महेंद्र पटेल निर्देशित गुजराती एक्शन क्राइम ड्रामा जी रसातल में पहुंच चुकी कानून व्यवस्था की कहानी है, ऐसी व्यवस्था, जो ईमानदार दूधवाले को कुख्यात शराब तश्कर बना देती है, और एक ईमानदार पुलिस अधिकारी को बदला लेने तथा अपराध खत्म करने के लिए कायदे से बाहर जाकर काम करने पर मजबूर करती है।
जी की शुरूआत दारू के अड्डे पर पुलिस छापेमारी से शुरू होती है, जहां पर एक दबंग पुलिस अधिकारी दारू माफिया को चुनौती देकर आता है। लेकिन, दूसरे फ्रेम में दारू माफिया पुलिस थाने में आते हैं और पाकिस्तानी आतंकवादियों की तरह बेखौफ दनादन दनादन गोलियां बरसाते हुए अपनी मौजूदगी दर्ज करवाकर निकल जाते हैं, और एक गोली पुलिस अधिकारी पाठक के सिर में भी दाग देते हैं।
पाठक की मौत के बाद नया एसीपी सम्राट तैनात होता है, जो शराब माफिया गजराज के कारोबार में नकेल कसने की कोशिश करता है। एसीपी सम्राट और गजराज के बीच तनातनी अंत तक चलती रहती है। इस बीच गजराज के दूधवाला से कुख्यात दारूवाला बनने, एसीपी सम्राट की प्रेम कहानी सामने आती है।
इसमें कोई शक नहीं है कि महेंद्र पटेल का निर्देशन अच्छा है और उनके हाथ में कंटेंट भी ऐसा था कि धमाकेदार एक्शन फिल्म निकाली जा सके। लेकिन, खामियों भरा संपादन और स्क्रीन-प्ले फिल्म की गंभीरता और इसकी तमाम संभावनाओं को मारता है। फिल्म की वार्ता कहने का तरीका दक्षिण भारतीय सिनेमा से प्रभावित है जबकि स्क्रीन प्ले हिंदी सिने जगत की औसतन एक्शन क्राइम मसाला फिल्मों से प्रेरित है।
फिल्म के चुटीले संवादों पर काम बेहतरीन तरीके से हुआ है, जो दर्शकों को हंसने पर मजबूर करते हैं। हालांकि, सीट मार सीनों की कमी है, जबकि हिट एक्शन फिल्मों में सीट मार सीन होना पहली शर्त है।
अभिनय की बात करें तो अभिनेता अभिमान्यु सिंह गजराज के किरदार के लिए राइट च्वॉइस लगते हैं। दरअसल, अभिमान्यु दक्षिण भारतीय फिल्मों में ऐसे किरदार निभाकर वाहवाही लुट चुके हैं। अनवेशी जैन अपने किरदार को शुरू से अंत तक पकड़े रखती हैं, जो किसी कलाकार के लिए अहम होता है। अनवेशी जैन ने एक साधारण युवती और गृहिणी के किरदार दिल से अदा किया है। पुलिस अधिकारी पाठक के किरदार में अभिलाष शाह की भूमिका शॉर्ट एंड स्वीट है। एसीपी सम्राट के किरदार में चिराग जानी ठीक ठाक लगते हैं। चिराग जानी के एक्शन और दबंग अवतार को निखारने की जरूरत महसूस होती है। बीच के कुछ सीनों में और अंतिम सीन में चिराग जानी प्रभावित करते हैं। अघोर के किरदार में आकाश झाला का काम ठीक ठाक है। जिगनेश मोदी ने भ्रष्ट पुलिस अधिकारी के किरदार को बड़ी शिद्दत से निभाया है, जिससे घृणा करने का मन भी होता है। जिगनेश मोदी के हावभाव किरदार को जानदार बनाते हैं।
फिल्म का फिल्मांकन बेहतरीन है, कुछ शॉट्स में नयापन नजर आता है। इसके अलावा फिल्म का गीत संगीत ठीक ठाक है। लेकिन, अंतिम गाना एकदम बॉलीवुड शैली का है, जो फिल्म के माहौल के अनुकूल है। यदि आप फिल्म के तकनीकी पहलूओं पर अधिक गौर नहीं करते हैं और फिल्म के ढीले ढाले क्षणों में खुद को संभाल लेते हैं, तो यह फिल्म एक दफा देखने में कोई बुराई नहीं।
क्यों देखें? गुजराती सिनेमा में हो रहे नये प्रयोग को समर्थन देने, भ्रष्ट व्यवस्था और समाज, एक र्इमानदार पुलिस अधिकारी के जीवन की चुनौतियों को समझने के लिए, कॉमिक सीनों पर ठहाके लगाने।