Saturday, November 30, 2024
HomeLatest Newsदसवीं : भ्रष्ट राजनीति की तेरहवीं है, इसलिए देखना तो बनता

दसवीं : भ्रष्ट राजनीति की तेरहवीं है, इसलिए देखना तो बनता

राम बाजपेयी की कहानी आधारित दसवीं हरित प्रदेश के एक ऐसे मुख्यमंत्री के इर्दगिर्द घूमती है, जो शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल पहुँच जाते हैं। हालांकि, भारतीय व्यवस्था ऐसा होना मुश्किल ही नहीं, असंभव भी है, किसी घोटाले का आरोपी, वो भी मुख्यमंत्री, केवल सेशन जज के एक सम्मन से जेल पहुँच जाए।

Abhishek Bachchan, Dasvi Movie

चौधरी गंगाराम के जेल जाने के बाद चौधरी बिमला गंगाराम का मुख्यमंत्री बनना बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद की पत्नी राबड़ी देवी की याद दिलाता है। हालांकि, भारत के प्रत्येक राज्य की कमोबेश ऐसी ही स्थिति है, जैसी हरित प्रदेश की, बस फर्क इतना है कि हरित प्रदेश की स्थितियों पर राम बाजपेयी का कंट्रोल है, लेकिन, भारतीय राज्यों पर नहीं।

बेशक फिल्म का नाम दसवीं है, पर, तुषार जलोटा निर्देशित फिल्म दसवीं केवल शिक्षा पर ही बात नहीं करती, बल्कि फिल्म का हर दृश्य बहुत गंभीर बात को सामने रखता है और हकीकत के बहुत करीब लेकर जाता है। दरअसल, अभिषेक बच्चन अभिनीत दसवीं सिनेमा है, जिसको नजर टिकाकर देखने और कान खुले रखकर सुनने की जरूरत है क्योंकि दसवीं के बहुत से सीन बहुत कुछ कहते हैं।

जैसे कि शुरूआती सीन में बांसल और शर्मा से न मिलने के लिए बहाने देने वाले गंगाराम चौधरी के बांसल और शर्मा को देखकर तुरंत अपने हाव भाव बदल लेता है। जब मुख्यमंत्री, बंसल और शर्मा से मिलते हैं, और एक पढ़े लिखे आईएएस का मजाक उड़ाते हैं, तो दृश्य बताता है कि किस तरह कम पढ़े लिखे राजनेता पढ़े लिखे टॉपर्स का मजाक बनाते हैं।
इतना ही नहीं, उद्योग और राजनीति की दोस्ती को बयान करता संवाद “मॉल बनेगा तो माल मिलेगा, और स्कूल बनेगा तो बेरोजगार मिलेंगे” हरित प्रदेश के मुख्यमंत्री बोलते है, जो लगभग भारत का हरेक राजनेता बोलता है, बस जनता को सुनाई नहीं देता।

अगले ही सीन में गंगाराम चौधरी जब चलते चलते अपनी पत्नी से मिलता है, तो वे गंगाराम चौधरी से सहमी आवाज में शाम के खाने के बारे में पूछती है। इस सीन में गंगाराम की पत्नी की सहमी आवाज बहुत कुछ व्यक्त करती है, जो पर्दे के भीतर होता है, बाहर नजर नहीं आता है । हालांकि, गंगाराम चौधरी कहता है, “अरे भैंस नहीं लाया था रोहतक के मेले से, अरे ब्याह कर लाया था तन्ने मै, मेरी बिमो ऊंचा बोलाकर, तू सीएम की बीवी है।”

हरित प्रदेश के मुखमंत्री गंगाराम चौधरी शिक्षक भर्ती घोटाले के आरोप में जेल पहुँच जाते हैं। जहां जेल में गंगाराम चौधरी की मुलाकात एक ऐसे युवक से होती है, जो चौधरी बिरादरी की लड़की से प्यार करने के कारण झूठे आरोप में जेल में बंद है। उसी कहानी सुनने के बाद, गंगाराम चौधरी कहता है, “फिर तो भूली जा, बाहर जावेगा तो सीधा ऊपर जावेगा।” फिल्म का यह संवाद ऑनर किलिंग के संबंध में और अंतरजातीय ब्याह के खिलाफ समाज को सोच को व्यक्त करता है।

