यदि फिल्म निर्देशक लव रंजन के काम को ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि लव रंजन अपने नाम के माफिक हैं। लव माने प्यार और रंजन माने तो खुश करना। उनकी फिल्मों में लव और रंजन दोनों तत्व मौजूद होते हैं। प्यार का पंचनामा से शुरू हुआ सफर सोनू के टीटू की स्वीटी से होते हुए दे दे प्यार दे तक आ पहुंचा है। दिलचस्प बात तो यह है कि आकाशवाणी को छोड़कर बाकी सब फिल्मों के शीर्षकों में लव का हिंदी अर्थ प्यार शामिल है।
दे दे प्यार दे की कहानी लव रंजन के दिमाग की उपज है, जिसको पटकथा के ढांचे में सुरभि भटनागर और तरुण जैन की मदद से ढाला गया। लव रंजन की अन्य फिल्म की तरह दे दे प्यार दे भी एक रोमांटिक काॅमेडी फिल्म है।
इस फिल्म के केंद्र में एक खूबसूरत युवती और उम्र का अर्द्ध शतक लगा चुका डेशिंग बुड्ढा है। दोनों की अचानक एक छोटी सी मुलाकात होती है। और फिल्म मुलाकातों का लंबा सिलसिला चलता है। दोनों के बीच फ्लर्ट शुरू हो जाता है। एक दूसरे के साथ खुशनुमा समय गुजारने लगते हैं।
अचानक युवती आयशा के मन में शादी करने का ख्याल आता है और बुढापे की दहलीज पर खड़ा आशीष ऐसा करने से पीछे हटता है। दोनों एक दूसरे से अलग का निर्णय लेते हैं। लेकिन, एक दूसरे के बिना कुछ दिन भी नहीं रह पाते। फिर दोनों मिलते हैं और शादी करने को राजी होते हैं। मगर, इस शादी से पहले आशीष, आयशा को अपनी पहली बीवी, जिससे तलाक लेना बाकी है, और आयशा की उम्र के अपने बच्चों से मिलवाना चाहता है।
आयशा और आशीष दोनों अचानक लंदन से भारत आते हैं। घर आकर आशीष को अचानक पता चलता है कि उसकी बेटी को लड़के वाले देखने आ रहे हैं। ऐसे में घबराया आशीष, आयशा को दोस्त से अपनी निजी सचिव बना देता है और आगे होने वाली घटनाओं के लिए दे दे प्यार देखनी होगी।
अपार संभावनाओं से भरी अभिनेत्री राकुलप्रीत की खूबसूरती और कातिल अदाएं फिल्म का सबसे खूबसूरत हिस्सा हैं। राकुलप्रीत के बिना दे दे प्यार दे की कल्पना करना शायद घाटे का सौदा साबित हो सकता था।
तब्बु और अजय देवगन की जोड़ी भी खूबसूरत लगती है। अजय देवगन का किरदार एकदम बेहतरीन तरीके से गढ़ा गया है। कुछ सीनों में तो अजय देवगन अभी और लंबी अभिनय पारी खेलने की क्षमताओं से रूबरू करवाते हैं। कभी आंखों से संजय दत्त, तो कभी चेहरे के हाव भावों से अमिताभ बच्चन की याद दिलाते हैं।
तब्बु अपनी दूसरी अभिनय पारी में धीरे धीरे अपने कदम जमाती जा रही हैं। इस फिल्म में तब्बु का बढ़ा हुआ आत्मविश्वास साफ साफ झलकता है। उनका किरदार काफी बढ़िया है। जावेद जाफरी ने मनोवैज्ञानिक की भूमिका में जान डालती है। हालांकि, जावेद जाफरी का किरदार ज्यादा लंबा नहीं, लेकिन, यादगार किरदार जरूर है। जिम्मी शेरगिल राजा अवस्थी के किरदार से बाहर निकलने का नाम नहीं ले रहे हैं। इस फिल्म में जिम्मी शेरगिल हैप्पी भाग जाएगी के दमन सिंह बग्गा के करीबी मित्र लगे।
संपादक से निर्देशक बने आकिव अली ने फिल्म में लव रंजन के निर्देशन स्वाद को बरकरार रखा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कलाकारों से बेहतरीन काम लिया गया। फिल्म की कसावट भरी पटकथा, उम्दा संपादन, चुटीले संवाद और बेहतरीन छायांकन फिल्म को मनोरंजक और पैसा वसूल बनाते हैं।
इसके अलावा अजय देवगन और जावेद जाफरी की बातचीत, तब्बू और राकुलप्रीत की आपसी खुन्नस, आलोक नाथ के चुटीले संवाद अलग ही जायका देते हैं।
दे दे प्यार दे के शीर्षक को छोड़कर बाकी सब चीजों पर बेहतरीन काम किया है। इस खूबसूरत फिल्म के लिए इससे बेहतरीन शीर्षक हो सकता था। जैसा कि सिनेमा प्रेमी मानते हैं कि एक फिल्म को मनोरंजन भरपूर होना चाहिए, वो लव रंजन के बैनर तले बनी दे दे प्यार दे है।
चलते चलते : मनोरंजन के साथ साथ फिल्म दे दे प्यार दे कुछ अनकही और कुछ दबी कुचली बातें भी बड़ी सहजता के साथ कह जाती है।
– कुलवंत हैप्पी