उरी हमले में भारत के 18 सैनिक शहीद हो गए। जैसे कि हम सब जानते हैं कि आतंकवाद पाक की सरजमीं पर पनपता है। इससे पहले पाकिस्तानी समर्थित आतंकवादियों ने पठानकोट में कहर ढहाया था। इस बार भारत के नागरिक तीखी प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
मनसे ने पाकिस्तानी कलाकारों को देश छोड़ने के लिए अल्टीमेटम दे दिया है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल रैली में अपने संबोधन से पाकिस्तानी नागरिकों को सैन्य युद्ध के विपरीत गरीबी और बेरोजगरी की जंग लड़ने का आह्वान कर दिया है।
गायक अभिजीत ने अपने ट्विटर खाते से करन जौहर और भट्ट परिवार की जमकर आलोचना कर दी है। कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव ने अपना पाकिस्तानी प्रोग्राम तक कैंसिल कर दिया है। जिन्दगी चैनल ने प्रसारित किए जाने वाले पाकिस्तानी कार्यक्रमों पर रोक लगाने पर विचार करना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान में भी भारतीय फिल्मों पर प्रतिबंध लगाने के लिए कोर्ट में अपील दायर कर दी गई है। उरी हमले पर तरह तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।
लेकिन, इस सबके बीच मन में एक ही सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तानी कलाकारों और कार्यक्रमों का बहिष्कार सस्ती लोकप्रियता या दूरदृष्टि? सवाल इसलिए भी उठता है क्योंकि पाकिस्तान ने ऐसा पहली बार तो किया नहीं, जो कुछ लोग इस तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
यदि आप केवल ताजी घटना को लेकर कुछ प्रतिक्रिया देते हैं और पुरानी घटनाओं को ठंडे बस्ते में डाले रखते हैं तो यकीनन यह सस्ती लोकप्रियता और सुर्खियों में रहने मात्रा ही प्रतीत होता है। अगर, दूरदृष्टि है तो आप पाकिस्तानी कार्यक्रमों को निरंतर चला क्यों रहे हो? आप पाकिस्तान में कार्यक्रम के प्रस्ताव स्वीकार क्यों कर रहे? यदि पाकिस्तान से इतनी नफरत है तो फवाद खान जैसे सितारे को दिल में जगह दिए क्यों हो?
भीड़ में पत्थर फेंकना आसान होता है क्योंकि भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता। सस्ती लोकप्रियता बड़े मामलों में अपनी कथित देशभक्ति दिखाकर प्राप्त की जा सकती है।