अभिनेता अक्षय कुमार की कई शानदार फिल्मों का संपादन कर चुके श्री नारायण सिंह ने फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा के साथ कई सालों बाद एक बार फिर से निर्देशक के रूप में वापसी की है।
ये जो मुहब्बत है से निर्देशन डेब्यु करने वाले श्री नारायण सिंह ने टॉयलेट एक प्रेम कथा जैसी फिल्म का निर्देशन करने की जिम्मेदारी उठाकर एक साहसिक कार्य किया है, विशेषकर उस शीर्षक वाली फिल्म का, जिसका शीर्षक सुनकर देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी हंसी न रोक सके।
वैसे तो फिल्म की कहानी ट्रेलर में ही स्पष्ट हो जाती है। फिर भी संक्षेप से कहता हूं, मंदगांव के रहने वाले केशव, जो मांगलिक है, को पास के गांव की जया से पहली नजर वाला प्यार हो जाता है। मस्तमौला स्वभाव का केशव जुगाड़ लगाकर जया से ब्याह भी कर लेता है। लेकिन, ब्याह के अगली सुबह ही केशव और जया के बीच तनातनी का माहौल उत्पन्न हो जाता है क्योंकि केशव के घर टॉयलेट नहीं है और जया का टॉयलेट के बिना चलता नहीं है। जया और केशव की प्रेम कहानी में टॉयलेट विलेन के रूप में आता है। केशव जया को घर लाने के लिए और अपने साथ रखने के लिए कई जुगाड़ करता है। लेकिन, हर दांव उलटा पड़ता है। अंत बात तलाक पर आ पहुंचती है। अब, आगे जानने के लिए आप को टॉयलेट एक प्रेम कथा देखनी होगी।
श्री नारायण सिंह ने फिल्म निर्देशन के साथ साथ फिल्म संपादन भी किया है। यहां पर श्री नारायण सिंह का निर्देशन और संपादन सधा हुआ है। फिल्म का स्क्रीनप्ले भी बड़ी संजीदगी के साथ लिखा गया है, जो शुरू से अंत तक कहानी को कसावट के साथ बांधे रखता है। इंटरवेल एकदम सही समय पर आता है। जहां फिल्म का पहला हिस्सा चुटीले संवादों, रोमांस और छोटी मोटी प्यारी भरी नोक झोंक से पैसा वसूल मनोरंजन करता है, वहीं दूसरे हिस्से में फिल्म गंभीर होने लगती है, और केशव जया के प्यार को एक नये रूप में पेश करती है।
अक्षय कुमार ने यहां पर उम्मीद से अच्छा अभिनय किया है। हालांकि, इक्का दुक्का सीनों में अक्षय कुमार अपने पुराने ढब से बाहर नहीं निकल पाते हैं। भूमि पेडनेकर का अभिनय सराहनीय है। दूसरे शब्दों में कहें तो भूमि पेडनेकर फिल्म की नायिका नहीं, बल्कि नायक हैं, जो फिल्म को वास्तविकता के करीब लेकर जाती है। सुधीर पांडे, दिव्येंदु शर्मा, राजेश शर्मा और अनुपम खेर समेत फिल्म के दूसरे कलाकारों का अभिनय भी कम सराहनीय नहीं है। सना खान की हल्की सी झलक भी काफी मजेदार है। फिल्म का गीत संगीत, बैकग्राउंड स्कोर और सिनेमेटोग्राफी वर्क भी काफी अच्छा है।
अगर आप हद से ज्यादा शर्मिले स्वभाव के हैं, तो आप इस फिल्म को अकेले में या दोस्तों, सहेलियों के साथ एंजॉय करें। यदि आप थोड़े से मॉर्डन जमाने के हैं, और हल्की फुल्की बैडरूम वाली रूमानी मजाकबाजी खुले में, मतलब परिजनों के साथ झेल लेते हैं तो परिवार के साथ बैठकर फिल्म एंजॉय कर सकते हैं।
वैसे भी कहा जाता है कि कड़वी दवा को निगलने के लिए थोड़े से शहद या मीठेपन की जरूरत पड़ती है, वैसे ही ऐसे विषय पर फिल्म बनाकर हर किसी तक बात को पहुंचाने के लिए थोड़े मोटे तो रूमानी, दोअर्थी और मजेदार चुटीले संवाद जरूरी होते हैं। हालांकि, संवादों को ऐसे माहौल में रचा जाता है, जहां यह शर्मिंदगी नहीं देते।
कुल मिलाकर कहें तो टॉयलेट एक प्रेम कथा असल में एक प्रेम कथा है, जो दिल को छूती है। इस फिल्म को 5 में से 4 स्टार देना गलत नहीं होगा।
-/Kulwant Happy