभिनय का शत प्रतिशत सत निचोड़ा है। यदि अभिनय की बात की जाए तो साई पल्लवी का गार्गी के रूप में शानदार परफॉर्मेंस देखने लायक है, उसने अपने किरदार को बड़ी खूबसूरती के साथ अदा किया है। साई पल्लवी ने किरदार को इस प्रकार अपने भीतर उतार लिया है कि किसी भी फ्रेम में वह मिसफिट नहीं लगती हैं।
यह फिल्म हमारे समाज की ऐसी तस्वीर को धूलकर सामने रखती है, जिसे शायद हम में से कोई देखना पसंद नहीं करेगा लेकिन यह भनायक तस्वीर हकीकत को बयान करती है। हकीकत से मुंह तो मोड़ा जा सकता है, पर उसको सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। अंत में गार्गी केस हार कर भी केस जीत जाती है, और पीछे छोड़ जाती है कि समाज के लिए एक अहम संदेश। फिल्म गर्गी एक दर्शनीय फिल्म है। इसे साई पल्लवी के अभिनय के चलते, एक गंभीर विषय के चलते और एक समाज के चित्रण को समझने और सतर्क रहने के लिए देखा जा सकता है।