स्थापित फिल्म समीक्षकों की गिरती साख, केआरके की बढ़ती लोकप्रियता

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कुछ वर्ष पहले एक पतला सा दुबला सा एकदम ठेठ देसी युवक मुन्नाभाई एमबीबीएस अभिनेत्री ग्रेसी सिंह के साथ फिल्म देशद्रोही से बातौर अभिनेता बॉलीवुड की सरजमीं पर उतरा। अगले ही साल बिग बाॅस के तीसरे सीजन में आने के बाद सुर्खियों में रहने लगा। बिग बॉस की एंट्री के बाद केआरके को एक बात तो समझ आ गई थी, बेटा बोलोगे तो चलोगे। हिंदी समाचार देने वाली नयी नयी शुरू हुई वेबसाइटों के लिए केआरके के ट्वीट टीआरपी टॉनिक का काम करने लगे।

धीरे धीरे कमाल राशिद खान केआरके ब्रांड बन गया, और बढ़ती लोकप्रिय का सही समय पर सही इस्तेमाल करते हुए केआरके ​फिल्मों की समीक्षा करने लगा। नतीजन, केआरके की लोकप्रियता पहले से ज्यादा बढ़ती। कोई स्वीकार करे या ना, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन, बॉलीवुड के बड़े बड़े सुपर स्टारों को केआरके के रिव्यू से फर्क जरूर पड़ता है क्योंकि केआरके के रिव्यू पर लाखों सिने प्रेमी विश्वास करने लगे हैं।

केआरके की बढ़ती हुई लोकप्रियता के पीछे कई कारण हैं, उनमें से एक कारण स्थापित फिल्म समीक्षकों का स्टारों के प्रभाव में रिव्यू करना, और दूसरा कारण केआरके का बेबाक, मुंहफट तरीके से बोलना। बात पहले कारण की होनी चाहिये क्योंकि केआरके ने खुद को फिल्म समीक्षक के रूप में स्थापित कर लिया है। दरअसल, स्थापित फिल्म समीक्षक भूल चुके हैं कि उनको किसी स्टार ने ब्रांड नहीं बनाया, बल्कि उनकी समीक्षा को पढ़ने वाले पाठकों ने उनको ब्रांड बनाया है। पर, अफसोस कि बाजारवाद के प्रभाव से स्थापित फिल्म समीक्षक भी अछूते नहीं हैं।

स्टार प्रभाव में मूवी रिव्य लिखना या खुन्नस में मूवी रिव्यू लिखना

कई बार स्थापित फिल्म समीक्षक किसी अभिनेता से व्यक्तिगत खुन्नस के कारण उसकी फिल्म का नकारात्मक रिव्यू कर देते हैं, लेकिन, फिल्म बाॅक्स आॅफिस पर रिकाॅर्ड तोड़ कमाई कर जाती है। ऐसे में फिल्म समीक्षक की विश्वसनीयता सवालिया दायरे में आ जाती है, विशेषकर फिल्म समीक्षक के रिव्यू पर विश्वास करने वाले पाठकों की नजर में।

कई बार स्थापित फिल्म समीक्षक बड़े स्टार की निकटता के चलते उसकी वाहियत फिल्म की समीक्षा भी ऐसे लिखते हैं, जैसी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ फिल्म हो। मगर, जैसे ही फिल्म समीक्षक का प्रशंसक पाठक सिनेमाघर में पहुंचता है, और फिल्म देखकर निकलता है तो खुद को ठगा हुआ महसूस करता है। यहां पर उसका गुस्सा फिल्म स्टार पर कम, और फिल्म समीक्षक पर अधिक निकलता है।

लेकिन, समय के बदलाव ने सिने प्रेमियों को स्थापित फिल्म समीक्षकों के अलावा भी कई विकल्प मुहैया करवा दिए हैं। ऐसे में यदि किसी फिल्म समीक्षक को अपनी साख बनाए रखनी है, तो उसको ईमानदारी से काम करना होगा अन्यथा केआरके जैसे नाम इतिहास के पन्नों में फिल्म समीक्षक के रूप में दर्ज हो जाएंगे। वैसे फिल्म समीक्षक बनने के लिए किसी डिग्री की जरूरत नहीं होती, बल्कि फिल्म के बारे में समझ होनी, दर्शकों की पसंद का अंदाजा होना चाहिये।

फिल्म समीक्षकों को दो नजरिये रखने की जरूरत होती है, एक फिल्म समीक्षक का नजरिया, और दूसरा आम दर्शक नजरिया क्योंकि आम दर्शक हर फिल्म नहीं देखता, या कहें उतनी फिल्में नहीं देखना, जितनी फिल्म समीक्षक देखता है। इसलिए फिल्म समीक्षा में समीक्षक की राय के साथ साथ एक आम सिने प्रेमी की फीलिंग भी अहमियत रखती है, जो सिनेमा घर में मौजूद होता है।

याद ही होगा, अक्षय कुमार की फिल्म भूलभुलैया को कुछ फिल्म समीक्षकों ने बुरी तरह नकारा। लेकिन, जब फिल्म देखकर दर्शक सिनेमा हाॅल से निकले तो बाॅक्स आॅफिस का नजारा बदल गया। इस फिल्म को भारत में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी बहुत प्यार मिला। यह तो एक उदाहरण है, ऐसी बहुत सारी उदाहरणें मिल जाएंगी।

चलते चलते में कमाल राशिद खान का एक ट्वीट शेयर करते चलें, जो केआरके के दमखम को प्रकट करता है।