Thursday, November 7, 2024
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फिल्म समीक्षा : हर मिडल क्लास मनोरथी महिला में बसती है ‘तुम्हारी सुलु’

तुम्हारी सुलु रेडियो जॉकी नहीं है बल्कि हर मिडल क्लास मनोरथी महिला की प्रतिनिधि है। हर उस महिला के भीतर की तड़प है, जो आंखों के पिंजरे में फड़फड़ाने वाले सपने, इच्छाओं और ख्यालों के परिंदों को हकीकत के खुले आसमां में उड़ारियां भरते हुए कलाबाजियां करते हुए देखना चाहती है।

छोटे से घर में अपने पति और बच्चे के साथ खुश रहने वाली सुलोचना उर्फ सुलु के जीवन में समस्याएं उस समय मेहमान बनकर आती हैं, जब सुलु को एक रेडियो स्टेशन से नौकरी आॅफर होती है।

12वीं फेल सुलु का मासिक वेतन सुनकर उसका पति भी संदेही हो जाता है। यहां तो जैसे तैसे सुलु मामला संभाल लेती है। लेकिन, सुलु की बहनों को सुलु की नौकरी पसंद नहीं आती है। उस पर छोड़ने का दबाव बनाती हैं। इसके बाद परविार में झगड़ा फसाद शुरू होता है।

इससे आगे की कहानी में विद्या बालन का किरदार ​हर मिडल क्लास मनोरथी महिला के भीतर बसने वाली सुलु की लड़ाई लड़ता है। विद्या बालने अपने अद्भुत अभिनय से किरदार में जान डालती हैं। कछुए की चाल से आगे बढ़ने वाली कहानी रोचक लगने लगती है।

इसके अलावा विद्या बालन के पति के किरदार में मानव कौल का अभिनय भी सराहनीय है। रेडियो प्रोग्राम प्रोड्यूसर के किरदार में विजय मौर्या प्रभाव छोड़ते हैं। नेहा धूपिया भी शिकायत का मौका नहीं देती हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि फिल्म निर्देशक सुरेश त्रिवेणी ने कलाकारों से बेहतर काम लिया है। लेकिन, गंभीर विषय पर बनी इस फिल्म को बेस्वादी और कछुए की चाल से आगे बढ़ने वाली पटकथा मार डालती है। फिल्म देखते हुए महसूस होता है कि संवादों पर बिल्कुल काम नहीं किया गया। केवल विद्या बालन की सेक्सी आवाज और धूम धड़क्के वाले गानों से दर्शकों को रिझाने का प्रयास किया गया।

फिल्म तुम्हारी सुलु का फर्स्ट हाफ काफी बोरियत भरा है जबकि सैकेंड हाफ में फिल्म गति पकड़ती है और एक महिला की वेदना को डंके की चोट पर कहते हुए एक खुशनुमा मोड़ पर पहुंचकर अलविदा कहती है।

मसाला फिल्म बनाने के चक्कर में निर्माता निर्देशकों ने एक खूबसूरत ख्याल तुम्हारी सुलु को बिगाड़कर रख दिया। यदि इस गंभीर विषय की फिल्म को गंभीर होकर बनाया जाता तो यकीनन यह फिल्म एक अद्भुत फिल्म साबित हो सकती थी।

न तो तुम्हारी सुलु मसाला फिल्म है और नाहीं गंभीर फिल्म। नतीजन, यह फिल्म एक खिचड़ी बनकर रह गई। ऐसे में जिसको खिचड़ी पसंद है, वो इसको बड़े चाव से खाएगा और जिसको पसंद नहीं है, वो पहले एक दो निवाले मुंह में डालते ही सरक लेगा।

फिल्म समीक्षक/कुलवंत हैप्पी

Kulwant Happy
Kulwant Happyhttps://filmikafe.com
कुलवंत हैप्‍पी, संपादक और संस्‍थापक फिल्‍मी कैफे | 14 साल से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय हैं। साल 2004 में दैनिक जागरण से बतौर पत्रकार कैरियर की शुरूआत करने के बाद याहू के पंजाबी समाचार पोर्टल और कई समाचार पत्रों में बतौर उप संपादक, कॉपी संपादक और कंटेंट राइटर के रूप में कार्य किया। अंत 29.01.2016 को मनोरंजक जगत संबंधित ख़बरों को प्रसारित करने के लिए फिल्‍मी कैफे की स्‍थापना की।
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