Friday, November 22, 2024
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Movie Review – अभिनय देव की ब्लैकमेल : कहानी नयी, लेकिन, तृप्त नहीं करती

देव एक रात अपनी पत्नी रीना को सरप्राइज देने के लिए घर जल्दी लौटता है। घर में कूकर की सीटी बज रही है। म्यूजिक चल रहा है। रीना गायब है। देव आदतन अपने बनाए गुप्त सुराख से अपने बैडरूम में झांकता है।

जहां पर रीना अपने पुराने प्रेमी रंजीत के साथ रोमांटिक पलों का आनंद ले रही है। यह देखने के बाद देव अपनी पत्नी और उसके प्रेमी की हत्या नहीं करता, बल्कि उसके प्रेमी रंजीत को ब्लैकमेल करने की योजना बनाता है।

देव रंजीत को ब्लैकमेल करता है। लेकिन, बहुत सारे लोग देव को ब्लैकमेल करने लगते हैं। ऐसे कुछ समय बाद देव खुद ही अपने बुने हुए जाल में फंसने लगता है। इस जाल से देव खुद को किस तरह मुक्त करता है, यह जानने के लिए ब्लैकमेल देखनी होगी।

अभिनय देव की ब्लैकमेल में हर किरदार स्वार्थी है। यहां पर न तो कोई अपने काम के साथ, और नाहीं कोई अपने रिश्ते के साथ ईमानदार है।

फिल्म की कहानी तेजी के साथ आगे बढ़ती है। हालांकि, कुछ सीनों का दोहराया जाना फिल्म की कहानी और पटकथा को बोझिल बनाता है।

फिल्म में यदि अभिनय देव कार्यालय में घटित होने वाली फूहड़ता भरी हरकतों (तस्वीर चोरी के सीन) का रायता न फैलाते तो शायद ब्लैकमेल साफ सुथरी फिल्म भी बन सकती थी। इन सीनों को फिल्म से अलग कर दिया जाए तो भी फिल्म की कहानी प्रभावित नहीं होगी, क्योंकि यह जबरदस्ती ठूंसे गए हैं।

कुछ सीनों का फिल्मांकन बेहद जबरदस्त है, जो पहली ही नजर में आपके दिल को छू लेंगे। जासूस चावला का किरदार भी बड़ा चुटीला और मनोरंजक है, जिसको गजराज राव ने अदा किया है।

इसके अलावा इरफान खान, अरुणोदय सिंह, कीर्ति कुल्हारी और दिव्या दत्ता ने अपने अपने किरदारों को बड़ी खूबसूरती के साथ अदा किया है।

फिल्म की कमजोर कड़ियां : कहानी को तेज रफ्तार दौड़ाते हुए भावनात्मक पक्ष को नजरअंदाज कर दिया। कहानी के नायक देव के साथ दर्शकों को हमदर्दी नहीं पाती, क्योंकि देव और रीना के रिश्ते को अच्छे से दिखाया नहीं गया। इसके अलावा, रंजीत और डॉली का रिश्ता खटकता है। सवाल उठता है कि रंजीत को कुत्ता पुकारने वाली डॉली रंजीत को झेलती क्यों है?

उर्मिला मातोंडकर को आइटम नंबर करने की जरूरत नहीं थी क्योंकि आइटम नंबर में उर्मिला मातोंडकर के हिस्से कुछ नहीं आया है। और दर्शकों को भी कुछ हासिल नहीं हुआ। और भी बहुत सारी खामियां हैं, जिनको फिल्म की शैली के चलते उजागर करना सही नहीं है।

कुल मिलाकर कहें तो ब्लैकमेल की कहानी नयी है। अभिनय शानदार है। निर्देशन बेहतर है। पटकथा पर काम करने की जरूरत थी। फिल्म में डाली आलतू फालतू चीजों पर कैंची मारने की जरूरत थी।

फिल्म की कहानी किसी सकारात्मक बिंदू पर खत्म नहीं होती, जो बात दर्शकों को अंत में खल सकती है। जो काम देव अंत में करता है, वो काम शुरूआत में भी हो सकता था।  जिस बात के लिए देव ब्लैकमेल ब्लैकमेल खेलना शुरू करता है, वो बात तो अंत में भी देव के सामने मुंह उठाए खड़ी होती है।

-कुलवंत हैप्पी

Kulwant Happy
Kulwant Happyhttps://filmikafe.com
कुलवंत हैप्‍पी, संपादक और संस्‍थापक फिल्‍मी कैफे | 14 साल से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय हैं। साल 2004 में दैनिक जागरण से बतौर पत्रकार कैरियर की शुरूआत करने के बाद याहू के पंजाबी समाचार पोर्टल और कई समाचार पत्रों में बतौर उप संपादक, कॉपी संपादक और कंटेंट राइटर के रूप में कार्य किया। अंत 29.01.2016 को मनोरंजक जगत संबंधित ख़बरों को प्रसारित करने के लिए फिल्‍मी कैफे की स्‍थापना की।
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