दिल्ली के चांदनी चौंक का राज पहली नजर में दुकान पर आई मीतां को दिल दे बैठता है। कहानी कुछ साल आगे खिसक जाती है। राज मीतां का ब्याह हो चुका है और दोनों एक बच्ची के माता पिता बन चुके हैं। असल में फिल्म यहां से शुरू होती है।
राज की मॉर्डन और फैशनेबल पत्नी मीतां अपनी बेटी को शहर के सबसे अच्छे स्कूल में भेजना चाहती है। अपनी इस ख्वाहिश के लिए मीतां राज से पुश्तैनी घर छुड़वाती है। राज को हाई फाई सोसायटी में फिट करने की हरसंभव कोशिश करती है। राज अपनी मीतां को खुश रखने के लिए किसी भी हद तक जाता है।
तमाम कोशिशों के बावजूद भी मीतां की छोरी को दिल्ली के सबसे बड़े स्कूल में दाखिला नहीं मिलता। हालांकि, यहां एक उम्मीद बाकी है, अंडर द टेबल, जिसको हिंदी में भ्रष्टाचार कहते हैं।
क्या राज और मीतां भ्रष्टाचार के दम पर स्कूल में अपनी बेटी का दाखिला करवा लेंगे? क्या राज अपनी मीतां की ख्वाहिश पूरी कर देता है? देखने के लिए हिंदी मीडियम देखी।
फिल्मकार साकेत चौधरी ने निर्देशन के लिए सार्थक और रोचक सब्जेक्ट को चुना। स्टार कास्ट चुनने में भी कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। फिल्म निर्देशक होने के नाते साकेत चौधरी ने कलाकारों से बेहतर काम करवाया। हालांकि, निर्देशक चाहते तो फिल्म को और रोचक और सार्थक बना सकते थे। फिल्म की कहानी सुपरफास्ट ट्रेन की तरह दौड़ती है।
फिल्म की कहानी और विषय-वस्तु सामयिक है। हालांकि, कहानी में संपर्कता की कमी महसूस होती है। भरत नगर वाला स्लॉट दिल को छूता है। लेकिन, फिल्म के अंत में इरफान खान द्वारा दी जाने वाली स्पीच पर काम करने की जरूरत थी, जो ताली सबा कमर बजाती है। दरअसल, वो ताली सिनेमा हॉल में बैठे दर्शक की ओर से आनी चाहिये थी।
सबा कमर की अदाकारी लाजवाब है। हर फ्रेम में बढ़िया लगती हैं, चाहे वो पॉश इलाके की रहने वाली मीतां का हो या भरत नगर में रहने वाली साधारण महिला का। सबा कमर अपने किरदार में पूरी तरह डूबी हुई नजर आईं।
सबा कमर के बाद हिंदी मीडियम में दीपक डोब्रियल का किरदार और अभिनय प्रभावित करता है। दीपक डोब्रियल का किरदार फिल्म की जान कहा जा सकता है।
इरफान खान, जो मंझे हुए कलाकार हैं, ने अपने किरदार को खूबसूरती से अदा किया है। लेकिन, उनकी आवाज में हद से ज्यादा अक्खड़पन डाला गया है, जो कहीं न कहीं चुभता है। हालांकि, कुछ सीनों में इरफान ने अपना जबरा फन दिखाया है। स्कूल प्रिंसिपल के किरदार में अमृता सिंह की अदाकारी भी काबिलेतारीफ है।
साकेत चौधरी निर्देशित हिंदी मीडियम को एक बार देखा जा सकता है। हां, कुछ सीन ऐसे हैं, जो सदाबाहर रहेंगे, जिनको बार बार देखेंगे तो मजा आएगा। कुछ कमियों के बावजूद भी हिंदी मीडियम एक सार्थक और मनोरंजक फिल्म है, जो परिवार के साथ देखी जा सकती है।
– कुलवंत हैप्पी | Kulwant Happy