जल्लीकट्टू समर्थकों के विरोध के कारण अभिनेत्री तृषा कृष्णन को शूटिंग स्थल पर वैनिटी वैन में कैद होना पड़ा, और करण जौहर से शाह रुख खान तक को अपनी अपनी फिल्म रिलीज से पहले नवनिर्माण महाराष्ट्र सेना के मुखिया से मुलाकात करनी पड़ी।
और अब जयपुर के आमेर वाले जयगढ़ किले में जो फिल्मकार संजय लीला भंसाली के साथ हुआ, वो अच्छे दिनों की आहट है या बुरे दिनों की शुरूआत है?
सवाल बड़ा अहम है। लेकिन, इस पर जवाब कौन देगा चाहेगा? क्या देश की केंद्रीय सरकार जवाब देना जरूरी समझेगी? जो नोटबंदी के दौरान भी सदन के भीतर हर सवाल को हंगामे में लेपटकर गहरी नींद सुलाती रही।
इस घटना के बाद फिल्मकार रामगोपाल वर्मा ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ट्विटर पर टैग करते हुए लिखा ‘नरेंद्र मोदी मुझे नहीं पता आपके अच्छे दिन कब आएंगे, लेकिन, संजय भंसाली के साथ हुआ घटनाक्रम मुझे महसूस करवा रहा है कि भारत बुरे दिनों के चरम पर जा रहा है।’
हर घटना के बाद देश के प्रधानमंत्री को ट्विटर पर टैग किया जाता है, और उम्मीद की जाती है कि सुनवाई होगी, उम्मीद इसलिए भी क्योंकि नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं, जो अपनी चुनावी सभाओं में सीना ठोकर अच्छे दिन लाने का दावा करते हैं, सोशल मीडिया पर लोगों की बात सुनने की बात कहते हैं।
लेकिन, सोशल मीडिया पर एक खेमा ऐसा भी है, जो इस तरह की घटनाओं पर चुटकियां लेने से गुरेज नहीं करता, उस खेमे को इस तरह की घटनाओं में बड़ा आनंद महसूस होता है जबकि इससे देश की कानून व्यवस्था पर सवाल उठते हैं।
हालिया घटनाक्रम करणी सेना ने फिल्मकार संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती के सेट पर पहुंचकर तोड़ फोड़ शुरू कर देती और मीडिया से बातचीत के दौरान कहती कि तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की जा रही है। लेकिन, दिलचस्प बात तो यह है कि फिल्म पद्मावती पूरी तरह शूट नहीं हुई, और उसके बारे में आधिकारिक तौर पर फिल्म प्रोडक्शन हाउस ने कोई इस तरह की जानकारी सार्वजनिक भी नहीं की, जो दावा करती हो कि फिल्म पद्मावती रानी पद्मिनी और अलाउद्दीन खिलजी की प्रेम कहानी को दिखाएगी। तो फिर ऐसे में केवल अफवाहों पर इतना बड़ा कदम उठा लेना और एक फिल्म सेट पर पहुंचकर गुंडागर्दी शुरू कर देना, कहां तक उचित है?
ऐसा घटनाक्रम पहली बार हुआ, ऐसा बिलकुल नहीं। कुछ महीने पहले अभिनेता अक्षय कुमार की आगामी फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा को लेकर भी विवाद हो चुका है। नतीजन, धमकियां मिलने के बाद फिल्म के शूटिंग स्थल में बदलाव करने पड़े। मथुरा के बरसाना गांव की महापंचायत ने कथित तौर पर फिल्म निर्देशक की जीभ काटकर लाने वाले को एक करोड़ रुपये ईनाम राशि देने तक की घोषणा कर दी थी। और आरोप था कि निर्देशक ने तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की है।
इतना ही नहीं, दक्षिण भारत में जल्लीकट्टू समर्थकों ने आगामी फिल्म ‘गर्जनई’ के शूटिंग स्थल पर पहुंचकर तृषा कृष्णन का विरोध करना शुरू कर दिया। दरअसल, तृषा कृष्णन अंतरराष्ट्रीय संस्था पेटा से जुड़ी हुई हैं, जो बात जल्लीकट्टू समर्थकों को अच्छी नहीं लगी।
ऐसे में फिल्म निर्माता निर्देशक किस तरह फिल्म स्टूडियो से बाहर निकलकर किसी राज्य में जाकर फिल्म बनाने का साहस करेंगे? और किस तरह एक सुरक्षित भारत होने का दावा केंद्र सरकार करेगी? क्या सच में ऐसे होते हैं अच्छे दिन?