सीएए को लेकर सरकार और जनता के बीच तनातनी का माहौल बना हुआ है। ऐसा नहीं कि यह केवल ख़बरों तक सीमित है, बल्कि इसका असर देश की अर्थव्यवस्था और बाहरी देशों में भारत की छवि पर भी पड़ रहा है। इस मामले को हल्के में लेना, सीधे सीधे तौर पर देश के संविधान और सरकार में आस्था रखने वालों के साथ गंभीर मजाक करने जैसा है।
जब सरकार सीएए पर जनता के भीतर फैले भ्रम को खत्म करने के प्रयास से अपनी ओर से मुहिम शुरू कर रही है, ताकि लोगों में इसके प्रति जागरूकता फैले। ऐसे में पिछली सरकार का हिस्सा रहे और देश के बेहतरीन अभिनेताओं की सूची में शुमार, और पूर्व सांसद परेश रावल इतना हल्का और अगंभीर ट्वीट किस तरह कर सकते हैं?
हो सकता है कि ऐसे ट्वीट पर कथित राष्ट्रवादी अधिक से अधिक लाइक ठोक दें। हो सकता है कि यह बात कहने में बड़ी चुटीली हो। लेकिन, सोचनीय तो यह है कि एक सुलझे हुए अभिनेता को इस बात का हल्कापन समझ क्यों नहीं आया? क्या सीएए, एनआरसी और एनपीआर को लेकर जो दरार सरकार और जनता के बीच आई है, क्या उपरोक्त तर्क से उसको भरा जा सकता था?
परेश रावल ने बीते दिनों जो ट्वीट किया, ‘दोस्तों आपको ये prove नहीं करना है कि हिंदुस्तान आपके बाप का है , आपको prove ये करना है कि आपका बाप हिंदुस्तान का है।’
इस ट्वीट के कुछ घंटों बाद एक अन्य ख़बर सामने आयी, जो पद्मश्री से जुड़ी थी, और पद्मश्री 2020 पाने वालों में अदनान सामी का नाम शामिल था। भले ही अदनान सामी का जन्म लंदन में हुआ हो, लेकिन अदनान सामी के पिता अरशद सामी खान पाकिस्तान से संबंधित हैं, इतना ही नहीं, उनके पिता पाकिस्तानी एयर फोर्स में उच्च पदों पर रहे हैं।
और एयर फोर्स ऐसा विभाग होता है, जो अपने विरोधी देशों पर हमला करने और उनके हमलों से देश को बचाने के लिए सक्रिय रहता है। ऐसे में अदनान सामी के पिता की भारत को लेकर किस तरह की भूमिका रही होगी? यह भी सोचनीय विषय है।
इस बात को यदि एक तरफ रख दिया जाए, तो अदनान सामी, जो 2016 से भारतीय नागरिक हैं, के पास उनके पिता के जन्म का प्रमाण पत्र कहां से आया? यदि अदनान सामी को पाकिस्तानी होने, मुस्लिम होने पर भी भारतीय नागरिकता मिल सकती है, तो दूसरों को क्यों नहीं?
भारत में जितने भी विरोध प्रदर्शन हैं, केवल सवाल के इर्दगिर्द हैं कि दूसरों को क्यों नहीं? क्या सरकार केवल जनता को असली मुद्दों से भटकाने के लिए ऐसे कार्य करती है? क्या परेश रावल जैसे संजीदा और गंभीर सितारों को ऐसे तर्कहीन बातों को हवा देनी चाहिए?