पढ़ाई में कमजोर गोपाल त्रिवेदी, गोपाल त्रिवेदी के भविष्य को लेकर चिंतित कविता त्रिवेदी और हर परिस्थिति को स्वीकार करके चलने वाला जगदीश त्रिवेदी, तीनों बालक पालक एक ही घर में रहते हैं। बस इतना सा परिचय काफी है वड़ोदरा शहर के त्रिवेदी परिवार के बारे में, जो फिल्म निर्देशक कीर्तन पटेल की गुजराती फिल्म बैक बेंचर के केंद्र में है।
कहानी
गोपाल मनमौजी स्वभाव का है। पढ़ने में बेहतर करने की हर कोशिश असफल होती है। गोपाल की असफलता को सफलता में बदलने के लिए जगदीश त्रिवेदी हमेशा बेटे गोपाल के साथ खड़ते हैं जबकि कविता त्रिवेदी हमेशा पुत्र के बुरे नतीजों से परेशान रहती है।
गोपाल की शिक्षा का मामला घर के सौंदर्य को बिगाड़ने लगता है। ऐसे माहौल से गोपाल भी तनाव महसूस करने लगता है। अचानक एक दिन पिता की बातों को सुनकर गोपाल घर से भाग जाता है। गोपाल का यह कदम किसी के लिए खुशी, तो किसी के लिए गमीं लेकर आता है।
क्या गोपाल की घर वापसी होगी? यदि नहीं होगी, तो क्या कविता और जगदीश त्रिवेदी खुद को माफ कर पाएंगे? इन सवालों का जवाब जानने के लिए बैक बेंचर देखनी होगी।
निर्देशन की बात
फिल्म निर्देशक कीर्तन पटेल का निर्देशन सराहनीय है। निर्देशक कलाकारों से बेहतरीन काम लेने में सफल हुए हैं। फिल्म का स्क्रीन प्ले बेहतरीन और चुस्त है। चुटकी भरे संवाद और भावनात्मक सीन दर्शकों को प्रभावित करते हैं। हालांकि, फिल्म संपादन में बहुत सी गड़बड़ियां हैं। कुछ सीनों को फालतू में लंबा खींचा गया है और कुछ जगहों पर संवादों में दोहराव है। निर्देशक बहुत सी जगहों पर कैंची चला सकते थे। कुछ और बेहतरीन प्रभावशाली संवादों और परिस्थितियों को फिल्म में शामिल किया जा सकता था।
अभिनय की बात
गोपाल के किरदार में क्रिश चौहान पूरी तरह फिट बैठते हैं। क्रिश का अभिनय आकर्षित करता है। गोपाल छेलो दिवस का विक्की है। फिल्म के शुरूआती सीन में छेलो दिवस की याद दिलाते हैं। कविता के किरदार में ओमी त्रिवेदी का अभिनय सराहनीय है। ओमी त्रिवेदी का सौंदर्य, हाव भाव और अभिनय दर्शकों से कनेक्शन बनाता है। जगदीश के किरदार में धर्मेंद्र गोहिल का काम भी सराहनीय है। इसके अलावा ओम भट्ट, जो फिल्म में भोलो का किरदार अदा करते हैं, का अभिनय और किरदार फिल्म में जान फूंकता है। चेतन दैय्या, भावना जानी, भक्ति कुबावत और पार्थ ओझा मेहमान भूमिकाओं में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं।
अन्य पक्ष
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी ठीक ठाक है, हालांकि, विजुअल इफेक्ट्स शानदार हैं। लेकिन, फिल्म में आर्ट वर्क, म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर बेहतरीन है। फिल्म नेचर के हिसाब से फिल्म की स्टार कास्ट भी बेहतरीन है।
कुल मिलाकर कहें तो बस एक चांस निर्देशक कीर्तन पटेल ने समय की नब्ज को पकड़ते हुए एक बेहतरीन और सोचनीय विषय को बड़े पर्दे पर उतारा है। फिल्म बैक बेंचर कुछ गड़बड़ियों के बावजूद भी अपने लक्ष्य को हासिल करती है और दिल को छूती है।
बैक बेंचर समाज में चल रही गला काट दौड़, शिक्षा को लेकर बच्चों पर पड़ने वाले मानसिक दबाव और घर से भागे बच्चों के मां बाप की स्थिति का चित्रण बड़े पर्दे पर बड़ी संजीदगी के साथ करती है। कुछ शब्दों में कहूं तो बैक बेंचर प्रेरणा, वेदना और आइना है।
फिल्म के अंत में निर्देशक कीर्तन पटेल ने दर्शकों के लिए एक सरप्राइज रखा है, जो दर्शकों को गुड फील करवाता है।
— कुलवंत हैप्पी