एक ओर गणपति बप्पा का श्रृंगार चल रहा है और दूसरी ओर वयोवृद्ध पुलिस कर्मचारी गणपत भोंसले के शरीर से पुलिस की वर्दी उतर रही है। जल्द ही अगले सीन में गणपति बप्पा और गणपत भोंसले एक दूसरे को एक जगह क्रॉस करते हैं। फिल्म भोंसले का यह शुरूआती सीन फिल्मकार के सिनेमाई कलात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
फिल्म भोंसले के अगले कुछ सीनों में गणपत भोंसले के एकांतमय जीवन को कैद किया गया है, जहां पर सिनेमेटोग्राफी और मनोज बाजपेयी की बेजोड़ अदाकारी का जादू देखने को मिलता है। इसके बाद कहानी भोंसले की चॉल में पहुंच जाती है, जहां पर स्थानीय लोगों के अलावा प्रवासी लोग भी रहते हैं।
गणेश चतुर्थी के उपलक्ष्य में चॉल में भगवान गणेश को बिठाने की तैयारी चल रही है। इसी बीच टैक्सी ड्राइवर विलास मराठी मानुस का नारा बुलंद कर देता है, जो नेता बनना चाहता है। विलास चाहता है कि चॉल में केवल गणेश बिठाने का हक मराठी मानुस को होना चाहिए। विलास और प्रवासी युवक राजेंद्र के बीच हाथापाई होती है और भोंसले एक जगह चुपचाप खड़े होकर तमाशा देखते हैं। विलास भोंसले का समर्थन पाना चाहता है, पर, भोंसले कुछ नहीं कहते। उधर, विलास चॉल के मराठी लोगों को अपने पक्ष में लाने के लिए हरसंभव कोशिश करने में जुट जाता है, तो इधर, एक घटना के बाद चॉल में रहने वाली प्रवासी लड़की सीता का गणपत भोंसले के साथ परिवार सा रिश्ता बन जाता है।
अचानक एक दिन चॉल के आंगन में विलास और भोंसले में किसी बात को लेकर कहासुनी होती है और विलास इस बात से काफी आहत हो जाता है। इसके बाद विलास अपनी बेइज्जती का बदला लेने की ठानता है। विलास अपने बदले की आग को किस तरह शांत करता है? इसके परिणाम क्या निकलते हैं? को जानने के लिए फिल्म भोंसले देखनी होगी।
फिल्म निर्देशक देवाशीष मुखीजा की भोंसले का ज्यादातर हिस्सा हाव भावों से व्यक्त किया गया है। नतीजन, फिल्म में अधिक संवाद नहीं हैं। फिल्म की गति धीमी है, पर, इससे शिकायत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह मसअला फिल्म है, मसाला नहीं। फिल्म में मराठी और हिंदी भाषी का मसअला दिखाया गया है, पर, तर्क कुतर्क बिलकुल नहीं किया गया। हां, जब विलास चॉल के लिए कुछ करने के दावे करने लगता है तो भोंसले नाली की ओर इशारा करते हुए धीमी आवाज में कहते हैं, ‘यह करवा दो।’
इसके अलावा देवाशीष मखीजा गणपत और विलास की बेबसी को उजागर करने वाले सीनों को भी बड़ी खूबसूरती के साथ फिल्माते हैं। फिल्म भोंसले का स्क्रीन प्ले देवाशीष मखीजा ने मिराट त्रिवेदी और शरण्या राजगोपाल के साथ मिलकर लिखा है, जो फिल्म को खूबसूरत बनाता है।
मनोज बाजपेयी ने गणपत भोंसले के किरदार को निभाया नहीं, बल्कि रूह से जिया है। मनोज बाजपेयी के हाव भाव और शारीरिक भाषा दोनों ही उम्दा हैं। मनोज बाजपेयी ने इससे पहले शॉर्ट फिल्म तांडव में भी तनावग्रस्त पुलिस कर्मचारी का किरदार अदा किया था। सीता के किरदार में इप्शिता चक्रवर्ती सिंह, विलास के किरदार में संतोष जुवेकर, राजेंद्र के किरदार में अभिषेक बनर्जी और लल्लू के किरदार में विराट वैभव का अभिनय भी सराहनीय है। विलास का किरदार सेक्रेड गेम्स के बंटी की याद दिलाता है।
फिल्म भोंसले की सिनेमेटोग्राफी और का क्लाईमेक्स दोनों ही बकमाल हैं। यदि आप मसाला फिल्मों के अलावा भी सिनेमा देखना पसंद करते हैं, तो मनोज बाजपेयी अभिनीत भोंसले देखने लायक फिल्म है। फिल्म भोंसले को सोनी लिव पर रिलीज किया गया है।