फिल्मकार हंसल मेहता की सिमरन एक ऐसी लड़की की दास्तां है, जिसका रिश्तों से मन भर चुका है और अब वो अपने माता पिता से अलग अपने घर में रहकर आजाद जीवन जीना चाहती है। कहानी की नायिका प्रफुल्ल पटेल, जो तलाकशुदा है, अपनी बचत से अपने लिए एक खूबसूरत फ्लैट खरीदने की योजना बनाती है। सब कुछ फाइनल हो चुका है, अब बस केवल लोन मिलने की देरी है।
गुजराती दंपति की इकलौटी बेटी और होटल इंडस्ट्री हाउस कीपिंग कर्मचारी प्रफुल्ल पटेल को लगने लगता है कि अब उसका जीवन उसके हाथों में होगा, वो अपने जीवन को अपने तरीके से एन्जॉय कर सकेगी। लोन के लिए दस्तावेज सौंपने के बाद प्रफुल्ल पटेल खुशी खुशी मां की पसंद का पिज्जा लेकर घर लौटती है। पिज्जा खाने के साथ प्रफुल्ल पटेल को पिता के ताने भी खाने पड़ते हैं, जो प्रफुल्ल पटेल से उसकी पुरानी हरकतों के कारण नाराज रहते हैं।
ऐसे में दुखी और परेशान प्रफुल्ल पटेल अपनी सहेली के साथ लास वेगास वाली ट्रिप पर जाना पसंद करती है। यह शहर प्रफुल्ल पटेल की जिंदगी बदल देता है। यहां पर प्रफुल्ल पटेल को जुआ खेलने की लत लग जाती है। शुरूआती दौर में तो प्रफुल्ल पटेल बहुत सारा धन जीतती है। लेकिन, उसके बाद जुए के खेल में प्रफुल्ल पटेल का बुरा समय शुरू होता है।
प्रफुल्ल पटेल जीतने की उम्मीद में पैसे हारती चली जाती है। यहां तक के कैसिनो मालक से उधार पैसे लेकर भी प्रफुल्ल हार जाती है। प्रफुल्ल पटेल कैसिनो मालक के पैसे समय पर नहीं लौटा पाती, और उधर, उसके घर का लोन भी रिजेक्ट हो जाता है। उसको जॉब से भी निकाल दिया जाता है।
इसके बाद प्रफुल्ल पटेल का जीवन उसके कंट्रोल से पूरी तरह बाहर हो जाता है। ऐसे में प्रफुल्ल पटेल जीने के लिए कौन कौन से रास्ते अपनाती है और उनका नतीजा क्या होता है, जानने के लिए सिमरन देखिये।
निर्देशक हंसल मेहता ने सिमरन में बातौर निर्देशक बहुत शानदार काम किया है। हंसल मेहता ने कंगना रनौट समेत सभी कलाकारों से बेहतरीन तरीके से काम लिया है। लेकिन, हंसल मेहता के सशक्त निर्देशन को फिल्म की कमजोर पटकथा और लचीला फिल्म संपादन मार डालते हैं।
कंगना रनौट ऐसे किरदारों के लिए एकदम सही विकल्प होती हैं। इस फिल्म में भी कंगना रनौट ने बेहतरीन काम किया है। दूसरे कलाकारों का अभिनय भी सराहनीय है। हालांकि, फिल्म का पूरा भार कंगना रनौट के कंधों पर है।
फिल्म सिमरन के संवादों में अंग्रेजी, हिंदी और गुजराती का इस्तेमाल किया गया है। यह प्रयोग बेहद घातक है, विशेषकर जब आप हिंदी सिने जगत के लिए फिल्म बना रहे हैं। अंग्रेजी को समझने वाले शहरी क्षेत्रों में हिंदी सिनेमा प्रेमी मिल जाएंगे। लेकिन, गुजराती भाषा को समझने वाले मिलना मुश्किल हैं।
फिल्म सिमरन का पहला हिस्सा तेज गति से दौड़ता हुआ महसूस होता है जबकि दूसरे हिस्से में गति थोड़ी मंद पड़ती है, लेकिन, कहानी पटरी पर आने लगती है और दर्शकों को अपनी बांहों में जकड़ने लगती है।
बैक ग्राउंड म्यूजिक के साथ साथ फिल्म की सिनेमेटोग्राफी भी बेहतरीन है। मीत गाना तनाव भरी फिल्म में सुकून के पल लेकर आता है। कंगना रनौट और उनके परिवार के बीच के सीनों को काफी बारीकी से फिल्माया गया है।
सशक्त निर्देशन और शानदार अभिनय को स्क्रीन—प्ले ने सहारा नहीं दिया, और फिल्म सिमरन दर्शकों को निरंतर बांधे रखने में असफल रहती है। फिल्म सिमरन का बहु—भाषी होना भी मजे को किरकिरा करता है।
फिल्म रेटिंग : डेढ़ स्टार
— कुलवंत हैप्पी