नई दिल्ली। प्रख्यात फिल्मकार श्याम बेनेगल ने कहा है कि ‘उड़ता पंजाब’ में पंजाब को बदनाम नहीं किया गया है और यह राज्य में नशे की समस्या को उजागर करने का फिल्मकारों का प्रशंसनीय प्रयास है।
कई राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके फिल्मकार बेनेगल ने फोन पर आईएएनएस से कहा, “यह फिल्म बेहद अच्छी बनी है। यह युवाओं में नशे की लत की गंभीर समस्या को उजागर करती है, जिस पर अगर ध्यान नहीं दिया गया तो यह गंभीर समस्या बन सकती है। यह एक सराहनीय प्रयास है।”
उन्होंने कहा, “लेकिन, फिल्म के बारे में लोगों के मन में भ्रम है। उन्हें लगता है कि यह पंजाब विरोधी है। लेकिन, मुझे नहीं लगता कि यह किसी भी तरह पंजाब विरोधी है।”
सरकार द्वारा केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) में सुधार के लिए गठित समिति के अध्यक्ष बेनेगल ने फिल्म निर्माताओं और सेंसर बोर्ड के बीच उपजे विवाद के बाद बुधवार को अभिषेक चौबे निर्देशित फिल्म देखी।
सेंसर बोर्ड ने फिल्म में पंजाब का जिक्र हटाने और अपशब्दों सहित 89 कट करने को कहा है। सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने इस बात से इनकार किया है कि उन्होंने राजनीतिक दवाब के तहत काम किया है।
पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होंगे। विपक्ष ने राज्य में नशे की समस्या को एक प्रमुख मुद्दा बनाया है, जिससे सत्तारूढ़ अकाली दल-भाजपा गठबंधन खफा है।
निहलानी ने बुधवार को कहा था कि सह-निर्माता अनुराग कश्यप ने ‘उड़ता पंजाब’ बनाने के लिए आम आदमी पार्टी (आप) से पैसे लिए हैं। उनकी इस टिप्पणी पर फिल्मकारों और बॉलीवुड ने रोष व्यक्त किया है।
बेनेगल ने कहा कि वह एक फिल्मकार के तौर पर बोल रहे हैं, सीबीएफसी सुधार समिति के अध्यक्ष के तौर पर नहीं।
उन्होंने कहा, “अगर बोली और भाषा के प्रयोग का सवाल है तो (फिल्म में) बेहद अश्लीलता है।” उन्होंने कहा, “लेकिन, हमारे समाज के कई वर्ग ऐसे हैं, जो भाषा में अश्लील शब्दों का प्रयोग करते हैं।”
बेनेगल ने साथ ही कहा कि उनके अनुसार यह फिल्म सभी आयु वर्ग के दर्शकों के लिए नहीं है। उन्होंने कहा, “इसे ‘यू’ सर्टिफिकेट नहीं दिया जा सकता और मुझे बताया गया है कि निर्माताओं ने युनिवर्सल सर्टिफिकेट की मांग भी नहीं की है।”
बेनेगल ने कहा, “उन्होंने केवल ‘ए’ सर्टिफिकेट की मांग की है। इसलिए उम्र और परिवक्वता के लिहाज से फिल्म केवल वयस्कों के लिए है।”
बेनेगल ने कहा कि ‘उड़ता पंजाब’ एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाती है। उन्होंने कहा, “पंजाब अति संवेदनशील है। दुखद है कि यह बेहद संवेदनशील है क्योंकि यह एक सीमावर्ती राज्य है और भारत का एक प्रवेश द्वार है। इसलिए बाहर से आना वाले मादक पदार्थों को पंजाब से होकर गुजरना पड़ता है।”
बेनेगल ने बतौर फिल्मकार अपने करियर में सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को बेझिझक उठाया है और वर्ग मतभेद पर बनी ‘अंकुर’, महिलाओं के यौन शोषण पर बनी ‘निशांत’ और एक वेश्याघर में वेश्याओं और राजनेताओं के बीच झगड़े पर बनी ‘मंडी’ जैसी फिल्मों के जरिए संवेदनशील विषयों को बेहद कुशलता से उठाया है।
उनके दौर की तुलना में क्या फिल्मकारों के लिए अब सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को पर्दे पर पेश करना कठिन हो गया है? इस सवाल पर उन्होंने कहा, “आप किसी भी समय किसी भी चीज के खिलाफ हों, उसकी प्रतिक्रिया अवश्य होगी। आप इसके ना होने की उम्मीद नहीं कर सकते। अगर मैं आपकी आलोचना करूंगा तो आप निश्वित तौर पर प्रतिक्रिया करेंगे। इसका इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि 30 साल पहले क्या हुआ था या आज क्या हुआ है।”
उन्होंने कहा कि फर्क सिर्फ इतना है कि अब मुद्दे विवाद में तबदील हो जाते हैं क्योंकि ‘मीडिया इसे बढ़ा-चढ़ा कर पेश करता है।’
-आईएएनएस/राधिका भिरानी