यकीनन बड़े पर्दे पर कोर्ट रूम ड्रामा हम बहुत बार देख चुके हैं। मगर, फिल्म पिंक का कोर्ट रूम ड्रामा है एक नये आयाम का, नये स्तर का। शायद मौजूदा समय में इसकी बहुत जरूरत है। जहां स्त्री विस्तार पा रही है, और पुरुषों की बराबरी में खड़े होने के लिए प्रयत्न कर रही है।
हालांकि, हो सकता है कि आपको पिंक देखते हुए रानी मुखर्जी की ‘नो वन किल्ड जेसिका’ और सनी देओल की ‘दामिनी’ याद आ जाए। लेकिन, इस फिल्म में एक दिलचस्प बात यह है कि प्रश्नों को संवादों के रूप में अगली सीट पर और कहानी को बैक सीट पर बिठा दिया गया है।
यदि फिल्म की कहानी की बात करें तो बस इतनी सी है कि तीन लड़कियां मीनल (तापसी पन्नू), फलक (कीर्ति कुलहरि) और एंड्रिया (एंड्रिया तारियांग) एक साथ दिल्ली में रहती हैं, जो अपने पांवों पर खड़ी हैं। एक रात वे सूरजकुंड में रॉक शो के लिए जाती हैं, जहां उनकी मुलाकात राजवीर (अंगद बेदी) और उनके साथियों से होती है। इस दौरान राजवीर मीनल के साथ बदतमीजी करने लगता है और मीनल अपने बचाव में उसके सिर पर बोतल मार कर उसको घायल कर देती है। राजवीर राजसी परिवार से संबंध रखता है। राजवीर मीनल से बदला लेने के लिए उस पर झूठा केस बनवा देता है और साथ में मीनल के साथ कॉल गर्ल का टैग लगा देता है। इस दौरान मुश्किल में फंसी हुईं लड़कियों के लिए वकील दीपक सहगल (अमिताभ बच्चन) मसीहा बनकर आते हैं और उनका केस अपने हाथ में लेते हैं। कहानी इंटरवल के बाद कोर्ट रूम ड्रामा बन जाती है, जहां पर वकील दीपक सहगल के मार्फत निर्देशक अपने विचार सिने प्रेमियों के सामने पूरे दमदार तरीके से रखते हैं। कोर्ट रूम की हकीकत देखने के लिए पिंक देना अनिवार्य हो जाता है।
निर्देशन की बात करें तो अनिरुद्ध रॉय चौधरी का निर्देशन गजब का है। हालांकि, उनकी पीठ पर शूजित सरकार जैसे मंझे हुए निर्देशक का हाथ था। कहानी को दिलचस्प बनाए रखते हुए किस तरह फ्रेम दर फ्रेम आगे बढ़ाया जाए यह बात अनिरुद्ध रॉय चौधरी की पिंक देखकर ही समझ आ सकती है। हालांकि, अनिरुद्ध रॉय चौधरी इसको बंगाली में बनाना चाहते थे। मगर, शूजित सरकार को कहानी इतनी पसंद आई कि उन्होंने फिल्म को हिन्दी में बनाने की योजना बनाई।
फिल्म पिंक में संवादों पर अधिक बल दिया गया है। इसका एक अन्य कारण यह भी है कि कोर्ट रूम में बिना तर्कों को बात रखना मतलब केस हारना होता है। दीपक सहगल के किरदार में अमिताभ व्यंग कसते हुए जबरदस्त लगते हैं। व्यंगात्मक संवाद भी बेहद खूबसूरत तरीके से लिखे गए हैं, जो सीधे तीर की भांति सीने में लगते हैं। फिल्म ‘पिंक’ में हर बात को बिना किसी शोर-शराबे के उठाया गया है। दरअसल, पिंक का पूरा जोर इस बात पर है कि लड़कियों के प्रति अपनी सोच बदलो। उनको उनके कपड़ों से आंकना बंद करो।
बेबी के बाद पिंक में नजर तापसी पन्नू का अभिनय गजब का है। तापसी पन्नु ने मीनल के हर रंग को बड़ी ईमानदारी के साथ पर्दे पर जिया है। उनका अभिनय काबिलेतारीफ है। कीर्ति कुलहरि और एंड्रिया भी अपने किरदारों के साथ वफा करती नजर आईं हैं। अभिनेता पियूष मिश्रा अमिताभ बच्चन को टक्कर देते हुए नजर आए, जो होना भी चाहिए था। अंगद बेदी का अभिनय भी अच्छा रहा।
हर फिल्म मनोरंजन के लिए ही हो ऐसा अनिवार्य नहीं। कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जो समय के अनुकूल होती हैं, जो प्रासंगिक होती हैं, जिनका बनना जरूरी होता है क्योंकि सिनेमा भी एक जन जागृति का माध्यम है। पिंक इसी श्रेणी की फिल्म है, जो बार बार ना सही, मगर एक बार जरूर देखनी चाहिए। हमारी तरफ से पिंक को साढ़े तीन स्टार मिलते हैं। हालांकि, यह हमारी अपनी निजी राय है, जो सभी पर लागू नहीं होती क्योंकि हर किसी का अपना अपना नजरिया होता है।
नील सर्वोपरि
सिने दर्शक