यशराज फिल्म्स के सहायक बैनर वाई फिल्म्स तले बनी फिल्म बैंक चोर कॉमेडी सस्पेंस थ्रिलर ड्रामा है, जिसका निर्देशन नवोदित निर्देशक बंपी ने किया है। फिल्म में अहम भूमिका रितेश देशमुख, विवेक ओबेरॉय, विक्रम थापा, भुवन अरोड़ा, साहिल वैद और रिया चक्रवर्ती ने निभायी है।
बैंक चोर की कहानी कहना सही नहीं होगा क्योंकि यह एक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म है और कहानी कहने से मजा मर जाएगा। हां, फिल्म का एक बड़ा हिस्सा बैंक चोर चंपक, उसके दोस्त गुलाब, गेंदा और सीबीआई अधिकारी अजमद खान के आस पास ही सिमटा हुआ है।
फिल्म बैंक चोर की शुरूआत बैंक के बाहर तैनात मीडिया और पुलिस अधिकारियों के सीन से होती है। इसके बाद फिल्म आगे बढ़ने लगती है और कुछ ही मिनटों के अंतराल पर फिल्म में सीबीआई अधिकारी अमजद खान का प्रवेश होता है। यहां से सीबीआई, पुलिस और बैंक चोरों का खेल शुरू होता है।
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फिल्म बैंक चोर इंटरवल तक खूब पकाती है। इतना ही नहीं, आप मेरी तरह इसको वाहियत करार भी दे सकते हैं। लेकिन, इंटरवल से ठीक पहले फिल्म की कहानी जबरदस्त ट्विस्ट आता है। तीन बैंक चोरों के अलावा एक और बैंक चोर का प्रवेश होता है। बैंक में पहली गोली चलने के साथ ही बैंक के अंदर और बाहर स्थिति काफी रोचक हो जाती है। इंटरवल के बाद फिल्म देखने में मजा आएगा।
साहिल वैद्य का अभिनय फिल्म में जान डालता है। रितेश देशमुख अपने किरदार के साथ इंसाफ करते हुए नजर आए हैं। विवेक ओबेराय ने भी अपने किरदार को बाखूबी निभाया है। रिया चक्रवर्ती, जो पत्रकार की भूमिका में हैं, का अभिनय भी जरूरत अनुसार ठीक है। विक्रम थापा और भुवन अरोड़ा भी प्रभावित करते हैं।
फिल्म में कोई भी गाना नहीं है, जो फिल्म किस्म के अनुसार जायज है। हालांकि, बाबा सहगल के कैमियो से इस गाने छाने की कमी को पूरा करने की कोशिश की गई है। निर्देशक बंपी ने कलाकारों से बेहतर काम लिया है। कैमरा वर्क की तारीफ करनी चाहिये। 90 फीसद हिस्सा बैंक परिसर के अंदर है। ऐसे में पटकथा लेखकों को अधिक मेहनत करनी पड़ी।
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बैंक चोर में ब्लॉकबस्टर फिल्म की तमाम खूबियां हैं। लेकिन, कहानी को पेश करने के तरीके ने फिल्म को गधा पछाड़ लगाई है। विवेक ओबेराय बैंक के अंदर घुसता है और रितेश देशमुख की गर्दन तक मरोड़ देता है। लेकिन, खाली हाथ बाहर आ जाता है। बैंक अधिकारियों और ग्राहकों के पास ऐसे कई मौके आए, जब वो मिलकर चंपक, गुलाब और गेंदे को पकड़कर धो सकते थे।
बैंक चोर की कहानी को व्यवस्थित करने की जरूरत थी। रितेश देशमुख के किरदार को थोड़ा सा तराशने की जरूरत थी। बेवकूफ और कॉमेडियन में अंतर समझने की जरूरत थी। दरअसल, इस फिल्म में रितेश देशमुख का रोल एक बेवकूफ बैंक चोर का है। फिल्म में विवेक ओबेरॉय का प्रवेश और उसकी रितेश देशमुख से मुलाकात को हजम करना मुश्किल है, जबकि फिल्म सस्पेंस थ्रिलर हो। बैंक चोरी से लिंक दूसरी कड़ियां भी सवाल खड़े करती हैं। अच्छा होता इस फिल्म को मर्डर से शुरू करते या सीधा बैंक चोरी से।
फिल्म बैंक चोर उन सिनेमा प्रेमियों के लिए अच्छी फिल्म साबित हो सकती है, जो फिल्म देखते हुए ज्यादा दिमाग लगाना पसंद नहीं करते हैं।
चेतावनी : फिल्म बैंक को इंटरवल तक झेलने की हिम्मत रखकर जाएं। फिल्म इंटरवल के बाद रेस पकड़ती है और फिल्म में 30 दिन बाद होने वाली रितेश देशमुख व विवेक ओबेरॉय की मुलाकात को गौर से देखें।
– कुलवंत हैप्पी | Kulwant Happy