इसके बाद, घंटी, जो दसवीं का सबसे रोचक किरदार है, गंगाराम चौधरी का परिचय एक सिविल इंजीनियर से करवाता है, जो एक झूठे केस में जेल काट रहा है, क्योंकि ईमानदार था, और प्रोजेक्ट बेईमान लोगों के हाथों में था। जिस प्रोजेक्ट की बात चल रही होती है, उससे काफी पैसा चौधरी साहब के घर भी आता है, जो भ्रष्टाचार को व्यक्त करता है, और मुख्यमंत्री खुले दिल से स्वीकार करते हैं।

शुरू में तो जेल में गंगाराम चौधरी की पूरी आव भगत की जाती है। इसके बाद, जेल से ही राज्य की सत्ता को पत्नी बिमला देवी के माध्यम से संभाल रहे गंगाराम चौधरी के लिए मुश्किल तो तब खड़ी होती है, जब जेल में ज्योति देसवाल (यामी गौतम) की इंट्री होती है, जिसका तबादला भी गंगाराम चौधरी के कहने पर जेल में हुआ है। इधर, ईमानदार जेल अधीक्षक ज्योति देसवाल और सत्ता के नशे में पति को भूली पत्नी बिमला देवी।

अब चौधरी जेल से बाहर निकलने के बहाने खोजता है और ज्योति उस पर पैनी निगाह रखती है। बिमला देवी चौधरी का पूरा ध्यान व्यक्तिगत विकास पर केंद्रित हो जाता है। बिगड़ते हालातों को अपने अनुकूल करने के लिए चौधरी गंगाराम जेल में दसवीं करने की ठानता है।

क्या ज्योति देसवाल के पास चौधरी गंगाराम के नये हथकंडे का तोड़ है? क्या गंगाराम चौधरी और बिमला देवी के बीच संबंध अच्छे होंगे? देखने के लिए दसवीं देखिए।

अभिषेक बच्चन ने चौधरी गंगाराम का किरदार बेहतरीन तरीके से अदा किया है। नम्रता कौर, बिमला देवी के किरदार में जँचती है। यामी गौतम ने जयोति देसवाल के किरदार को बाखूबी निभाया है। फिल्म में अन्य कलाकारों ने भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करवाई है। इसमें कोई दो राय नहीं कि घंटी के किरदार में अरुण कुशवाहा ने दिल जीता है, क्योंकि भगवान तो घंटी है।

तुषार जलोटा ने फिल्म निर्देशन की जिम्मेदारी को बेहतरीन तरीके से संभालना है। हालांकि, फिल्म दसवीं का स्क्रीन प्ले और संवाद लेखन काबिले तारीफ हैं। फिल्म लेखन पर बहुत जबरदस्त काम हुआ है। इस फिल्म को लिखने के लिए काफी मेहनत की गई है, जो फिल्म से भी झलकती है। कहानी राम बाजपेयी ने लिखी। संवाद और पटकथा सलाहकार के रूप में डॉ. कुमार विश्वास को फिल्म टीम में शामिल किया गया है। फिल्म की पटकथा रितेश शाह, सुरेश नायर, संदीप लेजेल ने लिखी। इसके अलावा फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक, कॉस्टयूम, आर्ट निर्देशन बेहतरीन है।

हालांकि, फिल्म का क्लाइमेक्स और बेहतर लिखा जा सकता था। क्लाइमेक्स को सस्पेंस भरपूर बनाया जा सकता था। ऐसा लगता है कि दसवीं की कहानी किसी वेबसीरीज के लिए लिखी गई थी, और इसको संपादित करके फिल्म में ढाला गया। फिर भी दसवीं एक पारिवारिक और बेहतरीन फिल्म है, जो किन्तु परंतु के बावजूद भी देखी जानी चाहिए, क्योंकि भ्रष्ट राजनीति की तेरहवीं है।

Kulwant Happy
Kulwant Happyhttps://filmikafe.com
कुलवंत हैप्‍पी, संपादक और संस्‍थापक फिल्‍मी कैफे | 14 साल से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय हैं। साल 2004 में दैनिक जागरण से बतौर पत्रकार कैरियर की शुरूआत करने के बाद याहू के पंजाबी समाचार पोर्टल और कई समाचार पत्रों में बतौर उप संपादक, कॉपी संपादक और कंटेंट राइटर के रूप में कार्य किया। अंत 29.01.2016 को मनोरंजक जगत संबंधित ख़बरों को प्रसारित करने के लिए फिल्‍मी कैफे की स्‍थापना की।
RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments