फिल्म कॉफी विद डी के शानदार ट्रेलर के साथ स्टैंड अप कॉमेडियन, अभिनेता सुनील ग्रोवर और निर्देशक विशाल मिश्रा की जोड़ी ने एक अच्छी कॉमेडी फिल्म का विश्वास जगाया था। लेकिन, यह विश्वास कॉफी विद डी देखने के बाद ताश के पत्तों के घरौंदे सरीखे ध्वस्त हो जाता है।
दरअसल, कॉफी विद डी का रोचक हिस्सा डॉन की इंटरव्यू होना चाहिये था, जो बिलकुल नहीं है। डॉन का इंटरव्यू फिल्म के दूसरे हिस्से में भी काफी समय खर्च करने के बाद आता है। डॉन के कल्पना आधारित इंटरव्यू पर काफी कुछ करने की जरूरत थी, जो नहीं किया गया।
कॉफी विद डी नाम का चुनाव अच्छा है, कॉफी विद करण पहले ही से चर्चित नाम है। दाऊद अब्राहिम का इंटरव्यू लेने के लिए उसकी बेइज्जती करने का प्लॉट रचना भी अच्छा है। अर्णब गोस्वामी जैसे बेहद चर्चित न्यूज एंकर की कॉपी गढ़ना भी बुरा आईडिया नहीं है।
लेकिन, अफसोस की बात है कि फिल्म को बेहतर बनाने के लिए कोई काम नहीं किया गया। निर्देशक विशाल मिश्रा का निर्देशन बेहद कमजोर है। द कपिल शर्मा शो की जान कहे जाने वाले अभिनेता सुनील ग्रोवर भी फिल्म में अधिक प्रभावित करते हुए नजर नहीं आए। अभिनेत्री अंजना सुखानी और राजेश शर्मा का अभिनय ठीक ठाक है। डी के किरदार में जाकिर हुसैन ने भी अपनी तरफ से किरदार को बेहतरीन बनाने की पूरी कोशिश की है।
जैसा कि फिल्म के ट्रेलर से स्पष्ट था कि फिल्म कॉफी विद डी व्यंगात्मक फिल्म होगी, इसलिए इस फिल्म का लेखन बेहद व्यंगात्मक होना चाहिये था। इसके लेखन पर बहुत अधिक काम करने की जरूरत थी। व्यंग लेखन की सबसे कठिन विदा है, और फिल्म में इस पक्ष को कमजोर रखा गया है।
इस कमजोर पक्ष के कारण अन्य फालतू पक्षों को अधिक विस्तार देना पड़ा, जो फिल्म देखते हुए सिरदर्द का कारण बन जाते हैं। इसलिए हमारी राय है कि कॉफी विद डी से अच्छी तो गल्ले की चाय है, जहां इस ठंड के मौसम में गरमागरम चाय की चुस्कियों के साथ चुटीली, गंभीर और मूड अनुसार बातें तो हो सकती है।
हालांकि, फिल्म कॉफी विद डी के बारे में यह हमारी निजी राय है, जो सभी लागू नहीं होती, क्योंकि हर किसी का अपना अपना नजरिया होता है। हमारी तरफ से इस फिल्म को केवल पांच में से डेढ़ स्टार मिलता है।