तलवार, राजी को निर्देशित कर चुकीं मेघना गुलजार छपाक की कहानी को छात्र आंदोलन से शुरू करती हैं। क्रोधित छात्रों का बड़ा सा झुंड कुंभकर्णी नींद में सोए हुए सत्ता पक्ष के खिलाफ दिल्ली की सड़कों पर है।
युवा छात्रों का आंदोलन और आक्रोश कमोबेश वैसा ही है, जैसा मौजूद समय में चल रहा है। यदि कुछ अलग सा है, तो बस इतना सा कि पहले छात्रों का आक्रोश अभिव्यक्ति का प्रतीक माना जाता था, अब राष्ट्रविरोधी की संज्ञा में बदल चुका है। पर्दे पर चल रहा छात्र आक्रोश आंदोलन साल 2012 में हुए एक मेडिकल छात्रा के रेप को लेकर तत्कालीन सरकार के खिलाफ है।
इसी आंदोलन में एक महिला संवाददाता एक एनजीओ चलाने वाले अमोल से मिलती है, और मालती की बात निकलती है, जो इनदिनों अपनी जनहित याचिका (पीआईएल) के लिए चर्चा में है, और तेजाबी हमले की शिकार है।
अमोल के कटाक्ष भरे सवाल के बाद संवाददाता मालती को खोज लेती है, और नौकरी के सिलसिले में दर-ब-दर की ठोकरें खा रही मालती नौकरी मिलने की उम्मीद में अमोल को फोन लगाती है।
मालती अमोल के एनजीओ, जो तेजाबी हमले की शिकार पीड़ित युवतियों महिलाओं के लिए कार्यरत है, में नौकरी करने लगती है, और साथ साथ में अपने खुद के केस की तारीखें भी भुगताने जाती है।
मालती पर तेजाब फेंकने वाला बाशिर खान उनके मोहल्ले में रहने वाला, उनका परिचित युवक है, जो मालती पर बुरी नजर रखता है, और मालती को राजेश से मोहब्बत है, जो उसकी उम्र का है।
ऐसे में मन की भड़ास निकालने के लिए बाशिर, मालती पर तेजाब फेंकता है, और तेजाबी छपाक से मालती के चेहरे की रंगत ले उड़ता है, और उसके जीवन को अंधेरे में धकेल देता है।
इस अंधेरे से मालती किस तरह बाहर आती है? क्या देश की अदालत बाशिर खान को उसके गुनाह के लिए उचित दंड करती है? ऐसे तमाम सवालों के लिए फिल्मकार मेघना गुलजार की छपाक देखनी होगी।
इसमें कोई दो राय नहीं कि मेघना गुलजार का निर्देशन सधा हुआ है, फिल्म संपादन चुस्त और स्क्रीन प्ले फुर्तीला है। संवादों और सीन पर बेहतरीन काम हुआ है।
दीपिका पादुकोण ने मालती के किरदार के साथ इंसाफ किया है। इस किरदार को निभाते हुए दीपिका पादुकोण की खूबसूरती भी कहीं आड़े नहीं आती। दूसरे शब्दों में कहें तो दीपिका के हाव भाव और गेटअप दोनों ही प्रभावशील हैं। वहीं, दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझने वाले अमोल के किरदार को विक्रांत मैसी से बेहतर शायद कोई निभा पाता। मधुरजीत सरघी ने वकील का किरदार पूरी ईमानदारी से अदा किया। इसके अलावा अन्य कलाकारों ने भी बेहतरीन अभिनय किया है।
फिल्म छपाक का शीर्षक गाना छपाक फिल्म के माहौल के अनुसार काफी अच्छा है। फिल्म देखते हुए इस गाने के बोल कानों से जेहन में उतरते हैं। इस गाने में गुलजार, अरिजीत और शंकर-एहसान-लॉय की युगलबंदी कमाल है।
छपाक का फिल्मांकन काफी सरल और संजीदा है। तेजाबी हमले की भयावता को अधिकता से दिखाने की बजाय पीड़िता के मर्म और पीड़ा को समझाने की कोशिश की गई है और फिल्मांकन की यह खासियत आंखों को स्क्रीन चस्पा रहने देती है।
छपाक केवल तेजाबी हमले की शिकार युवतियों की बात ही नहीं करती, बल्कि हमारी सुस्त पड़ी कानून व्यवस्था पर भी प्रहार करती है। छपाक में ऐसे कई भावनात्मक सीन हैं, जो आपके मन सागर में छपाक पैदा करेंगे, और आंसूओं के छींटें आपकी आंखों को तर कर जाएंगे।
ऐसे गंभीर मुद्दों पर बात रखते हुए हमारे भारतीय न्यूज चैनलों के एंकर जितना चिल्लाते हैं, मेघना गुलजार ठीक इसके विपरीत कई गुना ज्यादा शालीनता और शांति से इस मामले की गंभीरता को कह जाती हैं।
जैसे पूर्णिमा को चंद्रमा शांत समुद्र को विचलित कर देता है, कुछ ऐसे ही मेघना गुलजार की छपाक अपने छपाक से भावनाओं के समुद्र में हलचल पैदा करती है।