Sunday, December 22, 2024
HomeLatest NewsMovie Review : रेवा अध्यात्म और प्रेम का संगम है, शत प्रतिशत...

Movie Review : रेवा अध्यात्म और प्रेम का संगम है, शत प्रतिशत देखने लायक फिल्म

नर्मदा नदी की महिमा और इसके किनारे रहने वालों की श्रद्धा तथा चुनौतियों को प्रकट करते ध्रुव भट्ट के गुजराती उपन्यास तत्वमसि पर आधारित गुजराती फिल्म रेवा जिंदगी रूपांतर की कहानी है। वैसे भी देखा जाए तो तत्वमसि का शाब्दिक अर्थ होता है कि वह तुम ही हो और असल अर्थों में यह फिल्म भी खुद की खोज के बारे में है।

फिल्म की कहानी के केंद्र में करन नामक युवक है, जो विदेश में पला बढ़ा और पढ़ा लिखा है। उसका रहन सहन विदेशी है। उसके लिए पैसा और एशोआराम ही सब कुछ है। अचानक एक दिन उसको पता चलता है कि उसके दादा जी गुजर गए और अपनी सारी पूंजी भारत स्थित एक आश्रम को दान कर गए।

दादा जी की मौत से सड़क पर आ चुके करन को संपत्ति हासिल करने के लिए अमेरिका से भारत आकर आश्रम के ट्रस्टियों से कोई एतराज नहीं प्रमाण पत्र हासिल करना होता है। लेकिन, भारत आया करन नहीं चाहता कि उसकी मंशा के बारे में किसी भी ट्रस्टी को भनक लगे।

अचानक, धीरे धीरे करन की पोल खुलने लगती है। एक बार तो करन को दस्तावेज पर सभी ट्रस्टियों के हस्ताक्षर मिल जाते हैं। लेकिन, यह कागज एक घटना के दौरान आग में जल जाते हैं। दूसरी बार ट्रस्टी कागजों पर साइन करेंगे या नहीं? जुए के कारण कर्ज में डूबे करन को राहत मिलेगी या नहीं ? जानने के लिए रेवा देखें।

निर्देशक युगल राहुल भोले और विनित कानोजिया का निर्देशन शानदार है। फिल्म के हर पक्ष पर बराबर ध्यान दिया है। कहानी में गति बनाए रखने के लिए बेहतरीन संवाद डाले गए हैं। फिल्म का संपादन भी बेहतरीन तरीके से किया गया है।

अभिनेता चेतन धनानी का गेटअप दक्षिण भारतीय सुपर स्टार सूरिया से मिलता जुलता है, जो चेतन के चेहरे को दर्शकों के लिए जाना पहचाना बनाता है। चेतन ने अपने किरदार को बड़ी सहजता से निभाया है।

सुप्रिया का किरदार अदा करने वाली मोनल गज्जर, जो दक्षिण भारतीय सिनेमा में काम कर चुकी हैं, के अभिनय में दक्षिण भारतीय अभि​नेत्रियों जैसी मोहकता देखने को मिलती है। भरा हुआ चेहरा और मोटी मोटी आंखों के साथ प्यारी सी मासूमियत भरी मुस्कान आकर्षित करती है। भावनात्मक सीनों में मोनल गज्जर दिल को छूती हैं।

अभिनय बैंकर और अतुल महाले ने बित्तु बंगा के किरदार को जीवित कर दिया। दोनों की ट्यूनिंग और आत्मीयता भी प्रभावित करती है। दया शंकर पांडे ने झंडू फकीर के किरदार में अपने सहज अभिनय से जान डाल दी है। दया शंकर पांडे जब जब एक अलग तरह की भाषा में संवाद बोलते हैं तो दर्शक ठहाके लगाने पर मजबूर हो जाते हैं। भूरिया के किरदार में रूपा बोरगांवकर भी प्रभावित करती हैं।

इसके अलावा अन्य सहयोगी कलाकारों का अभिनय भी शानदार है। ​फिल्म की सिनेमेटोग्राफी भी सराहनीय है, जो फिल्म को शानदार बनाती है। गीत संगीत पक्ष ठीक ठाक है।

रेवा अध्यात्म और प्रेम का संगम है। रेवा में प्रेम और अध्यात्म नदी के किनारों की तरह समानांतर चलते हैं। फिल्म के संवाद बेहद साफ सुथरे और प्रेरणादायक हैं। फिल्म रेवा धर्मांधता पर कटाक्ष भी करती है और मन में श्रद्धा भाव को जन्म भी देती है।

आधुनिक गुजराती सिनेमा में रेवा जैसी फिल्म बनाना साहसी कार्य है, विशेषकर तब जब गुजराती बॉक्स आॅफिस पर केवल दो—अर्थी शब्दों और युवा पीढ़ी केंद्रित फिल्मों का दबदबा बना हुआ हो।

 – कुलवंत हैप्पी @Twitter

Kulwant Happy
Kulwant Happyhttps://filmikafe.com
कुलवंत हैप्‍पी, संपादक और संस्‍थापक फिल्‍मी कैफे | 14 साल से पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय हैं। साल 2004 में दैनिक जागरण से बतौर पत्रकार कैरियर की शुरूआत करने के बाद याहू के पंजाबी समाचार पोर्टल और कई समाचार पत्रों में बतौर उप संपादक, कॉपी संपादक और कंटेंट राइटर के रूप में कार्य किया। अंत 29.01.2016 को मनोरंजक जगत संबंधित ख़बरों को प्रसारित करने के लिए फिल्‍मी कैफे की स्‍थापना की।
RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments