अपनी बड़ी-बड़ी खूबसूरत आंखों और सांवली-सलोनी सूरत से सभी को आकर्षित करने वाली अभिनेत्री स्मिता पाटिल ने महज 10 साल के करियर में दर्शकों के बीच खास पहचान बना ली। स्मिता पाटिल का नाम हिंदी सिनेमा की बेहतरीन अदाकाराओं में शुमार है। स्मिता को आज भी कोई कहां भूल पाया है!
अपने सशक्त अभिनय से मिसाल कायम करने वाली स्मिता पाटिल का जन्म 17 अक्टूबर, 1956 को पुणे में एक मराठी राजनीतिज्ञ परिवार में हुआ। उनके पिता शिवाजीराव पाटिल महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और मां विद्या ताई पाटिल सामाजिक कार्यकर्ता थीं।
स्मिता का नाम रखे जाने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। जन्म के समय उनके चेहरे पर स्मित (मुस्कान) देखकर मां ने उनका नाम स्मिता रख दिया। यही मुस्कान आगे चलकर भी उनके व्यक्तित्व का सबसे आकर्षक पहलू बनी।
स्मिता पाटिल अपने गंभीर अभिनय के लिए जानी जाती हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि फिल्मी पर्दे पर सहज और गंभीर दिखने वाली स्मिता असल जिंदगी में बहुत शरारती थीं।
उनकी आरंभिक शिक्षा मराठी माध्यम के एक स्कूल से हुई थी। उनका कैमरे से पहला सामना टीवी समाचार वाचिका के रूप हुआ था।
फिल्मों में आने से पहले स्मिता पाटिल बंबई दूरदर्शन चैनल पर मराठी में समाचार पढ़ा करती थीं। समाचार पढ़ने से पहले उनके लिए साड़ी पहनना जरूरी होता था, मगर स्मिता को तो जींस पहनना अच्छा लगता था, सो अक्सर समाचार पढ़ने से पहले वह जींस के ऊपर ही साड़ी लपेट लिया करती थीं।
स्मिता पाटिल के प्रेम के चर्चे अभिनेता राज बब्बर संग चले। इसको लेकर उन्हें आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा। राज बब्बर पहले से ही विवाहित थे, मगर स्मिता से शादी करने को वह राजी हो गए और अपनी पहली पत्नी नादिरा बब्बर को छोड़ दिया।
स्मिता पाटिल ने अपने छोटे से फिल्मी सफर में ऐसी फिल्में कीं, जो भारतीय फिल्मों के इतिहास में मील का पत्थर बन गईं। उनकी छाप छोड़ने वाली फिल्मों में जहां ‘भूमिका’, ‘मंथन’, ‘मिर्च मसाला’, ‘अर्थ’, ‘मंडी’ और ‘निशांत’ जैसी रचनात्मक फिल्में शामिल हैं, तो दूसरी तरफ अमिताभ बच्चन संग ‘नमक हलाल’ और अन्य फिल्म ‘शक्ति’ व्यावसायिक फिल्मों की कतार में शामिल हैं।
स्मिता के फिल्मी करियर की शुरूआत अरुण खोपकर की फिल्म ‘डिप्लोमा’ से हुई, लेकिन मुख्यधारा के सिनेमा में स्मिता ने ‘चरणदास चोर’ से अपनी मौजूदगी दर्ज की।
स्मिता ने अपने 1974 से 1985 तक के करियर में कई उपलब्धियां हासिल कीं, उन्होंने 1985 में भारत सरकार द्वारा सम्मनित नागरिक पुरस्कर पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया।
उन्होंने 1977 में ‘भूमिका’, 1980 में ‘चक्र’ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हासिल किया। साथ ही उन्होंने 1978 में ‘जैत रे जैत’, 1978 में ‘भूमिका’, 1981 में ‘उंबरठा’, 1982 में ‘चक्र’, 1983 में ‘बाजार’, 1985 में ‘आज की आवाज’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता।
उनका फिल्मी सफर सिर्फ 10 साल का रहा है, लेकिन काम ऐसा कि आज भी वो चर्चा में रहता है। मुस्कान भरे चेहरे ने 13 दिसंबर, 1986 को महज 31 साल की उम्र में ही सबको अलविदा कह दिया। उनका निधन बेटे प्रतीक बब्बर को जन्म देने के दो सप्ताह बाद हुआ।
वहीं, उनकी मौत के बाद कई सवाल खड़े हुए। भारत के सबसे बड़े फिल्म निर्देशकों में से एक, मृणाल सेन का कथित तौर पर कहना है स्मिता पाटिल का निधन इलाज में लापरवाही के कारण हुआ। उनका आकस्मिक निधन आज भी एक रहस्य बना हुआ है।
-आईएएनएस/शिखा त्रिपाठी
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