कुछ लोगों की जिंदगी संघर्ष करते हुए सफलता की शिखर को छूते ही शारीरिक तौर पर ख़त्म हो जाती है और यहां से शुरू होती है, उनके प्रेरणादायक जीवन की एक नयी कहानी। वो दुनिया में नहीं होते, लेकिन, उनकी कहानियां किस्से उनको हमेशा लोगों के जेहन में जिंदा रखते हैं, कुछ ऐसी ही कहानी है जर्सी के अर्जुन की।
जर्सी की शुरूआत एक बुक स्टोर से होती है, जहां एक युवक एक किताब खरीद रहा है और तभी इस स्टोर पर दो युवतियां आती हैं, और इसी किताब के बारे में पूछती हैं। मगर, किताब का स्टॉक खत्म हो चुका है। युवतियां निराश होकर लौटने लगती हैं, तभी ये युवक उनका पीछा करते हुए उनको किताब देने उनके पास पहुंचता है। यह युवक कोई और नहीं, बल्कि अर्जुन का पुत्र है, जो अर्जुन को 40 साल की उम्र में भी क्रिकेटर के तौर पर कमबैक करने के लिए प्रेरित करता है।
इसके बाद युवक अपनी मां के साथ भारत में आयोजित एक समारोह में पहुंचता है, जहां उसके पिता के जीवन पर लिखी किताब रिलीज होने जा रही है। यहां पर युवक अपने पिता की कहानी और कुछ चौंका देने वाले किस्से शेयर करता है, जो एक असफल क्रिकेटर को एक सफल और प्रेरणादायक क्रिकेटर के रूप में सामने लेकर आते हैं।
अर्जुन की कहानी में जोश, लव शब, असफलता, हताशा, संबंधों की कड़वाहट, अपनों का साथ और जीत का जश्न सब कुछ शामिल है।
रणजी क्रिकेट की दुनिया के सितारे, लच्चर व्यवस्था के शिकार क्रिकेटर, बेरोजगार पति और स्नेही पिता अर्जुन के किरदार को नानी ने बड़ी संजीदगी के साथ निभाया है। सारा, जो बेरोजगार, बेपरवाह पति और घर की तंगहाली से परेशान है, के किरदार में श्रद्धा श्रीनाथ भी बेहतरीन लगती हैं। हौसला बढ़ाने और प्रतिभा की कद्र करने वाले कोच मूर्ति के किरदार में सत्याराज जंचते हैं।
गौतम तिन्नानूरी ने फिल्म जर्सी का निर्देशन करने के साथ साथ स्क्रीन प्ले भी लिखा है। दोनों ही विधाओं में गौतम ने बेहतरीन काम किया है। कहानी के किरदार असल जीवन के काफी निकट नजर आते हैं। भावनात्मक सीनों को संजीदगी और गंभीरता के साथ शूट किया गया है। क्रिकेट और अर्जुन के जीवन का कॉम्बिनेशन दिल को छू जाता है। फिल्म का संपादन थोड़ा सा बेहतरीन हो सकता था, लेकिन, कुछ खामियों के बावजूद भी बोर करने वाला नहीं है। दरअसल, फिल्म की रफ्तार और पटकथा दोनों फिल्म को रोचक बनाए रखते हैं।
फिल्म जर्सी की कहानी अर्जुन के संघर्ष को दिखाने के साथ इस बात पर जोर देती है कि जब दुनिया तुम से कहे कि बेटा तुम से नहीं होगा, तब तुम जिद करना, और दुनिया की राय को बदलना। सीखने और आगे बढ़ने की कोई उम्र नहीं होती। दूसरे शब्दों में कहें तो जब जागो, तब सुबह समझो।
अगर, समय हो तो जर्सी वाले अर्जुन से जरूर मिलिए, जो आपके भीतर के अर्जुन को जगाने का दम रखता है। इसके लिए तेलुगू फिल्म जर्सी (हिन्दी में डब) देखनी होगी, जो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है। यदि सिनेमा हाल में देखने का इंतजार कर सकते हैं, तो बता देते हैं कि जल्द इसका हिन्दी रीमेक देखने को मिलेगा, जिसमें शाहिद कपूर, मृणाल ठाकुर और पंकज कपूर लीड भूमिका में दिखेंगे।