मुम्बई। लंबे समय से फिल्मी जगत से दूर और ‘दुश्मन’ और ‘संघर्ष’ जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुकी फिल्म निर्देशिका तनुज चंद्रा ने सेंसरशिप को समय की बर्बादी बताया। और कुछ सुझाव भी दिए हैं।
spotboye.com को दिए एक साक्षात्कार में तनुजा चंद्रा ने एक सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘मैं सोचती हूं कि सेंसरशिप पूरी तरह समय की बर्बादी है। एक व्यस्क को यह बताना मूर्खता है कि वे यह विशेष चीजें नहीं देख सकता। आप किस तरह किसी के स्वभाव को बाध्य कर सकते हैं ? सेंसरशिप एक तरीका है, जो बताता है कि वे अभी बड़े नहीं हुए। किसी पटकथा को लिखते हुए सेंसरशिप को दिमाग में रखना पड़ता है, जो अच्छी चीज नहीं। यह लेखन लय को खत्म करता है और व्यक्ति के विचारों को सीमित करता है।’
एक अन्य सवाल के जवाब में तनुजा चंद्रा कहती हैं कि सेंसर बोर्ड को फिल्मों के लिए कुछ उम्र वर्ग सीमा निर्धारित कर देनी चाहिए। सेंसर बोर्ड को फिल्म के अंदर से कुछ बदलने का सुझाव नहीं देना चाहिए। इस तरह समाज अधिक सचेत होगा। सेंसरशिप को व्यावहारिक और तेज होने की जरूरत है।
गौरतलब है कि सेंसर बोर्ड इन दिनों में किसी न किसी कारण चर्चा में रहता है। हालिया, एक फिल्म में ‘साला’ शब्द तक को सेंसर कर दिया गया जबकि साला खडूस नामक फिल्म उसी समय दौरान सिनेमा घरों में प्रदर्शित हुई। इस तरह सेंसर बोर्ड की दोहरी मानसिकता सामने आती है।
क्या आप तनुजा चंद्रा की इस राय से सहमत हैं ?