कोच्चि की राधा, जो एकल मॉम है और दिल्ली का रौशन, जो बेपरवाह बाप है। राधा अपने बेटे के साथ अपनी जिंदगी में खुश है, लेकिन, सपनों के पीछे भागता रौशन सब कुछ हासिल करने के बाद भी निराश, हताश है।
अचानक जॉब जाने के कारण रौशन विदेश से अपने बेटे के स्कूल फंक्शन में हिस्सा लेने के लिए कोच्चि पहुंचता है। रौशन अपनी पत्नी राधा के घर में ही रहता है। राधा को अचानक पता चलता है कि रौशन की जॉब चली गई है, वो रौशन की मदद करना चाहती है। लेकिन, रौशन को राधा का विचार नागवार गुजरता है।
रौशन को लगता है कि राधा का किसी और शख्स के साथ प्रेम संबंध में है। इस बीच रौशन का बेटे से लगाव बढ़ने लगता है। अब रौशन को बेटे के साथ समय बिताना सुकून देता है। क्या राधा रौशन को स्वीकार कर पायेगी? क्या रौशन अपने ड्रीम को छोड़ कर परिवार के साथ रहेगा? इन सवालों के जवाब शेफ देखने पर मिलेंगे।
फिल्म शेफ का संपादन काफी चुस्त है। फिल्म तेज गति के साथ आगे बढ़ती है। पिता पुत्र के रिश्ते के इर्दगिर्द घूमती शेफ में सब कुछ थोड़ी थोड़ी मात्रा में है। फिल्म का अंत काफी भावुक है और सुखद है।
निर्देशक के रूप में राजा कृष्णा मेनन का निर्देशन बढ़िया है। एकल मां और खुशमिजाज युवती के किरदार को अदा करने वाली पद्मप्रिया की मौजूदगी फिल्म को प्रभावशील बनाती है। पद्मप्रिया जब जब पर्दे पर आती हैं, स्क्रीन मुस्कराने लगती है।
सैफ अली ख़ान को ऐसे किरदारों में कई बार देखा जा चुका है, हालांकि, सैफ अली ख़ान ने शेफ के कार्य को काफी ईमानदारी से किया है। फिल्म देखकर लगता है कि सैफ अली खान ने शेफगिरी के लिए काफी मेहनत की है।
फिल्म के अन्य कलाकारों का अभिनय भी बढ़िया है। फिल्म की पटकथा में थोड़ा सा सुधार किया जा सकता था। हालांकि, फिल्म मौजूदा स्क्रीन प्ले के साथ भी अच्छी लगती है।
इसके अलावा फ़िल्म का बैकग्राउंड म्यूज़िक बढ़िया है। गीत संगीत पर काम किया जा सकता था। सिनेमेटोग्राफी प्रभावशील है, जो फिल्म को आंखों के अनुकूल बनाती है।
फिल्म शेफ देखते हुए महसूस होता है कि अच्छे रिश्ते लाइफबॉय की तरह होते हैं, जो समुंदर की भयभीत करने वाली लहरों में भी व्यक्ति को डूबने से बचाते हैं। तीन सितारा साफ सुथरी फिल्म शेफ मनोरंजन करने के साथ साथ रिश्तों की अहमियत का एहसास करवाती है।
– कुलवंत हैप्पी