नई दिल्ली। देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख दंगों पर आधारित फिल्म ’31 अक्टूबर’ सेंसर बोर्ड से तमाम तरह के गतिरोध के बाद रिलीज के लिए तैयार है। इंदिरा गांधी की हत्या पर बनी यह पहली बॉलीवुड फिल्म है जिससे सिख दंगों की सच्चाई उजागर होगी।
वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख दंगों पर देश में एकतरफा रुख है कि हिंदुओं ने इंदिरा गांधी की दो सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या के बाद सिखों पर हमले शुरू कर दिए, लेकिन निर्देशक हैरी सचदेवा की फिल्म ’31 अक्टूबर’ सिक्के के दोनों पहलुओं को जनता के समक्ष पेश करेगी।
इस विवादास्पद विषय पर फिल्म बनाने का फैसला क्यों किया गया? इसके जवाब में निर्देशक हैरी सचदेवा ने आईएएनएस को बताया, “हम सब 1984 के दंगों के बारे में सुनते आ रहे हैं। इस दंगे की सच्चाई लोगों को समक्ष पेश करना ही फिल्म बनाने का उद्देश्य है। अभी तक इस विषय पर कोई फिल्म नहीं बनी है और मुझे खुशी कि मैं इसे पहली बार दर्शकों के समक्ष पेश करूंगा।”
आमतौर पर सत्य घटना पर आधारित फिल्मों के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इस फिल्म के लिए क्या प्रयास किए गए हैरी बताते हैं, “हमने दिल्ली स्थित विधवा कॉलोनी में जाकर 1984 की विधवाओं से मुलाकात की। उन्होंने अपनी आपबीती सुनाई। इस दंगे को कवर करने वाले पत्रकारों से मुलाकात की। हमारा मकसद यह है कि इस घटना की हकीकत सबके सामने आनी चाहिए। आज की पीढ़ी को इसका सच पता चले। हम इसके माध्यम से एक सकारात्मक संदेश देना चाहते हैं।”
फिल्म वैंकूवर अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव, टोरंटो फिल्मोत्सव और लंदन में दिखाई जा चुकी है और इसे मिली प्रतिक्रिया भी उत्साहजनक है।
हैरी कहते हैं, “इस फिल्म से जुड़े रिसर्च में 16 से 18 महीने का समय लगा। 1984 का दंगा झेल चुके और इसका गवाह बन चुके लोगों से मिलना इतना आसान नहीं था। इनमें से बहुत सारे लोग देश छोड़कर जा चुके हैं। बहुत सारे लोगों की मौत हो चुकी है। उस दौर के पत्रकारों से मिलकर सारे तथ्यों को इकट्ठा किया गया और फिर उस आधार पर छह महीने में फिल्म की कहानी लिखी गई। फिल्म की शूटिंग में लगभग एक साल लगा।”
इस फिल्म को शुरू से ही कांग्रेस विरोधी कहा जा रहा है, लेकिन हैरी साफतौर पर कहते हैं कि यह फिल्म बिल्कुल कांग्रेस विरोधी नहीं है।
उन्होंने कहा, “यह फिल्म एक रात की कहानी है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद क्या हुआ? सिखों पर हुए हमलों में कैसे एक सिख परिवार खुद को बचाता है, यह फिल्म उसी कहानी को बयां करती है।”
इस तरह की फिल्म बनाना हमेशा आसान नहीं रहता। हैरी कहते हैं, “जब हमने लुधियाना में शूटिंग के लिए सेट बनाया तो रात में ही सेट को तोड़ दिया गया। इसके बाद पुलिस से सुरक्षा लेकर हमने दोबारा सेट बनाया और शूटिंग पूरी की।”
सिख दंगों को लेकर लोग पूरा सच नहीं जानते। सिख दंगों में हिदुओं ने सिखों पर हमले किए। उनके घरों में घुसकर मार गिराया गया, लेकिन यह पूरा सच नहीं है। दंगों के दौरान कई हिंदुओं ने सिखों को मरने से भी बचाया था।
हैरी कहते हैं, “हम उन हिंदुओं से भी मिले, जिन्होंने उस रात सिखों को बचाया था। इस संबंध में कनाडा, अमेरिका जाकर बस चुके लोगों से ईमेल कर संपर्क साधा गया।”
सेंसर बोर्ड को डर था कि इस फिल्म की रिलीज से कहीं विवाद पैदा न हो जाए, इसलिए उन्होंने फिल्म में 40 कट लगाने को कहा। एक लंबे गतिरोध के बाद नौ कट के बाद फिल्म को मंजूरी मिली। हमारा शुरू से ही मानना था कि उन दृश्यों को फिल्म से नहीं हटाएंगे जिससे इसका इम्पेक्ट खत्म हो और हमने ऐसा किया भी।
फिल्म के सहनिर्माता आनंद प्रकाश ने आईएएनएस को बताया, “फिल्म को लेकर लोगों मे डर बैठा हुआ है कि कहीं यह कांग्रेस के खिलाफ तो नहीं है, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। हमने फिल्म में सिर्फ हकीकत दिखाई है कि 1984 में हुआ क्या था। सिख विरोधी दंगों में हिंदुओं की जिस उग्र भीड़ ने सिखों पर हमले किए, उसमें लुटेरे ज्यादा थे। उन्होंने सिखों को लूटा भी।”
फिल्म में मुख्य किरदार में सोहा अली खान और वीर दास हैं। आनंद प्रकाश कहते हैं, “‘मुझे रंग दे बसंती’ में सोहा का किरदार बहुत पसंद आया था और यही वजह है कि इस फिल्म में मुख्य किरदार में उन्हें लेने का फैसला किया गया।
वह कहते हैं, “जब सोहा ने फिल्म की कहानी पढ़ी तो वह रो पड़ी थी और उन्होंने झट से इसमें काम करने की हामी भर दी थी।”
फिल्म की शूटिंग तीन जगहों- लुधियाना, दिल्ली और मुंबई में हुई है।
हालांकि, फिल्म का विषय विवादास्पद है और ऐसी संभावना है कि फिल्म को रिलीज के बाद भी विवादों के साए में रहना पड़ सकता है लेकिन आनंद प्रकाश कहते हैं, “विवादों से हम घबराने वाले नहीं है। विवाद तो होते रहेंगे। अगर हम अच्छा काम भी करेंगे तो भी दस लोग बुराई करेंगे।”
लोग सत्य घटना पर आधारित फिल्मों के बारे में जानना चाहते हैं। इस तरह की फिल्मों का भी एक वर्ग है। फिल्म तीन या सात अक्टूबर को रिलीज हो सकती है।
उम्मीद है कि इस फिल्म की रिलीज के बाद सन् 1984 के दंगों को लेकर लोगों का नजरिया बदलेगा।
-आईएएनएस/रीतू तोमर